सच्चा राही जनवरी-2024

हरमैन शरीफ़ैन
July 6, 2023
नव वर्ष 2024
January 5, 2024

क़ुरआन की शिक्षा
सूर-ए-हूदः-
अनुवादः-
और अगर आपका पालनहार चाहता तो सब लोगों को एक ही तरीक़े पर कर देता जब कि वे तो हमेशा मतभेद ही में रहते हैं(118) सिवाय उनके जिन पर आपके पालनहार ने दया की और इसीलिए उसने उनको पैदा किया है और आपके पालनहार की बात पूरी हुई कि हम दोज़ख को जिन्नों और आदमियों से इकट्ठे भर कर रहेंगे(1)(119) और रसूलों की जो भी घटनाओं में से हम आपको सुना रहे हैं वह इसलिए कि उससे आपके दिल को शक्ति दें और इस सिलसिले में आपके पास सही बात पहुँच गई और यह ईमान वालों के लिए नसीहत और याद देहानी (स्मरण) है(2)(120) और जो ईमान नहीं लाते उनसे आप कह दीजिए कि तुम अपनी जगह काम में लगे रहो हम भी लगे हुए हैं(121) और तुम भी इन्तिज़ार करो हम भी इन्तिज़ार कर रहे हैं(122) और आसमानों और ज़मीन के ढके-छिपे का मालिक अल्लाह ही है और सब कुछ उसी की ओर लौटता है तो आप उसी की बंदगी में लगे रहें और उसी पर भरोसा रखें और तुम सब जो भी करते हो आपका पालनहार उससे बेख़बर नहीं है(123)।
सूर-ए-यूसुफ़ः-
अनुवादः-
अलिफ लाम राॅ, यह खुली किताब की आयतें हैं(1) हमने इसको अरबी (भाषा का) कुरआन उतारा है ताकि तुम समझ सको(3)(2) हम इस कुरआन के ज़रिए हमने आपकी ओर भेजा है आपको एक बहुत ही अच्छी कहानी (उत्तम शैली में) सुनाते हैं जबकि इससे पहले आप अवगत न थे(4)(3) जब यूसुफ़ ने अपने पिता से कहा कि ऐ मेरे अब्बा जान! मैंने ग्यारह सितारों और सूरज और चाँद को देखा, देखता हूँ कि वे मुझे सज्दा कर रहे हैं(4) उन्होंने कहा कि ऐ मेरे बेटे! अपना सपना अपने भाइयों को मत बताना कहीं वे तुम्हारे लिए कोई चाल चलने लग जाएं, बेशक शैतान इंसान का खुला दुश्मन है(5)(5) और इसी तरह तुम्हारा रब तुम्हें चुन लेगा और तुम्हें बातों का सही मतलब निकालना सिखाएगा और अपने उपकार तुम पर और याकूब की संतान पर पूरे करेगा जैसे उसने पहले तुम्हारे दो बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ पर उसको पूरा किया था, बेशक तुम्हारा रब खूब जानने वाला हिकमत (तत्वदर्शिता) वाला है(6) यूसुफ और उसके भाइयों में पूछने वालों के लिए बेशक बड़ी निशानियाँ हैं(6)(7) जब सौतेले भाई आपस में कहने लगे कि यूसुफ़ और उसका सगा भाई हमारे पिता को हमसे अधिक प्यारे हैं जब कि हम मज़बूत लोग हैं बेशक हमारे पिता खुली गलती कर रहे हैं(7)(8) यूसुफ़ को क़त्ल कर दो या किसी और जगह डाल आओ ताकि तुम्हारे पिता का ध्यान केवल तुम्हारे ही लिए रह जाए और उसके बाद तौबा करके तुम लोग भले बन जाना(9) उनमें एक बोला कि अगर तुम्हें करना ही है तो यूसुफ़ को क़त्ल मत करो और उसको गहरे कुँवे में डाल दो कि कोई उसको उठा ले जाए(10) वे बोले ऐ अब्बा जान! आपको क्या हो गया कि यूसुफ़ के बारे में हम पर विश्वास नहीं करते और हम तो उसके शुभचिंतक ही हैं(11) कल उसको हमारे साथ भेज दीजिए ताकि खाए और खेले और हम उसकी सुरक्षा के पूरे ज़िम्मेदार हैं(12) उन्होंने कहा कि तुम्हारे उसको ले जाने से मुझे ज़रूर दुख होगा और मुझे डर है कि ‘‘कहीं उसे भेड़िया न खा जाए’’ और तुम उससे बेख़बर रहो(13) वे बोले की हम मज़बूत लोग हैं फिर अगर उनको भेड़िया खा गया तो हम बड़े निकम्मे ठहरे(14)।
