क़ुरआन की शिक्षा
सूर-ए-हूदः-
अनुवादः-
और अगर आपका पालनहार चाहता तो सब लोगों को एक ही तरीक़े पर कर देता जब कि वे तो हमेशा मतभेद ही में रहते हैं(118) सिवाय उनके जिन पर आपके पालनहार ने दया की और इसीलिए उसने उनको पैदा किया है और आपके पालनहार की बात पूरी हुई कि हम दोज़ख को जिन्नों और आदमियों से इकट्ठे भर कर रहेंगे(1)(119) और रसूलों की जो भी घटनाओं में से हम आपको सुना रहे हैं वह इसलिए कि उससे आपके दिल को शक्ति दें और इस सिलसिले में आपके पास सही बात पहुँच गई और यह ईमान वालों के लिए नसीहत और याद देहानी (स्मरण) है(2)(120) और जो ईमान नहीं लाते उनसे आप कह दीजिए कि तुम अपनी जगह काम में लगे रहो हम भी लगे हुए हैं(121) और तुम भी इन्तिज़ार करो हम भी इन्तिज़ार कर रहे हैं(122) और आसमानों और ज़मीन के ढके-छिपे का मालिक अल्लाह ही है और सब कुछ उसी की ओर लौटता है तो आप उसी की बंदगी में लगे रहें और उसी पर भरोसा रखें और तुम सब जो भी करते हो आपका पालनहार उससे बेख़बर नहीं है(123)।
सूर-ए-यूसुफ़ः-
अनुवादः-
अलिफ लाम राॅ, यह खुली किताब की आयतें हैं(1) हमने इसको अरबी (भाषा का) कुरआन उतारा है ताकि तुम समझ सको(3)(2) हम इस कुरआन के ज़रिए हमने आपकी ओर भेजा है आपको एक बहुत ही अच्छी कहानी (उत्तम शैली में) सुनाते हैं जबकि इससे पहले आप अवगत न थे(4)(3) जब यूसुफ़ ने अपने पिता से कहा कि ऐ मेरे अब्बा जान! मैंने ग्यारह सितारों और सूरज और चाँद को देखा, देखता हूँ कि वे मुझे सज्दा कर रहे हैं(4) उन्होंने कहा कि ऐ मेरे बेटे! अपना सपना अपने भाइयों को मत बताना कहीं वे तुम्हारे लिए कोई चाल चलने लग जाएं, बेशक शैतान इंसान का खुला दुश्मन है(5)(5) और इसी तरह तुम्हारा रब तुम्हें चुन लेगा और तुम्हें बातों का सही मतलब निकालना सिखाएगा और अपने उपकार तुम पर और याकूब की संतान पर पूरे करेगा जैसे उसने पहले तुम्हारे दो बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ पर उसको पूरा किया था, बेशक तुम्हारा रब खूब जानने वाला हिकमत (तत्वदर्शिता) वाला है(6) यूसुफ और उसके भाइयों में पूछने वालों के लिए बेशक बड़ी निशानियाँ हैं(6)(7) जब सौतेले भाई आपस में कहने लगे कि यूसुफ़ और उसका सगा भाई हमारे पिता को हमसे अधिक प्यारे हैं जब कि हम मज़बूत लोग हैं बेशक हमारे पिता खुली गलती कर रहे हैं(7)(8) यूसुफ़ को क़त्ल कर दो या किसी और जगह डाल आओ ताकि तुम्हारे पिता का ध्यान केवल तुम्हारे ही लिए रह जाए और उसके बाद तौबा करके तुम लोग भले बन जाना(9) उनमें एक बोला कि अगर तुम्हें करना ही है तो यूसुफ़ को क़त्ल मत करो और उसको गहरे कुँवे में डाल दो कि कोई उसको उठा ले जाए(10) वे बोले ऐ अब्बा जान! आपको क्या हो गया कि यूसुफ़ के बारे में हम पर विश्वास नहीं करते और हम तो उसके शुभचिंतक ही हैं(11) कल उसको हमारे साथ भेज दीजिए ताकि खाए और खेले और हम उसकी सुरक्षा के पूरे ज़िम्मेदार हैं(12) उन्होंने कहा कि तुम्हारे उसको ले जाने से मुझे ज़रूर दुख होगा और मुझे डर है कि ‘‘कहीं उसे भेड़िया न खा जाए’’ और तुम उससे बेख़बर रहो(13) वे बोले की हम मज़बूत लोग हैं फिर अगर उनको भेड़िया खा गया तो हम बड़े निकम्मे ठहरे(14)।
तफ़्सीर (व्याख्या)ः-
1. अल्लाह की तकवीनी (चाहत) यही हुई कि सबको एक रास्ते पर न डाला जाए बल्कि दोनों रास्ते बता दिये जाएं, अब ग़लत रास्ते पर वही पड़ते हैं जो शुद्ध प्रकृति के उलटा चलते हैं और मतभेद करते हैं और जिन पर अल्लाह ने सत्यवाद के कारण दया की वे सही रास्ते पर हैं, अब जो ग़लत रास्ते पर हैं दोज़ख उन्हीं से भरी जाएगी।
2.मालूम हुआ कि पैग़म्बर और सहाबा और अल्लाह के दोस्तों की सच्ची कहानियों से दीन पर मज़बूती से जमने में मदद मिलती है।
3. पवित्र कुरआन के पहले संबोधित अरबवासी थे जिनको अपनी भाषा पर गर्व था, इसीलिए पवित्र कुरआन को शुद्ध अरबी भाषा में उतारा गया।
4. मात्र हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ही की कहानी है जिसको एक ही स्थान पर बयान किया गया है और इसमें ईमान वालों के लिए बड़ा उपदेश भी है और सांत्वना भी।
5. हज़रत याक़ूब अलै0 के बारह बेटे थे उनमें दो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और बिनयामीन एक माँ से थे, बाक़ी दूसरी माँ से थे, हज़रत याकू़ब अलै0 को आशंका हुई कि यह सपना सुनकर भाइयों में हसद (ईष्र्या) न पैदा हो जाए और शैतान के बहकावे में आ कर वे यूसुफ़ के विरुद्ध कोई कार्यवाही न कर बैठें, इसलिए उन्होंने हज़रत यूसुफ़ को सपना बताने से मना किया, और उसका मतलब उनको बता दिया कि एक दिन अल्लाह तुमको ऊँचा मक़ाम देगा, नबी बनाएगा कि सब भाई तुम्हारे आगे झुकने पर मज़बूर होंगे।
6. कुछ हदीसों में है कि यहूदियों ने हज़रत मुहम्मद सल्ल0 से यह प्रश्न पुछवाया था कि बनी इस्राईल फ़िलिस्तीन से मिस्र में आ कर कैसे आबाद हुए, उनका ख़्याल था कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उत्तर न दे सकेंगे लेकिन अल्लाह तआला ने इतने विस्तार से पूरी घटना बयान कर दी कि परेशान हो गये और ईमान वालों कोे इसमें बड़ी हिकमत व नसीहत की बातें हाथ आयीं।
7. हज़रत यूसुफ़ अलै0 और उनके भाई छोटे थे, माँ का निधन हो चुका था, हज़रत यूसुफ़ का उज्जवल भविष्य उनके सामने था इसलिए स्वाभाविक रूप से हज़रत याकूब उन पर ध्यान देते थे, यह बात और भाइयों को गवारा न थी और वे यह समझते थे हम बलवान हैं, पिता जी के काम आने वाले हैं, इसके बावजूद उनका ध्यान छोटे और कमज़ोर भाईयों की ओर है, निश्चित रूप से यह अब्बा जान की ग़लती है।
टअअ
प्यारे नबी की प्यारी बातें
अल्लाह का इरशाद हैः-
अनुवादः-
मर्द औरतों के हाकिम और रक्षक हैं, इसलिए कि खुदा ने एक दूसरे पर बड़ाई दी है और इसलिए भी कि मर्द अपना माल खर्च करते हैं।
(सूरः निसा-34)
भलाई के कामों में भी पति की अनुमति ज़रूरी हैः-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया पति घर में मौजूद हो, और कोई औरत उसकी अनुमति के बिना (नफ़्ल) रोज़ा रख ले तो सही नहीं। ऐसे ही पति की अनुमति के बिना किसी को घर में आने की अनुमति देना दुरुस्त नहीं।
(बुखारी व मुस्लिम)
पति की फरमांबरदारीः-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया अगर पति पत्नी को अपने बिछौने पर बुलाए और वह न आए, फिर पति पूरी रात उस पर नाराज़ हो कर गुज़ार दे तो फरिश्ते सुबह तक उस पर लअ़नत (धिक्कार) करते रहते हैं।
(बुखारी व मुस्लिम)
पति की नाशुक्री (कृतघ्नता) करना पत्नी के लिए अज़ाब (दण्ड) का कारणः-
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया मुझे जहन्नम दिखाई गई, मैंने देखा कि उसमें वो औरतें ज़्यादा हैं जो कुफ्र करती हैं। आपसे पूछा गया कि क्या वो अल्लाह का इन्कार करती हैं? आप सल्ल0 ने फरमाया वो शौहर की नाशुक्री करती हैं और एहसान की नाशुक्री करती हैं, अगर तुम उनमें से किसी के साथ ज़िन्दगी भर भलाई करो, फिर वह तुम्हारी तरफ़ से एक बार भी कोई नापसन्दीदा चीज़ देख ले तो कहेगी कि तुमने मेरे साथ कभी कोई भलाई ही नहीं की है। (बुखारी)
पति की खुशी में पत्नी की मुक्ति हैः-
हज़रत उम्मे सलमा रज़ि0 बयान करती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया जो औरत इस हाल में मरी कि उसका पति उससे खुश है, वह जन्नत में चली गई। (तिर्मिज़ी)
