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‘सच्चा राही’ अट्ठारहवें वर्ष में

अल्लाह तआला का शुक्र है कि उसकी कृपा से ‘‘सच्चा राही’’ ने अपनी सेवाओं के सत्तरह वर्ष पूरे कर लिए और इस अंक पर अट्ठारहवें वर्ष में प्रवेश किया। ख़ुदा का शुक्र है कि सच्चा राही सत्तरह वर्षों तक हर माह की पहली तारीख़ को पोस्ट होता रहा है। अल्लाह तआला से दुआ है कि यह भविष्य में भी इसी तरह अपितु इससे अच्छे ढंग से अपनी सेवाएं जारी रखे।

नदवतुल उलमा से पांच पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं, दो अरबी भाषा में, एक उर्दू भाषा में और एक अंग्रेज़ी भाषा में तथा यह ‘‘सच्चा राही’’ हिन्दी भाषा में।

अरबी भाषा में मासिक पत्रिका ‘‘अल-बअ़सुल इस्लामी’’ तथा दूसरी पत्रिका अर्ध मासिक ‘‘अर-राइद’’। यह दोनों पत्रिकाएं अपने देश के अरबी जानने वाले मुस्लिमों में विशेषकर आलिमों में बहुत मक़्बूल हैं, यह दोनों पत्रिकाएं पर्याप्त मात्रा में अरब देशों में भी जाती हैं और वहां बड़ी रुचि से पढ़ी जाती हैं, इन दोनों पत्रिकाओं को अरब देशों में विशेष स्थान प्राप्त है।

अंग्रेज़ी पत्रिका ‘‘फ्रेगरेन्स ऑफ ईस्ट’’ ;थ्त्।ळत्।छब्म् व्थ् म्।ैज्द्ध यद्यपि उसकी प्रकाशन संख्या बहुत कम है परन्तु अंग्रेज़ी जानने वाले मुस्लिमों में मक़्बूल है।

उर्दू पत्रिका अर्धमासिक ‘‘तामीरे ह़यात’’ मुस्लिम समाज में बड़ी ही मक़्बूलियत रखता है, इसकी प्रकाशन संख्या सात हज़ार से अधिक है, अल्लाह तआला इसकी ख़िदमात ज़ारी रखे, और इसकी मक़्बूलियत में बढ़ोत्तरी करे इस पत्रिका में अ़ाम तौर से नदवतुल उलमा के बुज़ुर्गों के लेख होते हैं इसीलिए इसको मुस्लिम समाज में बड़ी मक़्बूलियत हासिल है।

अब से सत्तरह वर्ष पहले नदवतुल उलमा के ज़िम्मेदारों ने जब महसूस किया कि मुस्लिम समाज के पढ़े लिखे युवकों में उर्दू लिखने पढ़ने वाले नाम मात्र के रह गए हैं। जिन युवकों ने मदरसों में शिक्षा पाई है वही उर्दू लिखते पढ़ते हैं, उनकी संख्या तमाम युवकों के मुक़ाबले में पांच प्रतिशत भी नहीं है, 95 प्रतिशत मुस्लिम युवक हिन्दी लिखते पढ़ते हैं यद्यपि उनकी मातृ भाषा तथा घर के बोल चाल की भाषा उर्दू है परन्तु उनके लिखने पढ़ने की भाषा हिन्दी है, अतः नदवे के बुजु़र्गों ने ज़रूरत महसूस की, कि नदवतुल उलमा की ओर से एक हिन्दी पत्रिका प्रकाशित हो। इस प्रकार ‘‘सच्चा राही’’ अस्तित्व में आया, अल्लाह का शुक्र है कि यह उस वक़्त से अब तक हिन्दी भाषा में अपनी सेवाएं जारी रखे हुए है, इनशाअल्लाह भविष्य में भी इसकी सेवाएं जारी रहेंगी।

आरम्भ में मुझे तीन सहयोगी दिये गये थे। जनाब मास्टर हसन अंसारी (एम.ए.एल.टी.) और जनाब हबीबुल्लाह आज़मी (एम.ए.) यह दोनों सज्जन सरकारी नौकरियों से अवकाष प्राप्त बड़े ज्ञानी और अनुभवी थे जब तक यह रहे इनके अच्छे लेख सच्चा राही में प्रकाशित होते रहे यह दोनों अल्लाह को प्यारे हो गये, अल्लाह उनकी बख़्शिश फरमाये। शुरु में मौलाना मुहम्मद सरवर फ़ारूक़ी नदवी का भी सहयोग रहा फिर वह अपने इल्मी कामों में मश्ग़ूल हो गये अल्लाह उनकी मदद करे। और अब जनाब मौलाना सय्यिद मुहम्मद गुफ़रान नदवी साहिब का सहयोग प्राप्त है।