तफ़्सीर (व्याख्या)ः-
1. अल्लाह की तकवीनी (चाहत) यही हुई कि सबको एक रास्ते पर न डाला जाए बल्कि दोनों रास्ते बता दिये जाएं, अब ग़लत रास्ते पर वही पड़ते हैं जो शुद्ध प्रकृति के उलटा चलते हैं और मतभेद करते हैं और जिन पर अल्लाह ने सत्यवाद के कारण दया की वे सही रास्ते पर हैं, अब जो ग़लत रास्ते पर हैं दोज़ख उन्हीं से भरी जाएगी।
2.मालूम हुआ कि पैग़म्बर और सहाबा और अल्लाह के दोस्तों की सच्ची कहानियों से दीन पर मज़बूती से जमने में मदद मिलती है।
3. पवित्र कुरआन के पहले संबोधित अरबवासी थे जिनको अपनी भाषा पर गर्व था, इसीलिए पवित्र कुरआन को शुद्ध अरबी भाषा में उतारा गया।
4. मात्र हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ही की कहानी है जिसको एक ही स्थान पर बयान किया गया है और इसमें ईमान वालों के लिए बड़ा उपदेश भी है और सांत्वना भी।
5. हज़रत याक़ूब अलै0 के बारह बेटे थे उनमें दो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और बिनयामीन एक माँ से थे, बाक़ी दूसरी माँ से थे, हज़रत याकू़ब अलै0 को आशंका हुई कि यह सपना सुनकर भाइयों में हसद (ईष्र्या) न पैदा हो जाए और शैतान के बहकावे में आ कर वे यूसुफ़ के विरुद्ध कोई कार्यवाही न कर बैठें, इसलिए उन्होंने हज़रत यूसुफ़ को सपना बताने से मना किया, और उसका मतलब उनको बता दिया कि एक दिन अल्लाह तुमको ऊँचा मक़ाम देगा, नबी बनाएगा कि सब भाई तुम्हारे आगे झुकने पर मज़बूर होंगे।
6. कुछ हदीसों में है कि यहूदियों ने हज़रत मुहम्मद सल्ल0 से यह प्रश्न पुछवाया था कि बनी इस्राईल फ़िलिस्तीन से मिस्र में आ कर कैसे आबाद हुए, उनका ख़्याल था कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उत्तर न दे सकेंगे लेकिन अल्लाह तआला ने इतने विस्तार से पूरी घटना बयान कर दी कि परेशान हो गये और ईमान वालों कोे इसमें बड़ी हिकमत व नसीहत की बातें हाथ आयीं।
7. हज़रत यूसुफ़ अलै0 और उनके भाई छोटे थे, माँ का निधन हो चुका था, हज़रत यूसुफ़ का उज्जवल भविष्य उनके सामने था इसलिए स्वाभाविक रूप से हज़रत याकूब उन पर ध्यान देते थे, यह बात और भाइयों को गवारा न थी और वे यह समझते थे हम बलवान हैं, पिता जी के काम आने वाले हैं, इसके बावजूद उनका ध्यान छोटे और कमज़ोर भाईयों की ओर है, निश्चित रूप से यह अब्बा जान की ग़लती है।
टअअ
प्यारे नबी की प्यारी बातें
अल्लाह का इरशाद हैः-
अनुवादः-
मर्द औरतों के हाकिम और रक्षक हैं, इसलिए कि खुदा ने एक दूसरे पर बड़ाई दी है और इसलिए भी कि मर्द अपना माल खर्च करते हैं।
(सूरः निसा-34)