पति की श्रेष्ठताः-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया अगर किसी के लिए किसी आदमी को सज्दा करने की अनुमति होती तो मैं औरत को हुक्म देता कि वह अपने पति को सज्दा करे (उसके सामने माथा टेके)
(तिर्मिज़ी)
सबसे अच्छी औरतः-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 से पूछा गया कौन सी औरत सबसे अच्छी है? आप सल्ल0 ने फरमाया सबसे अच्छी औरत वह है जिसको पति देखे तो खुश कर दे, कोई हुक्म दे तो उसको पूरा करे, और उसकी अनुपस्थिति में अपने अन्दर या पति के माल में ऐसा तसर्रुफ (व्यय) न करे जिसको पति ना पसन्द करता हो। (नसई)
औरत आज़माइश हो सकती हैः-
हज़रत उसामा बिन ज़ैद बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया मेरे बाद मर्दों के लिए औरतों से ज़्यादा नुकसान पहुँचाने वाली कोई आज़माइश नहीं होगी।
(बुख़ारी व मुस्लिम)
अल्लाह के रसूल सल्ल0 की चेतावनीः-
हज़रत हुसैन बिन मिहसन रज़ि0 बयान करते हैं कि उनकी एक फूफी अल्लाह के रसूल सल्ल0 के पास आईं, आप सल्ल0 ने उनसे पूछा तुम्हारे पति हैं? उन्होंने कहा जी हाँ! आप सल्ल0 ने फरमाया तुम्हारा उनके साथ क्या व्यवहार रहता है? उन्होंने जवाब दिया, मैं उनकी कोई चिंता नहीं करती अलावा ऐसे काम में जिसको मैं खुद न कर सकूँ। आप सल्ल0 ने फरमाया यह तुम उसके साथ क्या करती हो, वही तुम्हारी जन्नत और दोज़ख़ है। (नसई)
औरत को शुक्रगुज़ार होना चाहिएः-
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल-आस रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया अल्लाह तआला उस औरत की तरफ न देखेगा जो अपने पति की शुक्रगुज़ार न हो, जब कि वह उससे अलग-थलग हो कर नहीं रह सकती। (नसई)
अअअ
नव वर्ष
मासिक पत्रिका ‘‘सच्चा राही’’ का यह अंक आपकी सेवा में जिस समय पहुँचेगा, उस समय आप गत वर्ष सन् 2023 को अलविदा कह रहे होंगे और नव वर्ष 2024 का स्वागत कर रहे होंगे, ज़िन्दा क़ौमें ऐसे अवसर पर अपने बीते हुए साल का जाएज़ा लेती हैं और विचार करती हैं कि हमने क्या खोया और क्या पाया, यदि हमसे ग़लतियाँ और कोताहियाँ हुईं तो फिर उनको न दोहराएं, दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जिन्होंने अपने समय की क़दर की हो और उसका मूल्य अदा किया हो, ‘‘गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं’’ समय के संबंध से यह बात बीच में आ गई वास्तविक और मौलिक बात बीते हुए साल और आने वाले साल की है, पिछले साल मौत, ज़िन्दगी, खुशी और ग़मी की कितनी घटनाएं घटीं, वह सब बातें शायद हमारे और आप की जानकारी में सुरक्षित न हों, लेकिन फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर इस्राईल के वहशियना हमले और ख़ौफ़नाक बम्बारी को कोई छोटा बड़ा इन्सान नहीं भूल सकता है, आज की डिजिटल मीडिया ने पूरे विश्व को इस्राईली बरबरता दिखला दी, बर्बरता के ऐसे दृश्य सामने आए जिनको देखने के बाद यह कहना पड़ता है कि इन्सान के रूप में जंगल के यह शेर और भेड़िये हैं, जिनके मुँह इन्सान का खून लग चुका है।
07 अक्तूबर, 2023 से इस्राईल और फ़िलिस्तीन के बीच जो जंग शुरु हुई थी वह अब तक जारी है, बीच में पाँच से छः दिनों की जंगबन्दी हुई थी उसके बाद घमासान की लड़ाई हो रही है, जंग की जो तफ़सीलात आ रही हैं उससे मालूम होता है कि इस्राईल, ग़ाज़ा पट्टी पर ज़मीनी, हवाई और समुद्री रास्तों से हमलावर है तबाही और बरबादी के जो मनाज़िर सामने आ रहे हैं वह नाक़ाबिले बयान हैं, और दिल को दहलाने वाले हैं, एक तरफ़ लशकरे जर्रार है और दूसरी ओर निहत्थे फ़िलिस्तीनी अरब हैं, इस्राईली अत्याचार और बरबर्ता के सामने अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के परख़च्चे उड़ गये, हज़ारों माओं की गोदें सूनी हो गईं जिनके मासूम और ख़ूबसूरत बच्चे इस्राईली बम्बारी में तड़प तड़प कर मर गये, जो ज़िन्दा बचे उनके शरीर घायल और बमों की आग से झुलसे हुए हैं, अगर हक़ीक़त की निगाह से देखा जाए तो, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह तृतीय विश्वयुद्ध है, इस्राईल इस जंग में तनहा नहीं है उसके साथ दुनिया की सुपर पावर अमरीका जो अपने हथियारों और पूरी आर्थिक सहायता के साथ इस्राईल के साथ खड़ा है, इसके अलावा बरतानिया, फ्रांस जर्मन, यूरोप के सभी देश हैं यह वही देश हैं जिनकी कूटनीति और षडयंत्र की वजह से इस्राईल वजूद में आया, इतिहास का अध्ययन करने वाले भलीभांति जानते हैं कि ब्रिटिस इम्पाएर और उसके सहयोगियों ने अपने जाती फ़ायदे और मध्य पूर्व देशों पर अपना कन्ट्रोल मज़बूत करने के लिए इस्राइलियों (यहूदियों) को दूसरे देशों से ला कर फ़िलिस्तीन की सर ज़मीन पर आबाद किया यह सारी राजनीति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साकार हुई और 1948 ई0 में इस्राईल स्टेट घोषित हुई, उसके बाद फिलिस्तीनियों को तंग किया जाने लगा उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा होने लगा, अभी तक छोटी झड़पें और छोटी जंगें होती थीं, 1962, 1972 में जो जंगे हुईं थी वह हफ़्ते दस दिन में थम गईं थीं, लेकिन इस बार 7 अक्तूबर, 2023 को जो युद्ध छिड़ा, थमने का नाम नहीं ले रहा है, बीच में पाँच छः दिन के लिए जंग बन्दी हुई, लेकिन उसके बाद भयानक जंग शुरु हो गई। वायु सेना और समुद्री सेना और ज़मीनी फ़ोर्सेज़ हर ओर से फ़िलिस्तीनी घिरे हुए हैं, ऐसी हालत में वह अपना कितना और कैसे बचाव कर सकते हैं इसका अन्दाज़ा हम और आप यहाँ बैठ कर नहीं कर सकते हैं, एक तनहा फ़िलिस्तीन जिस पर आक्रमणकर्ता इस्राईल और उसके सहयोगी सुपर पावर अमरीका और पूरा यूरोपियन ब्लाक, इतने शत्रुओं के बीच में फ़िलिस्तीन डटा हुआ है, जहाँ चारों ओर बच्चे, बूढे और जवानों की बिखरी हुई लाशें हैं, जिनको दफ़न करने का इन्तिज़ाम भी नहीं, हम कैसे कहें कि 21वीं सदी की यह दुनिया पढ़ी लिखी, उन्नतिशील और प्रगतिशील है। कहा जाता है कि इस भूमण्डल पर वह उम्मत भी रहती है जिसको क़ुरआन में ‘‘ख़ैर उम्मत’’ के टाईटल से याद किया गया है और वह 57 देशों की मालिक भी है, उस उम्मत को नबी की ओर से आदेश दिया गया था, कि ‘‘तुम अपने भाई की मदद करो चाहे वह ज़ालिम हो या मज़लूम’’ फ़िलिस्तीनी भाइयों को हिंसा और रक्तपात से कब नजात मिलेगी, यह अल्लाह ही बेहतर जानता है इंशाअल्लाह उनकी यह क़ुरबानियाँ रंग लायेंगी, परद-ए-ग़ैब से ख़ैर का दरवाज़ा ख़ुलेगा।
फ़िलिस्तीनी भाइयों ने सब्र औेर इस्तिक़ामत की मिसाल क़ाएम कर दी। अल्लाह ने ऐसे बन्दों की बड़ी तारीफ़ की है।
मैं समझता हूँ कि वह अपने दुशमनों को संबोधित करते हुए कह रहे हैंः-
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में है।।
