हरमैन शरीफ़ैन

हज एक अहम इबादत
June 4, 2023
सच्चा राही जनवरी-2024
January 5, 2024

दो मुक़द्दस और पवित्र शहर मक्का मुअज़्ज़मा और मदीना मुनव्वरा को ‘‘हरमैन शरीफै़न’’ कहा जाता है। जहाँ से पूरा इस्लामी इतिहास सम्बन्धित है, अल्लाह के अन्तिम नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और पैगम्बरे इस्लाम का पूर्ण जीवन काल इन्हीं दोनों पवित्र शहरों में गुज़रा, कुरआन मजीद की एक सौ चैदह सूरतें इन्हीं दोनों पवित्र शहरों में नाज़िल हुईं, हर सूरत के शुरु में यह तफ़सील होती है कि यह सूरः मक्की है या मदनी, मानव इतिहास में ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मक्का मुअज़्ज़मा को जो महत्तवता प्राप्त है, वह दुनिया के किसी भी शहर को प्राप्त नहीं, ज़मीन पर अल्लाह की इबादत के लिए सबसे पहला घर बैतुल्लाह मक्के में बनाया गया जिसकी पुष्टि कु़रआन से हो रही है। ‘‘सबसे पहला घर जो लोगों के इबादत के लिए निर्धारित किया गया, वही है जो मक्का में है, पावन है और सारे संसारों के लिए मार्गदर्शक है’’।
(आले इमरान-95)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि हज़रत आदम व हव्वा अलैहिमस्सलाम के दुनिया में आने के बाद अल्लाह तआला ने जिबरईल अमीन के ज़रिये उनको यह हुक्म भेजा कि वह बैतुल्लाह (काबा) बनाएं, उन बुजुर्गों ने हुक्म का पालन किया तो उनको हुक्म दिया गया कि उसका तवाफ़ करें और उनसे कहा गया कि आप ‘‘अव्वलुन्नास’’ यानी सबसे पहले इंसान हैं और यह घर ‘‘अव्वलु बैत’’ है यानी सबसे पहला घर जो अल्लाह की इबादत के लिए निर्धारित किया गया है। नबी करीम सल्ल0 की इस हदीस से मालूम होता है कि मक्का मुअज़्ज़मा दुनिया का सबसे पुराना और सबसे पहला शहर है जहाँ से इन्सानी आबादी शुरू हुई, इस्लामी इबादात के सबसे बड़े फ़रीज़े हज की अदाएगी मक्का और उसके आस पास के इलाक़ों में होती है यह सब ऐतिहासिक स्थान हैं, जो बहुत ही सम्मानीय और बा बरकत हैं, हज शुरु से आखिर तक हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम उनके बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम और उनकी बीवी हज़रत हाजिरा अलैहिस्सलाम की यादगार है। ‘‘ज़मज़म’’ मस्जिद हराम के अन्दर पानी का यह एक चश्मा है जिसको अल्लाह तआला ने अपनी ख़ास इनायत से हज़रत इस्माईल की प्यास के मौक़े पर पैदा फ़रमाया था जो आज तक हज़ारों साल से जारी है और तरक़्क़ी पर है, और सारी दुनिया सैराब हो रही है। ज़मज़म स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है।
सफ़ा और मरवह बैतुल्लाह से क़रीब पूरब की ओर दो पहाड़ियाँ हैं जहाँ हज़रत हाजिरा अलैहिस्सलाम पानी की तलाश में दौड़ी थीं आज हाजी उसी की यादगार में सात चक्कर लगाते हैं। हज़रत हाजिरा का यह अमल अल्लाह को बहुत प्रिय था।
मक्के का चप्पा चप्पा इस्लामी इतिहास और मुहम्मद सल्ल0 के जीवन काल की यादगार है जहाँ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने जन्म दिन से हिजरत की रात तक अपनी उम्र के 52 साल गुज़ारे यानी बचपन से जवानी तक, मक्के की ऐतिहासिक जगहों में जबले सौर की बड़ी अहमियत है जिसके ग़ार में नबी करीम सल्ल0 ने हिजरत के मौक़े पर तीन रातें गुज़ारीं, इसी प्रकार जबले नूर की बड़ी अहमियत है जिसमें ग़ारे हिरा है, यही वह ग़ार है जिसमें क़ुरआन शरीफ़ की सबसे पहली आयत नाज़िल हुई नबूवत से पहले आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस ग़ार में इबादत के लिए तशरीफ़ लाते थे और तनहाई में बड़ा वक़्त गुज़ारते थे।
मदीन-ए-मुनव्वरहः-
इस्लामी इतिहास में मक्का मुअज़्ज़मा जहाँ बैतुल्लाह है, के बाद सबसे सम्मानीय और पवित्र शहर मदीना मुनव्वरह है, इस्लाम से पहले इस शहर का नाम ‘‘यसरिब’’ था, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मक्का मुकर्रमा से हिजरत करके इस शहर को अपना वतन बना लेने के बाद यह मदीनतुर्रसूल यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का शहर कहलाया जाने लगा और यहीं आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र मुबारक और आपकी बनाई हुई मस्जिद है, इस शहर को भी आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अल्लाह के हुक्म से ‘‘हरम’’ क़रार दिया और इस्लाम के तीन बहुत ही मुक़द्दस शहरों में से एक क़रार पाया, पहला शहर मक्का मुकर्रमा, दूसरा मदीना मुनव्वरा और तीसरा बैतुल मुक़द्दस, मदीना मुनव्वरा में एक नेकी का सवाब एक हज़ार नेकियों के बराबर क़रार पाया है।
अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मदीना पहुँचने के बाद सबसे पहले मस्जिद बनाने के लिए ज़मीन ख़रीदी ताकि अल्लाह की इबादत की जाए, इस्लामी समाज में मस्जिद का केन्द्रीय स्थान है वह एक धु्रव के समान है जिसके गिर्द इस्लामी ज़िन्दगी घूमती है। नबवी काल में यह मस्जिद ख़जूर के तनों और पत्तों से बनी थी, फर्श पर पथरीली कंकरयाँ होती थीं जिस पर नमाज़ी खड़े हो कर नमाज़ पढ़ते थे, एक ख़जूर का तना ख़ड़ा किया गया था जिस का सहारा लेकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ख़ुत्बा दिया करते थे, यह खजूर का तना इतिहास में उस्तूने हन्नाना के नाम से प्रसिद्ध है, बाद में उसकी जगह लकड़ी का मेम्बर बना दिया गया था, हिजरत के सातवें साल नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मस्जिद में इज़ाफ़ा किया था, उसके बाद सन् 17 हिजरी में हज़रत उमर रज़ि0 ने उसकी मरम्मत फरमाई और कुछ इज़ाफ़ा भी फरमाया, उस वक़्त मस्जिद के सुतून खजूर के तनों और छत खजूर के पत्तों की बनाई गई थी, सन् 29 हिज्री में हज़रत उस्मान रज़ि0 ने उसकी नये सिरे से तामीर करवाई और उसकी दीवारें और खम्बे पत्थर और चूने के बनवाए और छत साखू की लकड़ी की बनवाई और मस्जिद की तामीर में बहुत इज़ाफ़ा करवाया, हज़रत उस्मान रज़ि0 के बाद वलीद बिन अब्दुल मलिक के इज़ाफ़ों में कई उम्महातुल मोमिनीन के मकानात मस्जिद नबवी में शामिल किये गये, इसके बाद ख़लीफ़ा और बादशाह अपने अपने ज़माने में इज़ाफ़े और मरम्मत करते रहे लेकिन वलीद बिन मलिक के बाद ख़ास इज़ाफ़े नहीं हुए। 1265 हिज्री में सुलतान अबदुल हमीद उस्मानी ने नई तामीर करवाई उस तामीर में मस्जिद के पाँच दरवाज़े और पाँच मीनारें बने, इस तामीर का दोबारा नवीनीकरण सन् 1372 हिजरी में शाह इब्न सऊद के हुक्म से हुआ, जिसमें मस्जिद के उत्तर ओर रक़बे में इज़ाफ़ा भी किया गया, मस्जिद नबवी के इस निर्माण और नवीनीकरण में निम्नलिखित दरवाज़ों का इज़ाफ़ा हुआ- बाबे अली, बाबुल अज़ीज़, बाब अबू बक्र और बाबे सऊद, बाबे उमर, बाबे उस्मान, इसके अलावा मस्जिद नबवी को चारों तरफ़ सड़कों से घेर दिया गया, इस समय बहुत ही बड़े रक़बे में ख़ूबसूरत और आलीशान मस्जिद है इसी मस्जिद के एक ओर गुम्बदे ख़ज़रा (सब्ज़ गुम्बद) है जिसके नीचे अल्लाह के अन्तिम नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आराम फ़रमा रहे हैं। (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से करीब, ख़लीफ़-ए- अव्वल हज़रत अबू बक्र रज़ि0 और ख़लीफ-ए-दोम हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ि0 की क़ब्र मुबारक हैं।
मदीना मुनव्वरा के ऐतिहासिक स्थानों में मस्जिद नबवी के अलावा जन्नतुल बक़ी का क़दीम क़ब्रिस्तान जिसमें उम्मुल मोमिनीन हज़रत ख़दीजतुल कुबरा रज़ि0 के अलावा तमाम अहले बैत, और बड़ी संख्या में सहाब-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) दफऩ हैं ‘‘दफ़न होगा न कहीं ऐसा ख़ज़ाना हरगिज़’’ मदीना मुनव्वरा से ढाई तीन मील की दूरी पर प्रसिद्ध पहाड़ उहद है जिसके दामन में ग़ज़व-ए-उहद का मशहूर वाक़िआ पेश आया, वहीं एक छोटा सा क़ब्रिस्तान है जिसमें नबी करीम सल्ल0 के चचा सय्यदुश्शुहदा हज़रत हमज़ा रज़ि0 और दूसरे शुहदा दफ़न हैं वहीं अल्लाह के नबी ज़ख़मी हुए और आपका दाँत शहीद हुआ, नबी सल्ल0 ने फ़रमाया उहद पहाड़ हमसे मुहब्बत करता है और हम भी उससे मुहब्बत करते हैं। हुज़ूर सल्ल0 वहाँ तशरीफ़ ले जाते शुहदा- ए-उहद को सलाम व दुआ से नवाज़ते थे। उहद के दामन में आज आबादी हो गई है, उसका नाम सय्यदिना हमज़ा है- मदीना मुनव्वरा के दक्षिण और पश्चिम दिशा में लगभग दो मील की दूरी पर क़ुबा के नाम से एक आबादी है जो बहुत हरी भरी जगह है जहाँ फलों और मेवों के बाग़ात हैं, यहीं वह मस्जिद है जो इस्लाम की सबसे पहली मस्जिद कहलाती है, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सबसे पहला जुमा वहाँ क़ायम किया, र्कुआन में इस मस्जिद की बड़ी फ़ज़ीलत बयान की गई है। सूरः अल- तौबा, आयत-108, सफ़रे हिजरत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आखिरी मनज़िल कुबा थी, जहाँ से आप मदीना मुनव्वरा में दाख़िल हुए थे।
दिखा दे या इलाही वह मदीना कैसी बस्ती है।
जहाँ पर रात दिन मौला तेरी रहमत बरसती है।।