भलाई के कामों में भी पति की अनुमति ज़रूरी हैः-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया पति घर में मौजूद हो, और कोई औरत उसकी अनुमति के बिना (नफ़्ल) रोज़ा रख ले तो सही नहीं। ऐसे ही पति की अनुमति के बिना किसी को घर में आने की अनुमति देना दुरुस्त नहीं।
(बुखारी व मुस्लिम)
पति की फरमांबरदारीः-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया अगर पति पत्नी को अपने बिछौने पर बुलाए और वह न आए, फिर पति पूरी रात उस पर नाराज़ हो कर गुज़ार दे तो फरिश्ते सुबह तक उस पर लअ़नत (धिक्कार) करते रहते हैं।
(बुखारी व मुस्लिम)
पति की नाशुक्री (कृतघ्नता) करना पत्नी के लिए अज़ाब (दण्ड) का कारणः-
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया मुझे जहन्नम दिखाई गई, मैंने देखा कि उसमें वो औरतें ज़्यादा हैं जो कुफ्र करती हैं। आपसे पूछा गया कि क्या वो अल्लाह का इन्कार करती हैं? आप सल्ल0 ने फरमाया वो शौहर की नाशुक्री करती हैं और एहसान की नाशुक्री करती हैं, अगर तुम उनमें से किसी के साथ ज़िन्दगी भर भलाई करो, फिर वह तुम्हारी तरफ़ से एक बार भी कोई नापसन्दीदा चीज़ देख ले तो कहेगी कि तुमने मेरे साथ कभी कोई भलाई ही नहीं की है। (बुखारी)
पति की खुशी में पत्नी की मुक्ति हैः-
हज़रत उम्मे सलमा रज़ि0 बयान करती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया जो औरत इस हाल में मरी कि उसका पति उससे खुश है, वह जन्नत में चली गई। (तिर्मिज़ी)
पति की श्रेष्ठताः-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया अगर किसी के लिए किसी आदमी को सज्दा करने की अनुमति होती तो मैं औरत को हुक्म देता कि वह अपने पति को सज्दा करे (उसके सामने माथा टेके)
(तिर्मिज़ी)
सबसे अच्छी औरतः-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 से पूछा गया कौन सी औरत सबसे अच्छी है? आप सल्ल0 ने फरमाया सबसे अच्छी औरत वह है जिसको पति देखे तो खुश कर दे, कोई हुक्म दे तो उसको पूरा करे, और उसकी अनुपस्थिति में अपने अन्दर या पति के माल में ऐसा तसर्रुफ (व्यय) न करे जिसको पति ना पसन्द करता हो। (नसई)
औरत आज़माइश हो सकती हैः-
हज़रत उसामा बिन ज़ैद बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया मेरे बाद मर्दों के लिए औरतों से ज़्यादा नुकसान पहुँचाने वाली कोई आज़माइश नहीं होगी।
(बुख़ारी व मुस्लिम)
अल्लाह के रसूल सल्ल0 की चेतावनीः-
हज़रत हुसैन बिन मिहसन रज़ि0 बयान करते हैं कि उनकी एक फूफी अल्लाह के रसूल सल्ल0 के पास आईं, आप सल्ल0 ने उनसे पूछा तुम्हारे पति हैं? उन्होंने कहा जी हाँ! आप सल्ल0 ने फरमाया तुम्हारा उनके साथ क्या व्यवहार रहता है? उन्होंने जवाब दिया, मैं उनकी कोई चिंता नहीं करती अलावा ऐसे काम में जिसको मैं खुद न कर सकूँ। आप सल्ल0 ने फरमाया यह तुम उसके साथ क्या करती हो, वही तुम्हारी जन्नत और दोज़ख़ है। (नसई)
औरत को शुक्रगुज़ार होना चाहिएः-
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल-आस रज़ि0 बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमाया अल्लाह तआला उस औरत की तरफ न देखेगा जो अपने पति की शुक्रगुज़ार न हो, जब कि वह उससे अलग-थलग हो कर नहीं रह सकती। (नसई)