बुद्धिमान और समझदार इंसान वही है जो अपनी समीक्षा स्वयं करे कि दिन व रात के 24 घण्टों में कितने काम हमने लाभदायक किए और कितने हानिकारक, इस दृष्टिकोण से जब हम बीते हुए साल को देखेंगे तो हम अपने को घाटे में पाएंगे, जो समय चला गया पलट कर नहीं आएगा, अब हम नये वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, सबसे पहले हम प्रतीज्ञा करें कि पिछली ग़लतियों को नहीं दोहराएंगे, आने वाले साल में पूरी ज़िम्मेदारी के साथ अपने कर्तव्य को पूरा करेंगे, वह कर्तव्य ‘‘हुक़ू कुल्लाह’’ और ‘‘हुक़ूक़ुल इबाद’’ दोनों से संबंधित हैं यानी अल्लाह और उसके बन्दों दोनों का हक़ अदा किया जाए, एक मुसलमान के लिए हर हाल में अल्लाह का अज्ञा पालन अनिवार्य है, इसके बिना वह मोमिन और मुस्लिम नहीं, कर्तव्यों की एक लंबी सूची है, जिसकी तफ़सील आपको किताबों में मिल जाएगी, ईमान लाने के बाद इंसान पर सबसे पहला कर्तव्य नमाज़ को निर्धारित समय पर पढ़ना, सूरः निसा, आयत नं0- 103 के अनुकूल ‘‘बेशक नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर फ़र्ज़ है’’ नमाज़ का समय पर पढ़ना इस्लाम का मौलिक कर्तव्य है, अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फ़रमायाः- जिसने जानबूझ कर नमाज़ छोड़ दी वह कुफ्ऱ की सीमा में पहुँच गया। हम अल्लाह को हाज़िर व नाज़िर समझ कर दिल से प्रतिज्ञा करें प्रत्येक नमाज़ को उसके निर्धारित समय पर अदा करेंगे ताकि अल्लाह के फ़रमांबरदार बन्दों में हमारा नाम लिखा जाए। आने वाले साल के लिए हम यह भी प्रतिज्ञा करें कि हम अपने घरों और महल्लों से जिहालत को दूर करेंगे, इस जिहालत को दूर करने में जो परेशानियाँ और मुसीबतें होंगी उनको बर्दाश्त करेंगे, हमारा कोई बच्चा और बच्ची शिक्षा से वंचित न रहेगा, जिहालत एक कलंक है उसको मिटाइये, कि वास्तविकता यह है कि शिक्षा के मैदान में मुसलमनों का ग्राफ बहुत नीचे है, यदि हम चाहते हैं कि समाज में हमारा सम्मानीय स्थान हो, दुनिया और आख़िरत की हमें सफलता मिले तो दृढ प्रतिज्ञा करें कि अपने बच्चों को और क़ौम के बच्चों को शिक्षित बनाएंगे, ‘‘नव वर्ष का स्वागत नई उमंग और नये इरादों के साथ करें, गफ़लत और लापरवाही छोड़ कर बेदार और जागरूक बनें।
अमल से ज़िन्दगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी।
यह ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है।।
टअअ
इस्लामी अक़ीदे (विश्वास)
कब्र में सवाल व जवाबः-
सह़ी हदीस शरीफ़ में आया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः मरने के बाद क़ब्र में दो फरिश्ते आते हैं और वो मरने वाले से तौहीद व रिसालत के बारे में सवाल करते हैं, अबू दाऊद की रिवायत में आता है-
अनुवादः- ‘‘हज़रत अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कबीला बनू नज्जार के एक खजूर के बाग़ में तशरीफ ले गये, वहाँ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बहुत खौफ़नाक आवाज सुनी, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया- ये कब्रें किन लोगों की हैं? सहाबा ने अर्ज किया- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! ये उन लोगों की कब्रें हैं जो जाहिलियत के ज़माने में इंतेकाल कर गए, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमायाः अल्लाह की पनाह मांगो अ़जाबे क़ब्र और दज्जाल के फित्ने से। सहाबा ने अर्ज किया- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अ़जाबे क़ब्र किस वजह से होता है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया- जब मोमिन क़ब्र में रख दिया जाता है तो उसके पास एक फरिश्ता आता है और उससे कहता है- ‘‘तुम किसकी इबादत किया करते थे? अगर अल्लाह ने उसे हिदायत दी थी तो वो कहता है- ‘‘मैं अल्लाह की इबादत करता था’’ फिर उससे कहा जाता है तुम इस शख़्स के बारे में क्या कहते हो?’’ तो वो कहता है वो अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं’’ फिर उससे कहा जाता है ‘‘तुम्हारा दीन क्या है? वो कहता है ‘‘मेरा दीन इस्लाम है’’, फिर उसके बाद उससे किसी चीज़ के बारे में सवाल नहीं किया जाता, फिर उसको जहन्नम में उसके घर की तरफ ले कर जाया जाता है- और उससे कहा जाता है- ‘‘जहन्नम में तुम्हारा ये ठिकाना था, लेकिन अल्लाह तआला ने तुमको इससे बचा लिया और तुम पर रहम किया, इसलिए इसके बदले में तुम को जन्नत में एक घर अता फरमाया है, तो वो बन्दा कहता है ‘‘मुझे इजाजत दे दीजिये कि मैं ये ख़ुशख़बरी अपने घर वालों को सुना सकूँ, लेकिन उससे कहा जाएगा कि तुम यहीं आराम करो, और जब काफिर को क़ब्र में लिटाया जाता है, तो उसके पास एक फरिश्ता आता है और उसको झिंझोड़ता है, और उससे कहता है ‘‘तुम दुनिया में किसकी इबादत करते थे?’’ तो वो जवाब देता है ‘‘मैं नहीं जनता’’ फिर उससे कहा जाएगा कि न तूने समझा और न ही पढ़ा, फिर उससे पूछा जाएगा ‘‘तुम इस शख़्स के बारे में क्या कहते हो?’’ वो जवाब देगा जो लोग कहते थे वही मैं भी कहता हूँ। ‘‘फिर इसके बाद उसके कानों के दरमियान एक हथौड़ा मारा जाएगा, जिससे उसकी ऐसी चीख़ निकलेगी जिसको जिन्नात व इंसान के अलावा साऱी मख़लूक सुनेगी।’’
कुरआन मजीद की आयतों में इसकी तरफ इशारा मौजूद है, इरशाद हैः-
अनुवादः- ‘‘और अल्लाह ईमान वालों को मज़बूत बात से इस दुनिया में भी मज़बूत करता है और आख़िरत में भी, और अल्लाह जालिमों को गुमराह करता है और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है।
(सूरः इब्राहीम -27)
इसकी तफ़्सीर सहीह हदीसों में यही बयान की गयी कि इससे मुराद क़ब्र में तौहीद व रिसालत के बारे में सवाल होने वाले हैं, सहीह मुस्लिम की रिवायत में आता है-
अनुवादः- ‘‘हज़रत बरा बिन आजिब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि फरमाते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया- ‘‘और अल्लाह ईमान वालों को मजबूत बात से इस दुनिया में भी मजबूत करता है और आखिरत में भी, और अल्लाह जालिमों को गुमराह करता है और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है। ‘‘ये आयात अजाबे कब्र के बारे में नाजिल हुई हैं, बंदे से मालूम किया जाएगा तुम्हारा रब कौन है? वो जवाब देगा मेरा रब अल्लाह है, और मेरे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं मानो अल्लाह तआला के इस क़ौल ‘‘और अल्लाह ईमान वालों को मजबूत बात से इस दुनिया में भी मजबूत करता है और आखिरत में भी, और अल्लाह जालिमों को गुमराह करता है और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है’’। इससे मुराद बंदे का इस तरह जवाब देना है।
(सहीह मुस्लिम हदीस नं० 7398)
आलमे बरजख़ में जो कुछ होता है जाहिरी तौर पर मरने वाले के जिस्म पर उसकी निशानियाँ नज़र आती हैं, इसलिए कि उसका असल तअल्लुक रूह से होता है, और बड़ी हद्द तक उसकी मिसाल गहरी नींद से दी जा सकती है, सोने वाला न जाने ख़्वाब में कहाँ कहाँ की सैर करता है, और तरह तरह की खुशियां उसको हासिल हो रही होती हैं, या सख़्त तकलीफ महसूस कर रहा होता है लेकिन पास बैठा हुआ दूसरा इंसान इसको बिल्कुल महसूस नहीं कर पता, इसी तरह मरने वाले के एहसास का तअल्लुक उसकी रूह से होता है और उसके साथ जो कुछ हो रहा है उसको दूसरा उसके जिस्म पर महसूस नहीं कर सकता, कि वो आलम ही दूसरा है।
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जंग पसंद टोला
अमरीका का नाम यूं तो बहुत बड़ा है, लेकिन उम्र के लिहाज़ से वह कुवैत से भी छोटा है। यहां अलग-अलग मुल्कों, अलग-अलग तहज़ीबों, अलग- अलग अक़ीदों, अलग-अलग तबीयतों, अलग-अलग- ज़बानों और अलग-अलग नजरियों और ख़्यालों के लोग रहते हैं। अमरीका में कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो उनको आपस में जोड़ कर रख सके और उनमें इत्तिहाद पैदा कर सके, सिवाए इसके कि उनको कोई बाहरी ख़तरा दिखाया जाए और उसकी दहशत उनके दिलों में पैदा की जाए और उससे डरा कर उनको अपने आपसी इख़्तिलाफ़ात व झगड़े भुला कर एक रहने पर मजबूर किया जाए। यही वजह है कि अमरीका को हर कुछ दिन में एक नये दुश्मन की तलाश रहती है और वह मीडिया की मदद से नया दुश्मन तलाश करने में कामयाब भी हो जाता है। कुछ ग़लती और नासमझी उसके दुश्मन की तरफ़ से भी होती है जो अपनी नादानी की वजह से अमरीका के लिए राह हमवार कर देता है।