सच्चा राही में स्थाई रूप से जिन शीर्षकों पर लिखा जाता है वह हैंः- कुआर्न की शिक्षा, प्यारे नबी की प्यारी बातें, आपके प्रश्नों के उत्तर और उर्दू सीखिए।

इनके अतिरिक्त इस्लामिक इतिहास, इस्लामिक विश्वास, अख़्लाक़ियात (नैतिकता सम्बन्धित बातें) तथा इनके अतिरिक्त लाभदायक विषयों पर उलमा के लेख प्रकाशित होते हैं यही वजह है कि सच्चा राही हमारे पाठकों में स्वीकृत प्राप्त किये हुए है। मेरा अपना अनुभव है कि सच्चा राही जिस हिन्दी जानने वाले मुस्लिम युवक को प्रस्तुत किया गया उसने इसको पसंद किया और इसकी प्रशंसा की इसके बावजूद इसका प्रकाशन 2000 से आगे न बढ़ सका अगर हमारे प्रिय पाठक प्रयास करें तो इसका प्रकाशन बहुत बढ़ सकता है।

यह बात हम मानते हैं कि ‘‘सच्चा राही’’ में जो लेख प्रकाशित होते हैं वह लेखकों के क़लम से बराहेरास्त (प्रत्यक्षतः) नहीं होते हैं। इसका कारण यह है कि हम नदवतुल उलमा के बुजुर्गों विशेषकर हज़रत मौलाना अली मियां साहब रह0, हज़रत मौलाना सय्यिद मुहम्मद राबे हसनी नदवी (नाज़िम नदवतुल उलमा), हज़रत मौलाना डॉ0 सईदुर्रहमान अ़ाज़मी नदवी (मोहतमिम दारुल उलूम नदवतुल उलमा) आदि के लेख छापना चाहते हैं और यह हज़रात हिन्दी में नहीं लिखते, यह हज़रात उर्दू में लिखते हैं, इनके लेख उर्दू पत्रिका ‘‘तामीरे ह़यात’’ में छपते हैं, हम उनको तामीरे हयात से ले कर कभी हिन्दी में अनुवाद कर के तो कभी उर्दू ही को हिन्दी लिपि में लिख कर ‘सच्चा राही’ में छापते हैं।

हम इसका प्रबन्ध करते हैं कि दीनी विषयों पर सच्चा राही में जो कुछ लिखा जाए वह आलिमों ही के क़लम से हो, ग़ैर आलिम लेखकों से हम बराबर अनुरोध करते आए हैं कि वह गै़र दीनी विषयों पर लाभदायक लेख लिखें जैसे भूगोल, विज्ञान, मछली पालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन आदि। इसी प्रकार विज्ञान के इस्कॉलर मछलियों के प्रकार, मुर्गियों के प्रकार, मधुमक्खियों के प्रकार आदि पर प्रकाश डालें।

यह सही है कि हम लेखकों को कोई प्रतिफल देने में असमर्थ हैं, हम उनके लेख उनके धन्यवाद के साथ ही प्रकाशित कर सकेंगे, इनशाअल्लाह उनके प्रयासों का प्रतिफल पाठकों की दुआवों से अल्लाह तआला प्रदान करेंगे।

सच्चा राही के विषयों को यद्यपि मैं ऐडिट करता हूं परन्तु मौलाना मुहम्मद गुफ़रान नदवी (सहायक सम्पादक) का उसमें पूरा सहयोग और परामर्श रहता है, कम्पोज़ किये हुए मैटर की प्रूफ़ रीडिंग जमाल अहमद नदवी (कारकुन दावत व इरशाद विभाग) करते हैं। वह बाज़ मज़ामीन विशेष कर ‘‘प्यारे नबी की प्यारी बातें’’ का उर्दू से हिन्दी में अनुवाद करते हैं, जो मजामीन उर्दू से हिन्दी में अनुवाद किये जाते हैं या उर्दू हिन्दी लिपि में लिखे जाते हैं उसमें जनाब हुसैन अहमद (कारकुन सच्चा राही दफ़्तर) का बड़ा सहयोग रहता है, पर्चे की समय पर छपाई तथा पोस्टिंग का काम जनाब नियाज़ अहमद नदवी साहब (इंचार्ज दफ़्तर सहाफत व नश्रियात) बड़ी पाबन्दी से अन्जाम देते हैं। इनशाअल्लाह मैं न रहूंगा तो ये हज़रात पर्चे को भली भांति चलाते रहेंगे।