अअअ
नव वर्ष
मासिक पत्रिका ‘‘सच्चा राही’’ का यह अंक आपकी सेवा में जिस समय पहुँचेगा, उस समय आप गत वर्ष सन् 2023 को अलविदा कह रहे होंगे और नव वर्ष 2024 का स्वागत कर रहे होंगे, ज़िन्दा क़ौमें ऐसे अवसर पर अपने बीते हुए साल का जाएज़ा लेती हैं और विचार करती हैं कि हमने क्या खोया और क्या पाया, यदि हमसे ग़लतियाँ और कोताहियाँ हुईं तो फिर उनको न दोहराएं, दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जिन्होंने अपने समय की क़दर की हो और उसका मूल्य अदा किया हो, ‘‘गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं’’ समय के संबंध से यह बात बीच में आ गई वास्तविक और मौलिक बात बीते हुए साल और आने वाले साल की है, पिछले साल मौत, ज़िन्दगी, खुशी और ग़मी की कितनी घटनाएं घटीं, वह सब बातें शायद हमारे और आप की जानकारी में सुरक्षित न हों, लेकिन फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर इस्राईल के वहशियना हमले और ख़ौफ़नाक बम्बारी को कोई छोटा बड़ा इन्सान नहीं भूल सकता है, आज की डिजिटल मीडिया ने पूरे विश्व को इस्राईली बरबरता दिखला दी, बर्बरता के ऐसे दृश्य सामने आए जिनको देखने के बाद यह कहना पड़ता है कि इन्सान के रूप में जंगल के यह शेर और भेड़िये हैं, जिनके मुँह इन्सान का खून लग चुका है।
07 अक्तूबर, 2023 से इस्राईल और फ़िलिस्तीन के बीच जो जंग शुरु हुई थी वह अब तक जारी है, बीच में पाँच से छः दिनों की जंगबन्दी हुई थी उसके बाद घमासान की लड़ाई हो रही है, जंग की जो तफ़सीलात आ रही हैं उससे मालूम होता है कि इस्राईल, ग़ाज़ा पट्टी पर ज़मीनी, हवाई और समुद्री रास्तों से हमलावर है तबाही और बरबादी के जो मनाज़िर सामने आ रहे हैं वह नाक़ाबिले बयान हैं, और दिल को दहलाने वाले हैं, एक तरफ़ लशकरे जर्रार है और दूसरी ओर निहत्थे फ़िलिस्तीनी अरब हैं, इस्राईली अत्याचार और बरबर्ता के सामने अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के परख़च्चे उड़ गये, हज़ारों माओं की गोदें सूनी हो गईं जिनके मासूम और ख़ूबसूरत बच्चे इस्राईली बम्बारी में तड़प तड़प कर मर गये, जो ज़िन्दा बचे उनके शरीर घायल और बमों की आग से झुलसे हुए हैं, अगर हक़ीक़त की निगाह से देखा जाए तो, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह तृतीय विश्वयुद्ध है, इस्राईल इस जंग में तनहा नहीं है उसके साथ दुनिया की सुपर पावर अमरीका जो अपने हथियारों और पूरी आर्थिक सहायता के साथ इस्राईल के साथ खड़ा है, इसके अलावा बरतानिया, फ्रांस जर्मन, यूरोप के सभी देश हैं यह वही देश हैं जिनकी कूटनीति और षडयंत्र की वजह से इस्राईल वजूद में आया, इतिहास का अध्ययन करने वाले भलीभांति जानते हैं कि ब्रिटिस इम्पाएर और उसके सहयोगियों ने अपने जाती फ़ायदे और मध्य पूर्व देशों पर अपना कन्ट्रोल मज़बूत करने के लिए इस्राइलियों (यहूदियों) को दूसरे देशों से ला कर फ़िलिस्तीन की सर ज़मीन पर आबाद किया यह सारी राजनीति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साकार हुई और 1948 ई0 में इस्राईल स्टेट घोषित हुई, उसके बाद फिलिस्तीनियों को तंग किया जाने लगा उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा होने लगा, अभी तक छोटी झड़पें और छोटी जंगें होती थीं, 1962, 1972 में जो जंगे हुईं थी वह हफ़्ते दस दिन में थम गईं थीं, लेकिन इस बार 7 अक्तूबर, 2023 को जो युद्ध छिड़ा, थमने का नाम नहीं ले रहा है, बीच में पाँच छः दिन के लिए जंग बन्दी हुई, लेकिन उसके बाद भयानक जंग शुरु हो गई। वायु सेना और समुद्री सेना और ज़मीनी फ़ोर्सेज़ हर ओर से फ़िलिस्तीनी घिरे हुए हैं, ऐसी हालत में वह अपना कितना और कैसे बचाव कर सकते हैं इसका अन्दाज़ा हम और आप यहाँ बैठ कर नहीं कर सकते हैं, एक तनहा फ़िलिस्तीन जिस पर आक्रमणकर्ता इस्राईल और उसके सहयोगी सुपर पावर अमरीका और पूरा यूरोपियन ब्लाक, इतने शत्रुओं के बीच में फ़िलिस्तीन डटा हुआ है, जहाँ चारों ओर बच्चे, बूढे और जवानों की बिखरी हुई लाशें हैं, जिनको दफ़न करने का इन्तिज़ाम भी नहीं, हम कैसे कहें कि 21वीं सदी की यह दुनिया पढ़ी लिखी, उन्नतिशील और प्रगतिशील है। कहा जाता है कि इस भूमण्डल पर वह उम्मत भी रहती है जिसको क़ुरआन में ‘‘ख़ैर उम्मत’’ के टाईटल से याद किया गया है और वह 57 देशों की मालिक भी है, उस उम्मत को नबी की ओर से आदेश दिया गया था, कि ‘‘तुम अपने भाई की मदद करो चाहे वह ज़ालिम हो या मज़लूम’’ फ़िलिस्तीनी भाइयों को हिंसा और रक्तपात से कब नजात मिलेगी, यह अल्लाह ही बेहतर जानता है इंशाअल्लाह उनकी यह क़ुरबानियाँ रंग लायेंगी, परद-ए-ग़ैब से ख़ैर का दरवाज़ा ख़ुलेगा।
फ़िलिस्तीनी भाइयों ने सब्र औेर इस्तिक़ामत की मिसाल क़ाएम कर दी। अल्लाह ने ऐसे बन्दों की बड़ी तारीफ़ की है।
मैं समझता हूँ कि वह अपने दुशमनों को संबोधित करते हुए कह रहे हैंः-
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में है।।
बुद्धिमान और समझदार इंसान वही है जो अपनी समीक्षा स्वयं करे कि दिन व रात के 24 घण्टों में कितने काम हमने लाभदायक किए और कितने हानिकारक, इस दृष्टिकोण से जब हम बीते हुए साल को देखेंगे तो हम अपने को घाटे में पाएंगे, जो समय चला गया पलट कर नहीं आएगा, अब हम नये वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, सबसे पहले हम प्रतीज्ञा करें कि पिछली ग़लतियों को नहीं दोहराएंगे, आने वाले साल में पूरी ज़िम्मेदारी के साथ अपने कर्तव्य को पूरा करेंगे, वह कर्तव्य ‘‘हुक़ू कुल्लाह’’ और ‘‘हुक़ूक़ुल इबाद’’ दोनों से संबंधित हैं यानी अल्लाह और उसके बन्दों दोनों का हक़ अदा किया जाए, एक मुसलमान के लिए हर हाल में अल्लाह का अज्ञा पालन अनिवार्य है, इसके बिना वह मोमिन और मुस्लिम नहीं, कर्तव्यों की एक लंबी सूची है, जिसकी तफ़सील आपको किताबों में मिल जाएगी, ईमान लाने के बाद इंसान पर सबसे पहला