अमरीका अगर ऐसा न करे तो वह खुद खानाजंगी (गृहयुद्ध) का शिकार हो जाए और वहां आबाद अलग अलग क़ौमों के लोग एक दूसरे के खिलाफ़ झगड़ते नज़र आएं और खुद अमरीकी हुकूमत और अमरीकी सदर को ले कर इतने सवालात खड़े किये जाएं जिनका जवाब देना अमरीकी सदर के लिए मुश्किल हो जाए। इन्हीं सवालों से बचने के लिए अमरीकियों को एक दुश्मन दिखा कर और दुश्मन भी ऐसा जो एक साथ पूरे यूरोप, अमरीका और उसके सहयोगी देशों को इस तरह धमकी दे रहा हो कि अब घुसा कि तब घुसा, अमरीकी हुकूमत अपना मकसद पूरा करने में कामयाब हो जाती है।
1950 ई से 1975 ई0 तक वियतनाम को दुश्मन की शक्ल में पेश करता रहा और इस तरह पच्चीस साल तक मुल्क में जंग का माहौल बना कर अमरीकी हुकूमत अपनी अवाम को बेवकूफ बनाती रही, इसके बाद उसने कोरिया का हव्वा खड़ा किया, फिर अरब दुनिया का शिकार करने के लिए उसने ईरान को अपने जाल के तौर पर इस्तेमाल किया। सद्दाम हुसैन और उनके केमिकल हथियारों का ख़ौफ़ अपने अवाम के दिल में पैदा करके उनको बेवकूफ बनाया। अरब मुल्क, दहशत पैदा करके जितना उनको दुह सकता था दुहा। कभीओसामा बिन लादेन का इस्तेमाल किया और कभी अबू बकर बग़दादी का, कभी मुल्ला उमर का नाम अख़बारों की सुर्ख़ियों में आता था तो कभी ऐमन ज़वाहिरी का, कभी तालिबान से डराया तो कभी दाइश से, और उनके बारे में फे़क वीडियोज़ जो दिखाई जा सकती थीं वह दिखाईं। यह सब काम एक मक़सद के तहत बड़ी मंसूबा बन्दी से और मुआफ़िक़ और मुख़ालिफ़ दोनों की नफ़्सियात का गहरा मुताला करके किए गए। दुनिया कुछ समझती रही और होता कुछ रहा।
सच्ची बात यह है कि अमरीका यह सब चालें इसलिए चलता है क्योंकि वह जानता है कि अगर उसने अपना कोई खारिजी दुश्मन न बनाया और अपने लोगों के दिलों में उस दुश्मन का डर न बिठाया तो यक़ीनन वह आंतरिक अराजकता और व्याकुलता और अलग-अलग तबकों व क़बीलों के दरमियान अक़ीदा व ज़बान और तहज़ीब व सक़ाफ़त की बुनियाद पर होने वाली खानाजंगी का न थमने वाला एक ऐसा सिलसिला शुरु हो जाएगा कि उसके बाद चाहे वह अपनी फ़ौजी ताक़त में कितना मज़बूत क्यों न हो मगर उसको अपने खित्ते में होने वाली अन्दरूनी कशमकश पर कन्ट्रोल पाना मुमकिन न होगा।
उसकी कामयाबी इसी में है कि वह अपनी अवाम को हमेशा यह तास्सुर देता रहे कि वह जंग की हालत में है। एक सियासी विश्लेषक ने इस जंग पसंद टोले के बारे में कहा कि एक ख़ास फ़ौजी नज़रिया अमरीका की पाॅलिसी में शामिल है जिसकी वजह से वह हमेशा अपने मुल्क के बाहर किसी न किसी दुश्मन से जंग करने के इन्तिज़ार में रहता है। यही वजह है कि वह हिकमत-ए-अमली के तौर पर जिन मुल्कों को निशाना बनाना चाहता है तो उनके अन्दरूनी मसाएल को हवा देता है और इलाक़ाई कशमकश पैदा करके दखल अंदाज़ी का मौक़ा और साथ-साथ हथियारों की सप्लाई का रास्ता निकाल लेता है।
अमरीकी सरमायादारना निज़ाम की कामयाबी का आधार वैश्विक बाज़ार की मज़बूती और उसकी आयात-निर्यात को अमरीकी अर्थव्यवस्था के नफ़े के लिए कन्ट्रोल करने में निहित है। इसलिए कि अमरीकी मईशत (अर्थव्यवस्था) का दारोमदार तरक़्क़ी पसंद मईशत पर नहीं, बल्कि जंगी मईशत पर आधारित है। यही वजह है कि अमरीका जंगों पर मजबूर है और इसलिए कई बार ऐसा भी हुआ है कि उसने महज़ अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए बग़ैर किसी वजह से जंगें छेड़ीं हैं।
अमरीका की जो कम्पनियां हथियार बनाती हैं और जो पूंजीवादी लोग उन कम्पनियों के मालिक होते हैं वह लोग अमरीकी हुकूमत में सबसे ज़्यादा अहमियत के हामिल होते हैं, या उन लोगों के हुकूमती सतह पर तिजारती ताल्लुक़ात (व्यापारिक संबंध) बेहद मज़बूत होते हैं, जिसकी बुनियाद पर उन कम्पनियों को ग़ैर मामूली मुनाफ़ा हासिल होता है, क्योंकि जब जंगे छिड़ती हैं और वह देर तक चलती हैं तो उनमें ख़र्च होने वाली रक़म यही कम्पनियां इत्तिहादी या शिकस्तखुर्दा ममालिक को अदा करती हैं, यह याद रहे कि अमरीका में हथियार बनाने वाली पन्द्रह कम्पनियों में से तेरह कम्पनियां यहूदियों की हैं, जिस तरह हथियार बन रहे हैं उसी तरह उसकी खपत भी चाहिए और उसके लिए मंडी भी चाहिए और ऐसे ख़रीदार चाहिए जो उन हथियारों की खरीदारी की ताक़त रखते हैं। पेट्रोल की दौलत से मालामाल अरब देशों से बेहतर हथियारों का खरीदार और कौन हो सकता है, जिनका काम सिर्फ़ हथियार खरीदना, स्टाक करना और आपस ही में उसे इस्तेमाल कर लेना है। मजीद यह कि जब जंगबन्दी की जाती है तो उसके बाद तामीर का काम शुरु होता है और उस वक़्त यह अमरीकी कम्पनियां आगे बढ़ कर तामीर के नाम पर खूब मुनाफ़ा हासिल करती हैं और इस तरह तामीर व तरक़्क़ी के नाम पर अरब मुल्कों की तिजोरियों के मुंह खुल जाते हैं और फिर एक बार अमरीकी और यहूदी तामीराती कम्पनियों के एकाउन्ट में रक़में आने लगती हैं, गोया कि अमरीका ढाने के भी पैसे लेता है और बनाने के भी।
यही वह राज़ है जिसकी वजह से हर जंग, हर सियासी कशमकश, हर बग़ावत और हर फ़ौज़ी इन्क़िलाब या हर हुकूमती और नस्ली टकराव के पीछे अमरीका का हाथ नज़र आता है, इसलिए कि इसकी ज़िन्दगी जंगों में ही है और अगर यह ख़ारजी जंगें न हों तो यक़ीनी बात है कि अमरीका थक हार कर अपनी मौत आप मर जाए।
भारत के अतीत में मुस्लिम शासकों की धार्मिक निष्पक्षता
हिन्दुओं के धार्मिक पेशवाओं का सम्मानः-
और जो बातें ज़ियाउद्दीन को लिखना चाहिए था, उनको प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद ने लिख कर अपनी सत्यवादिता का परिचय दिया। वह अपनी किताब हिस्ट्री आॅफ़ कर्दना टकर््स में सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक के शासनकाल पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैंः-
पूरी सल्तनत की व्यवस्था का गहरा अध्ययन किया जाए तो अनुमान होगा कि मुसलमानों का शासन अब अच्छी तरह स्थापित हो गया था। मुसलमानों की सेना से कूच करते समय वह पहले जैसा भेदभावपूर्ण जोश भी समाप्त हो रहा था। उनके व्यवहार में पहले जैसी कठोरता नहीं रह गई थी। जीवन जब शान्तिपूर्ण हो गया तो राजनैतिक कर्तव्यों का रूप भी बदल गया और विकासशील विचार भी पैदा होते गये। हिन्दुओं के साथ अच्छा व्यवहार किया जाने लगा और शासक वर्ग को भी उदारता और सामाजिक सद्भाव का एहसास पैदा होता गया। चाहे यह कितना ही कम क्यों न रहा हो, एक विकसित सल्तनत में तरह-तरह की समस्याएं उठती रहीं जिसके कारण एक शासक को ऐसी नीति अपनानी पड़ी कि वह स्वयं भी रहे और दूसरों को भी रहने दे। इसीलिए सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक ने हिन्दुओं के विरुद्ध कोई अशोभनीय व्यवहार नहीं अपनाया बल्कि उसने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया और उनको पद प्रदान किए उसने सती की प्रथा पर भी प्रतिबन्ध लगाया जो उसकी उदारता का प्रमाण है।
फ़िरोज़शाह तुग़लक (135-88) बड़ा धार्मिक शासक हुआ है। ज़ियाउद्दीन बरनी उससे बहुत प्रसन्न दिखायी देते हैं, उसके बारे में लिखते हैंः-
