हिज्री कलेण्डर का बारहवां महीना ‘‘जिलहि़ज्जः’’

दीने इस्लाम कबूल करने में कोई जोर व जबरदस्ती नहीं है
October 30, 2020
मुह़र्रम का मुबारक महीना
August 10, 2021


जिल़हिज्जः बड़ा मुबारक महीना है, अल्लाह तआला ने ईमान वालों को साल में दो दिन खुशी मनाने के लिए अता किये हैं, ईद- उल-फित्र, ईद- उल-अज़हा, ईदुल-फित्र पहली शव्वाल को होती है और ईद- उल-अज़हा दस जिलहिज्ज को होती है, ईद-उल-अज़हा को ईदे अज़्हा, ईदे कुर्बां और बक़र ईद भी कहते हैं।
ज़ुलहिज्जः हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माईल, हज़रत हाजर अलैहिमुस्सलाम की याद भी दिलाता है, इस महीने की आठ ता बारह जिलहिज्ज के दरमियान मक्के में हज होता है जो हज़रत इब्राहीम अलै0 की याद दिलाता है, जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की मदद से कअ़बे की इमारत तैयार की तो अल्लाह के हुक्म से आवाज़ लगाई लोगो! काबा तैयार हो गया है, हज करने आओ, यह आवाज़ अल्लाह ने सारी दुन्या वालों को सुनाई बल्कि आलमे अरवाह में भी सुनी गयी जवाब में बहुत से लोगों ने लब्बैक कहा, जिन लोगों ने लब्बैक कहा उनको हज की सअ़ादत मिली और जो बाक़ी हैं उनको मिलेगी, यह हज़ इब्राहीम अलैहिस्सलाम की याद दिलाता है, हज में लोग ज़मज़म पीते हैं, यह हज़रत इस्माईल और हज़रत हाजर अलैहिस्सलाम की याद दिलाता है। ज़मज़म का चश्मा अल्लाह तआला ने हज़रत इस्माईल अलै0 के लिए जारी फरमाया था, हज में हाजी सफा मरवा के दरमियान सई करते हैं यह हज़रत हाजर की दौड़ को याद दिलाता है, हज़रत हाजर मासूम बेटे को पानी पिलाने के लिए पानी की तलाश में कभी सफा पहाड़ी पर चढ़ जाती हैं तो कभी दौड़ कर मरवा पहाड़ी पर चढ़ जातीं, यह सई हज़रत हाजर की सई की याद दिलाता है, ह़ज में हाजी रमी करता है तीन जगहों पर जमरात को कंकरियां मारता है, यह वही तीन जगहें हैं जहां इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कंकरियां मार कर शैतान को भगाया था फिर हाजी कुर्बानी करता है यह कुर्बानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की उस कुर्बानी की याद दिलाता है जब उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध कर अपने लाडले बेटे के गले पर छुरी चला दी थी मगर अल्लाह तआला ने फरिश्ते के ज़रिये हज़रत इस्माईल को हटा कर मेंढा लिटा दिया था और मेंढा ज़ब्ह हुआ था।
अल्लाह ने इब्राहीम अलै0 से जैसे इम्तिहानात लिए वह बेमिसाल हैं इसी तरह इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर जो इनआमात हुए वह भी मिसाली हैं, अल्लाह तआला ने उन इनआमात का ज़िक्र इशारतन अपने नबी के जरिये हर नमाज़ में रख दिया चुनांचि हर नमाज़ में हमारे लिए जो दुरूद पढ़ना मसनून हुआ उसमें हम कहते हैं-
अनुवादः-‘ऐ अल्लाह! मुहम्मद पर रहमत नाज़िल फरमा और उनकी आल पर भी वैसी रहमत जैसी इब्राहीम अलै0 पर नाज़िल फरमाई और उनकी आल पर, बेशक तू हमीद और मजीद है।
इस दुरूद को दुरूदे इब्राहीमी और दुरूदे अकबर कहते हैं, इसको अगर वज़ीफे के तौर पर नमाज़ से अलग पढ़ें तो बड़ा सवाब मिले लेकिन र्कुआन मजीद में ईमान वालों से जिस दुरूद का मुतालबा है उसमें सलाम का होना लाज़िम है। मिसाल के तौर पर-
अल्लाहुम्म सल्लि अला मुहम्मदिंव-व-अला आलिही -व-अलाअस्हाबिही-व-बारिक -व-सल्लिम सलामन कसीरा।’’
नौ ज़िलहिज्जः की फज्र की नमाज़ से तेरह जिलहिज्ज की अस्र की नमाज़ तक हर फर्ज़ नमाज़ के बाद मर्दों के लिए बलन्द आवाज़ से तकबीरे तश्रीक़ पढ़ना वाजिब है, औरतें आहिस्ता पढ़ें-