प्रिय पाठको! मुझे यक़ीन है कि आप सब नमाज़ के पाबन्द होंगे, साथ ही आप से अनुरोध है कि जो भाई नमाज़ में कोताही कर रहे हों उनको समझा बुझा कर नमाज़ का पाबन्द बनायें, इसी प्रकार रमज़ान के रोज़ों में जो भाई कोताही करें उनको समझा बुझा कर उनसे रोज़े रखवाएं, इसी प्रकार जिस पर ज़कात फर्ज़ हो या हज़ फर्ज हो और वह कोताही कर रहे हों तो उनको समझा बुझा कर उनसे फर्जों की अदायगी करवाएं, आपस में मेल व मुहब्बत क़ाइम करने की कोशिश करें, हमारा समाज मिश्रित है, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, शिया, सुन्नी सब एक साथ रहते हैं, चाहिए कि सब अपने-अपने धर्म पर जमे रहें और दूसरों को सहन करें, लड़ाई झगड़े से दूर रहें, आपस में सहयोग रहे, सहानुभूति रहे, मेल मिलाप रहे।

प्रिय पाठको! हम सब सुन्नी हैं, अल्लाह के नबी से प्रेम हमारे ईमान का भाग है, उनका अनुकरण हमारे लिए अनिवार्य है उनके सभी साथियों (सहाबा) का आदर सम्मान हमारे लिए अनिवार्य है, हम खुलफाए राशिदीन हज़रत अबू बक्र, हज़रत उमर, हज़रत उस्मान, हज़रत अली, हज़रत हसन रज़ियल्लहु अ़न्हुम से प्रेम व महब्बत रखते हैं सहाबा इंसान थे, वह मासूम न थे, उनके आपस में झगड़े भी हुए हैं, शरई ज़रूरत के बिना उनके आपसी झगड़ों का ज़िक्र करने को ह़राम समझते हैं। हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हू के कातिलों को जालिम और जहन्नमी मानते हैं, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हू को उनके क़त्ल से बरी मानते हैं। बेशक हज़रत मुआविया और हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हू के बीच लड़ाई हुई, यह लड़ाई भ्रांतियों के कारण हुई इस लड़ाई में हज़रत अली रज़ि0 हक़ पर थे और हज़रत मुअ़ाविया रज़ि0 इजतिहादी ग़लती पर थे लेकिन हज़रत हसन रज़ि0 से सन्धि हो गई तो वह बरहक़ ख़लीफा हो गये। उनको बुरा कहना, बड़ा गुनाह है। हज़रत अली रज़ि0 के क़ातिल जहन्नमी हैं, हज़रत हसन व हुसैन रज़ि0 जन्नत के जवानों के सरदार हैं हम तमाम अहले बैत से महब्बत रखते हैं वह हमारे सरदार और पेश्वा हैं अहले बैत में हम सर्वप्रथम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अज़वाज (पत्नियों) को मानते हैं फिर घर के और लोग जैसे हज़रत अ़ली, हज़रत फ़तिमा, हज़रत ह़सन, हज़रत हुसैन, हज़रते उमामा आदि रज़ियाल्लाहु अन्हुम हैं।

प्रिय पाठको! जब से मैं नदवे में आया हूं दो दर्जन से अधिक लोग मेरे सामने जा चुके हैं, उनमें बाज़ की याद बहुत सताती है विशेष कर हज़रत मौलाना अली मियां रह0, हज़रत मौलाना मुईनुल्लाह नदवी, हज़रत मौलाना मुहम्मद अलहसनी, हज़रत मौलाना मुहम्मद सानी अलहसनी, मौलाना अब्ुदल्लाह हसनी, हज़रत मौलाना मुहम्मद इस्हाक़ संडीलवी, हज़रत मौलाना मुहिब्बुल्लाह लारी और हज़रत मौलाना वाज़ेह रशीद हसनी नदवी रह0 आदि की, अल्लाह तआला इन सब की मग़फिरत फरमा कर उनके दरजात बुलन्द करे, आमीन। अन्त में दुआ करता हूं, ऐ आसमानों और ज़मीन के पैदा करने वाले अल्लाह, दुन्या व आख़िरत में काम आने वाले अल्लाह मुझे इस्लाम पर मौत दे और अच्छे लोगों से मिला दे। आमीन।