‘‘दिल्ली के तख्त पर फ़िरोज़शाह जैसा नेक दिल बादशाह बैठा हुआ किसी को नहीं देखा।’’
लेकिन क्या उसने क़ाज़ी मुग़ीसुद्दीन के उपदेशों का पालन किया, कदापि नहीं, उस युग का इतिहासकार शम्स सिराज अफ़ीफ़ भी फ़िरोज़शाह का बड़ा प्रशंसक है, वह पहले तो यह कहता है कि एक बादशाह को देश के लिए कैसा होना चाहिए, इस पर चर्चा करते हुए उसने जो कुछ लिखा है उसके प्रमाण में पवित्र क़ुरआन की आयतें, हदीस की रिवायतें, बुजुर्गों और पिछले शासकों के मत भी प्रस्तुत किये हैं, जिनका निचोड़ यह है कि एक राजा सभी लोगों के साथ दिल से स्नेह रखता है। सामान्य लोगों को अपनी कृपा के मेह से लाभ पहुँचाता है और बरसने वाले बादलों की तरह जीवधारियों पर एहसान के मोती बरसाता है। अनजान लोगों को एकता के सूत्र में बाँधता है, अपनी विनम्रता और दयाशीलता और प्यार से अपनों की संख्या में प्रतिदिन वृद्धि करता रहता है। 72 सम्प्रदाय उसकी छाया में आराम पाते हैं। उसके दिल में जितना स्नेह होगा उतना ही उसकी नेकनामी की ख्याति फैलेगी। उसका मोती स्नेह और दौलत है जिसके मूल्य का अनुमान लगाना कठिन है। वह क्षमाशीलता को अपनी पहचान बनाता है। विनम्रता के गेंद से अपने साहस के मैदान में खेलता रहता है। उसके स्नेह के दरबार में विनम्रता के मोती पाये जाते हैं। वह अपने न्याय से पीड़ित लोगों को तसल्ली देता है, ग़रीबों और वंचितों को उपकृत करता रहता है। वह अपने शासनकाल में त्याग से काम लेता है और जो नक़द राशि या दौलत उसके यहाँ एकत्र होती है वह ज़रूरतमंदों तक पहुँचाता रहता है। स्पष्ट है कि सभी जीवधारी, साधारण जन, पीड़ितों और ज़रूरतमंदों में हिन्दू और मुसलमान दोनों प्रजा सम्मिलित हैं। प्रजा पर उपकार में यही इस्लाम की वास्तविक शिक्षा है। शमस सिराज अफ़ीफ़ के कथानानुसार फ़िरोज़शाह तुग़लक इन सभी गुणों का स्वामी था। इसीलिए उस युग के सद्गुण लिखने में उसका क़लम बहुत तेज़ हो गया है। वह लिखता है कि फ़िरोज़शाह तुग़लक अपने देश के लोगों पर उसी तरह मेहरबान था, जिस तरह माँ अपने बच्चों पर रहती है, इसीलिए उसने अपनी सल्तनत के लोगों से अपने व्यवहार में अपना नियम यह बनाया थाः
अपनी प्रजा पर वैसा ही ध्यान रख जैसा माँ अपने बच्चे पर रखती है।
वह लोगों की बहुत ग़लतियों और अपराधों को क्षमा करता रहता लेकिन चोरी और हत्या के अपराध को क्षमा नहीं करता क्योंकि इससे दूसरों के अधिकारों का हनन होता। उसने राजगद्दी पर बैठते ही सभी भारी कर जो किसानों और काश्तकारों के ज़िम्मे थे, माफ़ कर दिए ताकि लोगों में बेचैनी के बजाए ख़ुशहाली पैदा हो। सभी ग़ैर शरई करों को भी निरस्त कर दिया गया और यदि कोई कर्मचारी निर्धारित कर से अधिक वसूल करता तो उसकी कठोरतापूर्वक क्षक्षिपूर्ति की जाती। आवश्यक वस्तुओं और ग़ल्ले की कीमतें निर्धारित कर दी गयीं। उन्हीं के अनुसार क्रय-विक्रय होता, उसमें कोई असन्तुलन न होता। इस तरह बाज़ार वाले भी खुश थे और सामान्य लोग भी सन्तुष्ट रहे। आबादी बढ़ने लगी और हर चार कोस पर एक गाँव आबाद हो गया। अफ़ीफ़ ने उस ज़माने के बहुत से अन्य विवरण लिखे हैं। स्पष्ट है कि किसान काश्तकार, बाज़ार और गाँव वाले उस ज़माने में अधिकतर हिन्दू ही थे। फ़िरोज़शाह ने अपनी प्रजा की सम्पन्नता की कोशिश में क़ाज़ी मुग़ीसुद्दीन की तरह हिन्दुओं को इस्लाम का दुश्मन घोषित नहीं किया बल्कि सामान्य हिन्दू प्रजा की सम्पन्नता और भलाई के लिए प्रयासरत रहा। इसीलिए अफ़ीफ़ को लिखने में यह खुशी हुई कि सारी ग़ैर मुस्लिम प्रजा सेवा की भावना के साथ जीवन व्यतीत करती थी, सौदागर भी सम्पन्न और खुशहाल थे। वह दूसरे देशों में जा कर तीन-तीन, चार-चार वर्ष रहते और अपार लाभ प्राप्त करके वापस आते। (पृ0-80) अफ़ीफ़ के शब्द यह हैंः-
‘‘फ़िरोज़शाह के ज़माने में ज़िम्मी और शरण पाये लोग अर्थात हिन्दू जनता सम्पन्न जीवन व्यतीत करती थी।’’
उसके प्रशासन पर टिप्पणी करते हुए आधुनिक युग के इतिहासकारों में डाॅ0 ईश्वर टोपा ने लिखा है कि फ़िरोज़शाह तुग़लक ने अपने शासन में अशोक के सिद्धान्तों को अपनाया कि राजनीति के बुरे प्रभाव समाप्त हो कर सामान्य लोगों की भलाई का एक नया सामाजिक और राजनैतिक ढाँचा स्थापित हो जाए। उसके शासनकाल की बुनियादी बातों ने मानवता के अच्छे पहलू थोड़ा अधिक स्पष्ट किए अर्थात उसकी राजनीति में नरमी, दयालुता भरी रही। उसने अपने शासनकाल का सबसे बड़ा कर्तव्य यह घोषित किया था कि लोगों को असाधारण दण्ड न दिए जाएँ और उनको ग़ैर क़ानूनी रूप से न मारा जाए। उसके शासनकाल में मानवता को पाशविक शक्तियों पर प्रभुत्व प्राप्त हुआ, स्वयं उसने लोगों की खातिर राजनीति की सभी अतार्किक बातों और क़ानूनियत के विरुद्ध युद्ध और उनके जन्मसिद्ध अधिकारों के हनन की, इस तरह वह अपनी प्रजा का सच्चा रक्षक बन गया था। जनता की सेवा और जनता की भलाई का जो विचार हज़रत मुहम्मद सल्ल0 का था उसी को उसने अमली जामा पहनाया। उसके दिल की इच्छा एक इस्लामी राज्य स्थापित करने की थी लेकिन उसी के साथ-साथ राजनीति के नैतिक और सांस्कृतिक तत्वों को भी स्पष्ट करने की चिन्ता में लगा रहा। उसका शासन व्यावहारिक और सैद्धान्तिक हैसियत से इस्लामी तर्ज़ का था लेकिन उसका मूल उद्देश्य प्रजा की भलाई था। सभी मामले इस्लामी दृष्टिकोण से तय होते थे लेकिन ऐसे सभी कठोर क़ानून समाप्त कर दिए गये थे जिनसे लोग परेशान और विवश थे और इन्हीं विधानों को ग़ैर इस्लामी घोषित किया गया।
………….जारी…………..
टअअ
इस्लाम आतंक नहीं अनुसरणीय जीवन-आदर्श
सच्चाई क्या है? यह जानने के लिए हम वही तरीक़ा अपनाएंगे जिस तरीके से हमें सच्चाई का ज्ञान हुआ था। मेरे द्वारा शुद्ध मन से किये गये इस पवित्र प्रयास में यदि अनजाने में कोई गलती हो गयी तो उसके लिए पाठक मुझे क्षमा करें।
इस्लाम के बारे में कुछ भी प्रमाणित करने के लिए यहाँ हम तीन कसौटियों को लेंगे।
प्रश्नः सेंट लगे कपड़ों में नमाज़ दुरुस्त होगी या नहीं? कुछ लोगों का ख्याल है कि उसमें अलकोहल का प्रयोग होता है और वह नापाक है इसलिए नमाज़ नहीं होती है, सही क्या है?
उत्तरः सेंट के बारे में केमिकल विशेषज्ञों की राय यह है कि उसमें जो अलकोहल प्रयोग होता है वह नशीला नहीं होता है इसलिए यह नापाक व नज़िस नहीं है इसलिए सेंट लगाने से कपड़ा नापाक न होगा, और नमाज़ दुरुस्त होगी।
प्रश्नः नमाज़े जनाजा के वक्त पाँव से चप्पल जूते उतारना क्या ज़रूरी है या पहने हुए भी नमाज़ पढ़ी जा सकती है?
उत्तरः कभी कभी जूते चप्पल के सोल में गंदगी लगी होती है, इसलिए एहतियात इसी में है कि जूते चप्पल उतार कर नमाज़ पढ़ी जाय, लेकिन अगर कोई गंदगी न लगी हो और पाक हों तो पहन कर भी नमाज़ पढ़ सकते हैं, सही बुखारी की रिवायत में आप सल्ल0 से जूते चप्पल पहन कर नमाज़ पढ़ना साबित है।
(बुखारीः 1/56)
प्रश्नः एक शख्स ने अपने घर के जे़वरात रेहन (गिरवी) रख दिये हैं, दो साल गुजर चुके हैं, क्या इन जे़वरात पर ज़कात वाजिब होगी या नहीं ?
उत्तरः रेहन (गिरवी) रखी हुई चीज़ों पर ज़कात नहीं है क्योंकि ज़कात वाजिब होने के लिये जरूरी है कि माले ज़कात मुकम्मल तौर पर साहिबे निसाब की मिल्कियत में हो, रेहन पर रखी हुई चीजें मुकम्मल तौर पर मिल्कियत में नही होती हैं इस लिये उन पर ज़कात नहीं है।
(फत्हुल कदीर 221/2)
प्रश्नः जो रक़म बैंक में फिक्स डिपाॅजिट के तौर पर जमा हो क्या उस पर ज़कात वाजिब होगी?