तकबीरे तश्रीक़-
‘‘अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर लाइलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर व लिल्लाहिल हम्द।’’
दस जिलहिज्ज को ईद-उल-अज्हा की दो रकअ़त मख़्सूस नमाज़ पढ़ना वाजिब है, दस जिलहिज्ज की ईद की नमाज़ के बाद से बारह जिलहिज्ज को गुरूबे आफताब से पहले पहले हर आक़िल बालिग़ साहिबे निसाब मुक़ीम मुसलमान पर कुर्बानी वाजिब है, मुसाफिर पर कुर्बानी वाजिब नहीं जो हज पर जाते हैं वह अगर आठ जिलहिज्ज को मक्का मुकर्रमा में रहते हुए पन्द्रह दिन या उससे ज़ियादा हो गये हों तो उन पर भी हज वाली कुर्बानी के अलावा माल वाली कुर्बानी वाजिब है, चाहे वह मक्के में करें चाहे अपने वतन में किसी अज़ीज़ से कह कर करवा दें लेकिन अज़ीज़ से कहना ज़रूरी है वरना वाजिब अदा न होगा।
कुर्बानी बकरा, बकरी भेंड़ नर मादा, दुम्बा नर मादा, पड़वा भैंस और ऊँट की होती है गाय की भी होती है, मगर हमारे मुल्क में गाय की कुर्बानी क़ानूनन मना है इसलिए गाय की कुर्बानी हरगिज़ न करें।
बकरा बकरी, भेंड और दुम्बे की उम्र कम से कम एक साल हो यानी दाँते हों, पड़वा और भैंस की उम्र कम से कम दो साल हो और वह दाँते हों।
कुर्बानी का जानवर मोटा ताज़ा बे ऐब हो, बधिया जानवर अगरचि उसके खुसिये निकाल दिये जाते हैं मगर वह ऐबदार नहीं होता।
छोटा जानवर बकरी, भेंड़, वगैरह एक आदमी की तरफ से एक जानवर ज़ब्ह होगा, पड़वे या भैंस में सात हिस्से तक हो सकते हैं लेकिन अगर कोई एक पड़वा एक हिस्से के लिए ज़ब्ह करे तो जाइज़ है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सौ ऊँट ज़ब्ह किये थे।
कुर्बानी का गोश्त खुद खाये, अज़ीज़ों को खिलाये, बेहतर है एक तिहाई गोश्त गरीब मुसलमानों में तकसीम करे, कुर्बानी का गोश्त गैर मुस्लिम को भी दिया जा सकता है, कुर्बानी की खाल अपने काम में लाई जा सकती है, जैसे झोले बना ले या मुसल्ला बना ले वगैरह। कुर्बानी की खाल क़साब को उजरत में नहीं दी जा सकती कुर्बानी की खाल अगर बिके तो उसकी क़ीमत गरीब मुसलमानों का हक़ है और बेहतर है कि जिस मदरसे में ग़रीब मुसलमान बच्चों को मुफ़्त खाना खिलाया जाता है चाहिए कि कुर्बानी की खाल या उसकी क़ीमत उस मदरसे में दे दें।
अल्लाह की मसलहत इस साल भी कोरोना के सबब कुर्बानी की ईद फीकी रहेगी, अल्लाह की पनाह ढाई करोड़ से ज़ियादा लोग कोरोना की गिरिफ़्त में आ चुके हैं, तीन लाख से ज़ियादा लोग कोरोना के मरज़ में अपनी जानें गवां चुके हैं, मरीज़ों के इलाज पर कितना खर्च हुआ इसका हिसाब कौन लगा सकता है, स्कूल, काॅलेज का अन्दाज़ा कौन कर सकता है, गरीब, मज़दूर, छोटे कारोबारी लोगों ने कितना नुकसान उठाया कौन बता सकता है, मुल्क इक्तिसादी हैसियत से कितना पीछे गया कौन बता सकता है, कोरोना का टीका ईजाद हुआ, वैक्सीन बना ली गयी लेकिन यह जाइज़ा सामने नहीं आया कि जिस पर टीका लगा, वह बिल्कुल महफूज़ हो गया, अल्लाह करे कोरोना के मरीज़ उससे सेहतयाब हों।
हम दुआ करते हैं कि ऐ अल्लाह कोरोना का अज़ाब दुन्या से उठा ले, तेरे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया, मख़्लूक़ अल्लाह का कुम्बा है, ऐ अल्लाह अपने इस कुम्बे पर, अपने बन्दों पर रहम फरमा और करोना का अजाब उठा ले, साथ ही हम अपने पाठकों से दरख़्वास्त करते हैं कि वह एहतियात के तौर पर मास्क लगायें, मिलने जुलने से भीड़ से परहेज़ करें मुनासिब दूरी बनाये रखें, सफाई सुथराई का खूब ख़्याल रखें गुनाहों से बचें नेकियां करें और दुआयें करें।