उत्तरः पहली बात तो यह है कि फिक्स डिपाॅजिट शरअन जाइज़ नहीं है फिर भी अगर किसी ने रकम बैंक में फिक्स डिपाॅजिट कर दिया है तो उस पर ज़कात वाजिब होगी क्योंकि उस की हैसियत अमानत की होती है और अमानत वाली रकम पर ज़कात वाजिब होती है। (फत्हुल कदीर 221/2)
प्रश्नः मालिक मकान व दुकान के पास बतौरे जमानत जो रक़म पेशगी जमा रहती है क्या उस पर ज़कात वाजिब है या नही? अगर ज़कात है तो मालिक मकान पर या किराये दार पर ?
उत्तरः मालिक मकान या मालिक दुकान के पास जो पेशगी रकम किरायेदार की रहती है उस की हैसियत रेहन की है और रेहन पर ज़कात वाजिब नहीं इसलिये उसकी ज़कात न मालिक मकान पर है और न किराये दार पर।
(फत्हुल कदीर 164/1)
प्रश्नः जो लोग अपने घरों में कम्प्यूटर और इन्टरनेट या टी0वी0 वगैरह रखते हैं क्या उन पर ज़कात वाजिब है ?
उत्तरः कम्प्यूटर और दूसरे आलात अगर अपनी जरूरियात और इस्तेमाल के लिये हैं, तिजारत के लिये नहीं तो उन पर ज़कात वाजिब नहीं होती है।
प्रश्नः अक़ीके की जिम्मेदारी किस पर है? कुछ लोग नाना की जिम्मेदारी समझते हैं, इस बारे में शरई हुक्म क्या है ?
उत्तरः बच्चे की तालीम व तरबियत और कफालत की जिम्मेदारी बाप पर होती है। कु़रआने मजीद में बच्चे की निस्बत बाप की तरफ की गई है, अल्लाह तआला का फरमान है, इस फरमान में बाप ही पर तमाम इखराजात की जिम्मेदारी डाली गई है। लिहाजा अक़ीक़ा करना भी बाप के ज़िम्मे है न कि नाना के जिम्मे, हाँ अगर नाना अपनी तरफ से खुशदिली के साथ अकीका कर दे तो अकीका हो जाएगा। आप सल्ल0 ने अपने नवासों हज़रत हसन रज़ि0 और हुसैन रज़ि0 का अक़ीक़ा खुद ही किया था। लिहाजा नाना भी अक़ीक़ा कर सकता है लेकिन नाना के जिम्मे नहीं है।
(तिर्मिजी 183/1)
प्रश्नः अगर बड़े होने के बाद किसी बच्चे का अक़ीक़ा किया जाए तो क्या बाल मुंडवाना जरूरी है?
उत्तरः पैदाइश के वक़्त जो बाल हों अगर सातवें दिन अक़ीका हो तो उस बाल का मुंडवाना और उसके बराबर चाँदी सदक़ा करना मुस्तहब है, बड़े होने के बाद अगर अक़ीका हो तो बाल मुंडवाने की ज़रूरत नहीं है।
(फत्हुल बारी-15/9)
प्रश्नः खेती में ग़ल्ला पैदा होता है उस पर उश्र का क्या हुक्म है?
उत्तरः खेती में जो गल्ला पैदा होता है अगर वह बारिश के पानी से हासिल हुआ है, सिंचाई नहीं करनी पड़ी है तो खेत से ग़ल्ला हासिल होते ही उश्र (दस्वां भाग) निकाल कर ज़कात के मुस्तह़कीन पर खर्च किया जाएगा और अगर सिंचाई के बाद गल्ला पैदा हुआ है तो निस्फ उश्र (बीसवां भाग) निकाल कर ज़कात के मुस्तहकीन को देना होगा।
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मोजिज़े
मोजिज़ा क्या है और मोजिज़े व चमत्कार में क्या अंतर है। आगे बढ़ने से पहले इस अंतर को समझ लेना जरूरी है। वे कार्य जो आमतौर से असम्भव समझे जाते हैं, किसी साधारण व्यक्ति के वश में नहीं होते, परंतु ऐसे असम्भव कार्यों को जब कोई ईशदूत अपनी साधना शक्ति और ईश्वर की कृपा से कर दिखाता है तो उसे मोजिज़ा कहते हैं।जब कोई महापुरुष अपनी साधना शक्ति और ईश्वर की कृपा से कर दिखाता है तो उसे करामत कहते हैं। कभी कभी कुछ जादूगर अपने जादू के जोर से असम्भव को सम्भव कर दिखाते हैं मगर उनके द्वारा किए गए कार्य का हकीकत से कोई सम्बंध नहीं होता, वे केवल नजरबंदी होती है। जादूगर अपने निकट उपस्थित लोगों की आंखों पर पर्दा डाल देता है तब उन्हें वही नजर आता है जो वह दिखाना चाहता है, परन्तु दूर के लोगों पर इसका कोई असर नहीं होता। जादूगर स्वयं भी जानता है कि हकीकत से इस का कोई ताअलुक नहीं है। मगर नबियों, रसूलों के द्वारा खुदा के हुक्म से दिखाए गए मोजिज़े हकीकत होते हैं, उनका प्रभाव दूर और पास सब जगह महसूस किया जाता है और सब को उसका लाभ पहुंचता है।
रसूलल्लाह सल्ल0 के मोजिज़े तो अनेक हैं, यहां पर उन सब का उल्लेख करना संभव नहीं है। इस समय केवल चांद का दो टुकड़े हो जाने वाला मोजिज़ा ही थोड़ा विस्तार से बयान करना उचित मालूम पड़ता है।
एक रात हज़रत मुहम्मद सल्ल0 मक्का नगर के बाहर मिना के मैदान में लोगों को खुदा का पैगाम सुना कर सत्य धर्म की ओर बुलाने का प्रयास कर रहे थे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद, हज़रत जुबैर बिन मुतइम नौफली, हज़रत हुजैफा आप के सहाबा साथ थे। चैदहवीं रात का चांद मिना की पहाड़ियों के ऊपर चमक रहा था। उसी समय रसूलल्लाह सल्ल0 का कट्टर विरोधी अबू जहल अपने कुछ साथियों के साथ उधर आ निकला। हज़रत मुहम्मद सल्ल0 से व्यंग्यात्मक स्वर में बोला, अच्छा तो अब तुम छुप छुप कर लोगों को अपने धर्म की बातें बताते हो, कुछ हमें भी तो बताया करो। हज़रत मुहम्मद सल्ल0 ने उस के व्यंग को नजरंदाज़ करते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी बातें सुनते ही कब हो’’। अबू जहल का एक साथी बोला, तुम पहले अपने नबी होने का कोई प्रमाण दो, तब हम तुम्हारी बात सुनेंगे। अबू जहल तुरंत बोला, मुहम्मद तुम कहते हो कि जब हम मर जाएंगे तो तुम्हारा खुदा हमें दोबारा उठाएगा। यदि तुम सच्चे हो तो अपने अल्लाह से कहो आकाश में इस चमकते हुए चांद को दो टुकड़े कर दे। यदि ऐसा हो गया तो हम तुम्हें सच्चा नबी मान लेंगे और तुम्हारे दीन पर ईमान ले आयेंगे।
यह सुन कर हज़रत मुहम्मद सल्ल0 ने अल्लाह तआला से दुआ की और चांद की ओर गौर से देखा। तुरंत ही चांद दो भागों में बंट गया। एक भाग पहाड़ी के एक ओर तथा दूसरा दूसरी ओर तैरता हुआ चला गया, फिर दोनों भाग उसी तरह तैरते हुए आ कर मिल गए। कुरआन पाक में सूरः क़मर की पहली तीन आयतों में इस घटना का उल्लेख है। यह देख कर अबू जहल बोला मुहम्मद बेशक तुम बड़े जादूगर हो, तुम ने हम पर ऐसा जादू किया कि हमारी आंखें धोखा खा गई। अबू जहल के साथियों ने कहा, मुहम्मद हम पर तो जादू कर सकते हैं मगर मक्का नगर के बाहर गए हुए लोगों पर नहीं कर सकते, उन्हें लौट कर आने दो, हम उनसे पूछेंगे। अतः जब बाहर गए हुए लोग मक्का वापस आए तो उन्होंने आश्चर्य चकित कर देने वाली इस घटना का जिक्र किया, जिसे उन्होंने सफर के दौरान स्वयं अपनी आंखों से देखा था। मगर मक्का नगर के कट्टर विरोधी जो काफिर बने रहने की मानो कसम खाए बैठे थे, फिर भी न माने और इस मोजिज़े को जादू ही कहते रहे।
चाँद के दो भागों में बंट जाने की यह घटना हज़रत मुहम्मद सल्ल0 को नुबूवत मिलने के लगभग नौ वर्ष बाद की है। जिस समय यह घटना घटी, मक्का नगर में रात के लगभग नौ बजे का समय था और भारत में लगभग बारह बजे का समय था। भारत के वर्तमान प्रदेश केरल में कोदन गल्लूर का राजा चैरामन पैरूमल अपने महल की छत पर टहल रहा था। उस की नज़र चांद के दो भागों पर पड़ी जो दायें बायें को जा रहे थे, राजा भोंचक्का हो कर यह दृश्य देखने लगा, तभी उसने देखा कि कुछ दूर जाकर दोनों भाग पुनः पलटे और आकर मिल गए। दूसरे दिन राजा पैरूमल ने दरबार किया जिस में राज्य के विद्वानों को विशेषकर बुलाया। उन सब के सामने राजा ने रात वाली घटना विस्तार से सुनाई और इस विषय पर प्रकाश डालने को कहा। कुछ विद्वानों ने भारतीय धर्म ग्रंथों में बयान हुई भविष्य वाणी के आधार पर बताया कि अरब देश में प्रभु का एक सन्देशी और समाज सुधारक होगा जो संसार को ईश्वर का संदेश सुनाएगा, उसी के द्वारा यह चमत्कार दिखाया जाएगा। यह सुन कर राजा की उत्सुकता बढ़ी और उसने अपने समुद्री तट पर आने वाले अरब व्यापारियों से पूछ ताछ की। उन लोगों ने हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की पुष्टि की। राजा के मन में आप सल्ल0 से मिलने की इच्छा हुई। उसने अपना राज पाट अपने भाई को सौंप कर मदीना जाने की योजना बनाई। अरब व्यापारियों के साथ वह मदीना गया और हज़रत मुहम्मद सल्ल0 से मुलाकात की, इस्लाम कुबूल किया और आप सल्ल0 की सेवा में 17 दिन रहा। एक अरब विद्वान ताबूर ने अपनी पुस्तक ‘‘फिरदौसुल हिकमरू’’ में लिखा है कि राजा पैरुमल का इस्लामी नाम ताजुद्दीन रखा गया था। भारतीय मूल के आर्य समाजी विद्वान पंडित राजेन्द्र श्री ने अपनी पुस्तक ‘‘भारत में मूर्ति पूजा’’ में इस घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि यह राजा इस घटना के बाद मुसलमान हो गया था।
अफ़सोस है कि वापसी के सफर में राजा का देहांत हो गया। मरने से पहले उसने अपने भाई को वसीयत लिखी थी कि अरब देश से आने वाले व्यापारियों को अपने देश में आदर सम्मान के साथ रहने की अनुमति दी जाये। केरल के कोदन गल्लूर नगर में भारत की सब से पहली मस्जिद उसी समय की है।
इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि ईमान अल्लाह की तौफीक़ से उसी को मिलता है जिस में सत्य को स्वीकार करने की प्रबल इच्छा होती है। अबू जहल मक्का नगर का रहने वाला, हज़रत मुहम्मद सल्ल0 को बचपन से जानने पहचानने वाला अपने सामने यह दृश्य देख कर भी हठधर्मी के कारण ईमान नहीं ला सका और आप सल्ल0 को जादूगर ही कहता रहा।
नेकी का फ़ायदा
हज़रत इमाम शाफअ़ी इस्लामी जगत के बड़े विद्वान गुज़रे हैं। इस्लामी फ़िक्ह में उनका बड़ा काम और नाम है। इस्लामी फिक्ह के चार बड़े इमामों में से ये एक हैं।
उनका एक किस्सा मशहूर है कि एक बार सवारी पर सवार हो रहे थे कि एक आदमी ने श्रद्धापूर्वक उनके घोड़े की लगाम पकड़ ली ताकि वह आराम से चढ़ जाएं। उन्होंने उस आदमी को ये नेकी करते देखा तो अपने दोस्त रबीअ़ बिन सुलैमान से कहा जो इस सफ़र में उनके साथ थे। कि मेरी ओर से इस व्यक्ति को चार अशरफ़ियाँ ये खेद व्यक्त करते हुए दे दो कि इस समय मेरे पास इतना ही है, यदि और होतो तो ज़रूर देता।
हमारे बूढ़े पुरनियाँ कहते हैं कि पहले लोग एहसान मानने और एहसान को चुकाने वाले होते थे, उनका दावा होता कि उनके दौर में बहुत कम लोग एहसान फरामोश होते थे जबकि आज एहसान मानने वाले कम और एहसान को भूलने वाले ज़्यादा हैं। ये भी एक तथ्य है कि हर अगला दौर पिछले दौर से खराब रहा है।
ख़ैर! इमाम शाफअ़ी का एक और क़िस्सा भी पढ़ते चलिए कि जब उनका अन्तिम समय आया तो उन्होंने अपने लोगों को वसीयत की कि मेरी मय्यत को मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह नहलाएंगे। जब इमाम शाफअ़ी का देहांत हो गया तो मुहम्मद को इसकी सूचना दी गई वह आये तो घर वालों ने सारा किस्सा कह सुनाया, उन्होंने कहा, अच्छा मैं समझ गया, इनके हिसाब किताब का रजिस्टर दिखाओ। रजिस्टर सामने लाया गया और जोड़ घटा कर देखा गया तो इमाम साहब के ज़िम्मे सत्तरह हज़ार दिरहम का कर्ज था। मुहम्मद ने इतनी बड़ी रक़म कर्जे में देख कर भी झट से कहा कि इन सब कर्ज़ों के चुकाने की ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ। उन्होंने बताया कि नहलाने का तात्पर्य भी यही कर्ज़ था।
आज के समय में ये रकम लाखों रूपये में होगी मगर इमाम साहब के व्यक्तित्व का ये खिंचाव था कि बड़ी रक़म की परवाह न की और बिला झिझक उसे चुकाने को तैयार हो गये।
सीधी सी बात है कि अच्छे कर्म करेंगे तो मरने के बाद भी वह काम आएंगे, जो अभी के किस्से में गुज़रा भी। दरअसल दुनियादार को लोग डराते हैं, आजकल तो बीमा पाॅलिसी वाले भी हद किये हुए हैं, वह मरने और घायल होने के फायदे बताते हैं। एक पत्नी को बीमा वाले बताते हैं कि हर महीने इतना जमा करियेगा तो इस दौरान यदि आपके पति बीमार पड़ जाएं या मर जाएं तो आपको इतने लाख मिलेंगे। मेरा मानना है कि इतना उल्टा सीधा सोचने की ज़रूरत क्या है, बल्कि अच्छी नियत रखो, कभी बुरा समय आया भी तो हम आसानी से उबर जाएंगे, हमारे यहां तो कहावत भी मशहूर है कि ‘‘जैसी नियत वैसी बरकत’’ हम अच्छा सोचें, अच्छा करें, सच, बोलें, हक़ पर रहें, जुल्म न करें, न्याय करें, रब की इबादत करें, लोगों के साथ नर्मी करें, अत्याचार को पनपने न दें, व्यभिचार से दूर रहें तो ज़िन्दगी अच्छी होगी और आपको हम सबको अच्छे साथी मिलेंगे जो हमें भलाई की तरफ़ ले कर जाएंगे और ज़िन्दगी को आसान बना देंगे।
अभिभावकों की बेजा अपेक्षायें और लड़कों की आत्म-हत्या
देश की सर्वाेच्च न्यायालय के निर्णय और टिप्पणियाॅं बड़े चैकाने वाले होते हैं. इसी तरह की एक टिप्पणी 23 नवम्बर 2023 को समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक था ‘बच्चों की आत्म-हत्या के लिये कोचिंग सेन्टर नहीं अभिभावक की अपेक्षायें जिम्मेदार होती हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चांे के मध्य कठिन स्पर्धा और उनके अभिभावकों का दबाव, आत्म-हत्या की बढ़ती हुई घटनाओं का कारण हैं. सर्वाेच्च न्यायालय जनहित की एक याचिका की सुनवाई कर रही थी।
समाचार कुछ इस प्रकार था कि ‘‘सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान के कोटा के कोचिंग सेन्टरों में आत्म-हत्या की बढ़ती हुई घटनाओं के लिये अभिभावकों को जिम्मेदार ठहराया है क्योंकि अभिभावकों की अपेक्षाओं का बोझ बच्चों को अपनी जान लेने पर मजबूर कर रहा है। सर्वाेच्च न्यायालय का कहना है कि कोचिंग सेन्टरों की गलती नहीं है बल्कि अभिभावक की अनावश्यक अपेक्षायें बच्चों को आत्म-हत्या करने पर मजबूर करती है।
आज के अभिभावक जो कल के बच्चे थे उन्होंने अपने अभिभावकों की अपेक्षाओं को पूरा करके नहीं दिया आज वही अभिभावक अपने बच्चों से यह अपेक्षा करते हैं कि वह अपने पिता की नाकामी को पूरा करके दिखायें। और जब बच्चे अपने अभिभावक की इक्षा को पूरा करने में नाकाम होते हैं तो अभिभावक के सामने ज़िन्दा आने के बजाये अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेते हैं. उस समय सम्भवतः अभिभावक को अब अपनी ग़लती समझ में आती हो लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता उन की उम्मीदों ने तो बच्चे की जान ले ली।
बच्चों की बहुत अच्छी तरबियत होनी चाहिये अभिभावकों को चाहिये कि वह अपनी इक्षाओं को अपने बच्चों पर थोपें नहीं, जिस प्रकार के विषयों में बेटे की रुचि हो वही विषय उसको दिलाना चाहिये. यह आवश्यक नहीं है कि विज्ञान पढ़ने वाला बच्चा ही कामयाबी की राह तय कर सकता है और कला विषय वाले बच्चे कुछ अच्छा नही कर सकते. इस प्रकार की सोच बहुत गलत है. एम.एस.सी. या एम.सी.ए. पास लड़का जब ‘यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन’ का फ़ार्म भरता है तो इतिहास विषय के साथ परीक्षा देना पसन्द करता है क्योंकि विज्ञान की कोई सीमा नहीं लेकिन इतिहास में ऐसा नहीं है।
भारत ने बहुत तरक्की कर ली है, हमने चाँद पर कमन्द डाल ली है परन्तु अभिभावक अभी तक यही कहते सुने जाते हैं कि जब बच्चा पैदा हुआ था तभी हम ने सोच लिया था कि इसको श्रम्म् या प्प्ज् कराऊँगा और इसकी तैयारी शुरू से करानी होगी। प्रायः अभिभावक प्राइमरी शिक्षा के बाद ही इन परीक्षाओं की तैयारी कराने लगते हैं और अपनी पसन्द के कोचिंग सेन्टर तलाश कर लेते हैं और छटे-सातवीं कक्षा से, अपनी सोच को सार्थक करने के लिये श्रम्म् या प्प्ज् की तैयारी कराने लगते हैं।
नाकाम लड़के अपने अभिभावकों का सामना करने से कतराते हैं इसी लिये वे आत्म हत्या जैसे ग़लत निर्णय ले लेते हैं। यह रुझान बहुत बढ़ गया है, इस से सम्बन्धित कुछ आँकड़े मिले हैं जो आप के ज्ञानवर्धन के लिय प्रस्तुत हंै. ध्यान रहे कि बच्चों की आत्म हत्यायें केवल श्रम्म् या प्प्ज् की कोचिंग के सम्बन्ध में हुई हैं। जवान और पला हुआ बच्चा हाथ से तो गया, और कोई कोचिंग केन्द्रों को आरोपित करता रहे कि उनके दबाव में लड़के ने आत्म- हत्या की है।
राजस्थान पुलिस के आंकड़ों के अनुसार 2020 में 15, 2019 में 18, 2018 में 20, 2017 में 7, 2016 में 17 और 2015 में 6 विद्यार्थियों ने आत्म हत्यायें की, 2020 और 2021 में कोटा में किसी भी विद्यार्थी के आत्म हत्या की कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई क्योंकि कोरोना के कारण प्रशिक्षण केन्द्र बन्द मिले थे।
छब्त्ठ (नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्योरो) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार 2021 में 13089 विद्यार्थियों ने आत्म हत्या की जोकि 2017 में होने वाले 9905 मृत्यु की अपेक्षा 32.5 प्रतिशत अधिक है। यह भारत में 2021 के प्रतिदिन लगभग 36 विद्यार्थियों की आत्म हत्या के बराबर है।
छब्त्ठ (नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्योरो) के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछली दहाई के दौरान भारत में आत्म हत्या करने वाले विद्यार्थियों का हिस्सा 70 प्रतिशत बढ़ गया है। भारत में आत्म हत्या से बचाव का विश्व दिवस 10 सितम्बर को मनाया जाता है इसके चन्द ही दिनों बाद कोटा में 2023 में पहले ही 23 विद्यार्थियों की आत्म-हत्यायें रिकार्ड की गई जो कि 2015 के बाद से सब से अधिक है, 17 विद्यार्थियों की मृत्यु आत्म हत्या से हुई थी।
बच्चे मानसिक तनाव में भी पिसते हैं, इसका सब से मुख्य कारण होता है अपने घर से अपने परिवार से बिछड़ना, माता पिता, भाई बहन से बिछड़ कर जीवन नीरस और बोझल हो जाता है, हो सकता है यह बोझल जीवन कुछ समय के पश्चात महसूस न हो, हो सकता है आदत पड़ जाय, यह भी हो सकता है ग़म हलका करने के लिये गलत लोगों का साथ हो जाये, ख़राब आदतों की लत लग जाये इन कारणों के साथ अभिभावक द्वारा थोपे गये सबजेक्ट की तैयारी करना क्या सम्भव हो सकता है?
आप का बेटा या बेटी अगर इन्जीनियर या डाक्टर बनना चाहता है तो उसके लिये तमाम सुहूलतें उपलब्ध करायें अगर रुझान किसी और तरफ़ है तो बराय मेहरबानी अपनी मर्जी न थोपें. अगर उसका रुझान कुछ और करने का है तो कृपया अपनी इक्षाओं का बोझ उस पर मत डालें इस तरह के बच्चे अभिभावकों की इक्षाओं की पूर्ति नहीं कर पाते।
आप अपने बच्चे से श्रम्म् या प्प्ज् में भाग्य आज़माने की बात करते हैं तो यहाॅँ फ़ीस के नाम पर मोटी-मोटी रक़में भरनी पड़ती है और जान तोड़ मेहनत करनी पड़ती है वह अलग से और विफल होने पर (खुदा न करे) एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों में बढ़ोतरी का खतरा भी रहता है तो क्यों न अपने बच्चे को जिगर के टुकड़े को ‘यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन’ की परीक्षाओं की तैयारी करायें जिसमें बच्चों को केवल मेहनत करनी रहती है वह भी अपने घर पर रह कर। कोई अतिरिक्त व्यय नहीं केवल परीक्षा शुल्क ही जमा होगी।
‘यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन’ की परीक्षायें बहुत कठिन होती हैं, लाखों अभ्यर्थी फ़ार्म भरते हैं और लगभग 1000 उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की सूची तैयार होती है. यदि किसी उम्मीदवार का नाम इस सूची में आ गया तो 24 प्रकार की मुलाज़मत में से कोई न कोई मुलाज़मत का वह अधिकारी हो जायेगा. अगर वह डिप्टी कलेक्टर या पुलिस कप्तान हो गया तो क्या कहने! इसके लिये न्यूनतम शिक्षा स्नातक है
टअअ
घरेलू मसायल
औरतों को विरासत में हिस्सा मिलने की सूरतेंः-
इसके बावजूद कि औरत के ज़िम्मे आम हालतों में, किसी का खर्चा और कोई जरूरी खर्च नहीं होता लेकिन शरीयत ने उसे अलग अलग हैसियतों से विरासत में साझी करार दिया है, इसकी कुछ तफ्सील नीचे पेश की जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय समाचार
सीसी तीसरी बार राष्ट्रपति चुने गयेः-
अब्दुल फत्ताह अल-सीसी 89.6ः वोट पाने के बाद फिर 6 साल के लिए मिस्र के राष्ट्रपति चुने गए। सीसी का यह तीसरा और मिस्र के संविधान के मुताबिक आखिरी कार्यकाल होगा। चुनाव में उपविजेता हाजिम मु0 सुलैमान उमर को 4.5ः वोट मिले ज्ञात हो कि पूर्व आर्मी चीफ़ नवनिर्वाचित मिस्री सदर अब्दुल फत्ताह अल- सीसी पहली बार जून 2014 में राष्ट्रपति चुने गये थे, साल 2018 में दूसरे कार्यकाल के लिए 97.8ः वोट हासिल कर राष्ट्रपति चुने गये थे, मिस्री फौज के पूर्व आर्मी चीफ़ अब्दुल फत्ताह ने साल 2013 में मिस्र के प्रथम निर्वाचित राष्ट्रपति मो0 मुर्सी को अपदस्त करके सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था।
फ़ातिमा वसीम सियाचिन में पहली महिला मेडिकल अफ़सरः-
सियाचिन वाॅरियर कैप्टन फातिमा वसीम ने इतिहास रच दिया है। वह सियाचिन ग्लेशियर के आॅपरेशनल पोस्ट पर तैनात होने वाली पहली महिला मेडिकल अफसर बन गई हैं। यह जानकरी भारतीय सेना की फायर एण्ड फ्यूरी कोर ने ग् पर एक पोस्ट के जरिए दी। इसके अनुसार कैप्टन फातिमा वसीम को सियाचिन बैटल स्कूल में सख़्त प्रशिक्षण के बाद 15,200 फुट की ऊँचाई पर एक पोस्ट पर तैनात किया गया। सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया में सबसे अधिक ऊँचाई वाले युद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है जो स्व्ब् के पास है।
गज़्ज़ा संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नैतिक विफलता हैः रेड क्राॅसः-
रेड क्रॉस ने गज़्ज़ा संघर्ष को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नैतिक विफलता क़रार दिया है, एक बयान में रेड क्रॉस का कहना था कि गज़्ज़ा में अत्याधिक पीड़ा को रोकने में विफलता का असर न केवल गज़्ज़ा बल्कि अन्य पीढ़ियों पर भी पड़ेगा, संस्था के मुताबिक गज़्ज़ा की 90 फीसद से ज़्यादा आबादी बे घर हो चुकी है, 60 फीसद से ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह हो गया है, गज़्ज़ा के लोगों की जबरन बेदखली सबके सामने हो रही है, गज़्ज़ा की तबाही इतनी हैरान करने वाली है जिसकी कोई मिसाल नहीं मिलती।
इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी सालः-
नये साल में 76 देशों में आम चुनाव- 2024 में 76 देशों में आम चुनाव होंगे, जो आने वाले वर्ष को इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी वर्ष बनाने जा रहे हैं। इन देशों में 43 लोकतांत्रिक देश हैं, जिनमें 27 यूरोपीय संघ से जुड़े हुए हैं। खास बात यह है कि दुनिया के 10 सबसे ज़्यादा आबादी वाले देशों में से 8 में भी वोट डाले जाएंगे। ये देश है भारत, बंग्लादेश, ब्राजील, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, रूस और अमेरिका।
किस महीने कहाँ चुनावः-
जनवरी- बांग्लादेश, कोमोरोस, ताइवान। फरवरी- बेलारूस, कंबोडिया, अलसल्वाडोर, इंडोनेशिया, माली, पाकिस्तान।
अप्रैल- भारत, मई- रिपब्लिक, पनामा, बाॅमिनिकन।
जून- आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस, चेक रिपब्लिक, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्राॅन्स, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आइसलैंड, आयरलैंड, इटली, लातविया, लिथुआनिया, लग्जमबर्ग, माल्टा, मेक्सिको, नीदरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल।
अक्टूतर- ब्राजील, मोजाम्बिक
नवंबर- पलाऊ, दिसंबर- घाना।