कर्तव्य नमाज़ को निर्धारित समय पर पढ़ना, सूरः निसा, आयत नं0- 103 के अनुकूल ‘‘बेशक नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर फ़र्ज़ है’’ नमाज़ का समय पर पढ़ना इस्लाम का मौलिक कर्तव्य है, अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फ़रमायाः- जिसने जानबूझ कर नमाज़ छोड़ दी वह कुफ्ऱ की सीमा में पहुँच गया। हम अल्लाह को हाज़िर व नाज़िर समझ कर दिल से प्रतिज्ञा करें प्रत्येक नमाज़ को उसके निर्धारित समय पर अदा करेंगे ताकि अल्लाह के फ़रमांबरदार बन्दों में हमारा नाम लिखा जाए। आने वाले साल के लिए हम यह भी प्रतिज्ञा करें कि हम अपने घरों और महल्लों से जिहालत को दूर करेंगे, इस जिहालत को दूर करने में जो परेशानियाँ और मुसीबतें होंगी उनको बर्दाश्त करेंगे, हमारा कोई बच्चा और बच्ची शिक्षा से वंचित न रहेगा, जिहालत एक कलंक है उसको मिटाइये, कि वास्तविकता यह है कि शिक्षा के मैदान में मुसलमनों का ग्राफ बहुत नीचे है, यदि हम चाहते हैं कि समाज में हमारा सम्मानीय स्थान हो, दुनिया और आख़िरत की हमें सफलता मिले तो दृढ प्रतिज्ञा करें कि अपने बच्चों को और क़ौम के बच्चों को शिक्षित बनाएंगे, ‘‘नव वर्ष का स्वागत नई उमंग और नये इरादों के साथ करें, गफ़लत और लापरवाही छोड़ कर बेदार और जागरूक बनें।
अमल से ज़िन्दगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी।
यह ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है।।
टअअ
इस्लामी अक़ीदे (विश्वास)
कब्र में सवाल व जवाबः-
सह़ी हदीस शरीफ़ में आया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः मरने के बाद क़ब्र में दो फरिश्ते आते हैं और वो मरने वाले से तौहीद व रिसालत के बारे में सवाल करते हैं, अबू दाऊद की रिवायत में आता है-
अनुवादः- ‘‘हज़रत अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कबीला बनू नज्जार के एक खजूर के बाग़ में तशरीफ ले गये, वहाँ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बहुत खौफ़नाक आवाज सुनी, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया- ये कब्रें किन लोगों की हैं? सहाबा ने अर्ज किया- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! ये उन लोगों की कब्रें हैं जो जाहिलियत के ज़माने में इंतेकाल कर गए, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमायाः अल्लाह की पनाह मांगो अ़जाबे क़ब्र और दज्जाल के फित्ने से। सहाबा ने अर्ज किया- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अ़जाबे क़ब्र किस वजह से होता है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया- जब मोमिन क़ब्र में रख दिया जाता है तो उसके पास एक फरिश्ता आता है और उससे कहता है- ‘‘तुम किसकी इबादत किया करते थे? अगर अल्लाह ने उसे हिदायत दी थी तो वो कहता है- ‘‘मैं अल्लाह की इबादत करता था’’ फिर उससे कहा जाता है तुम इस शख़्स के बारे में क्या कहते हो?’’ तो वो कहता है वो अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं’’ फिर उससे कहा जाता है ‘‘तुम्हारा दीन क्या है? वो कहता है ‘‘मेरा दीन इस्लाम है’’, फिर उसके बाद उससे किसी चीज़ के बारे में सवाल नहीं किया जाता, फिर उसको जहन्नम में उसके घर की तरफ ले कर जाया जाता है- और उससे कहा जाता है- ‘‘जहन्नम में तुम्हारा ये ठिकाना था, लेकिन अल्लाह तआला ने तुमको इससे बचा लिया और तुम पर रहम किया, इसलिए इसके बदले में तुम को जन्नत में एक घर अता फरमाया है, तो वो बन्दा कहता है ‘‘मुझे इजाजत दे दीजिये कि मैं ये ख़ुशख़बरी अपने घर वालों को सुना सकूँ, लेकिन उससे कहा जाएगा कि तुम यहीं आराम करो, और जब काफिर को क़ब्र में लिटाया जाता है, तो उसके पास एक फरिश्ता आता है और उसको झिंझोड़ता है, और उससे कहता है ‘‘तुम दुनिया में किसकी इबादत करते थे?’’ तो वो जवाब देता है ‘‘मैं नहीं जनता’’ फिर उससे कहा जाएगा कि न तूने समझा और न ही पढ़ा, फिर उससे पूछा जाएगा ‘‘तुम इस शख़्स के बारे में क्या कहते हो?’’ वो जवाब देगा जो लोग कहते थे वही मैं भी कहता हूँ। ‘‘फिर इसके बाद उसके कानों के दरमियान एक हथौड़ा मारा जाएगा, जिससे उसकी ऐसी चीख़ निकलेगी जिसको जिन्नात व इंसान के अलावा साऱी मख़लूक सुनेगी।’’
कुरआन मजीद की आयतों में इसकी तरफ इशारा मौजूद है, इरशाद हैः-
अनुवादः- ‘‘और अल्लाह ईमान वालों को मज़बूत बात से इस दुनिया में भी मज़बूत करता है और आख़िरत में भी, और अल्लाह जालिमों को गुमराह करता है और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है।
(सूरः इब्राहीम -27)
इसकी तफ़्सीर सहीह हदीसों में यही बयान की गयी कि इससे मुराद क़ब्र में तौहीद व रिसालत के बारे में सवाल होने वाले हैं, सहीह मुस्लिम की रिवायत में आता है-
अनुवादः- ‘‘हज़रत बरा बिन आजिब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि फरमाते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया- ‘‘और अल्लाह ईमान वालों को मजबूत बात से इस दुनिया में भी मजबूत करता है और आखिरत में भी, और अल्लाह जालिमों को गुमराह करता है और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है। ‘‘ये आयात अजाबे कब्र के बारे में नाजिल हुई हैं, बंदे से मालूम किया जाएगा तुम्हारा रब कौन है? वो जवाब देगा मेरा रब अल्लाह है, और मेरे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं मानो अल्लाह तआला के इस क़ौल ‘‘और अल्लाह ईमान वालों को मजबूत बात से इस दुनिया में भी मजबूत करता है और आखिरत में भी, और अल्लाह जालिमों को गुमराह करता है और अल्लाह तआला जो चाहता है करता है’’। इससे मुराद बंदे का इस तरह जवाब देना है।
(सहीह मुस्लिम हदीस नं० 7398)
आलमे बरजख़ में जो कुछ होता है जाहिरी तौर पर मरने वाले के जिस्म पर उसकी निशानियाँ नज़र आती हैं, इसलिए कि उसका असल तअल्लुक रूह से होता है, और बड़ी हद्द तक उसकी मिसाल गहरी नींद से दी जा सकती है, सोने वाला न जाने ख़्वाब में कहाँ कहाँ की सैर करता है, और तरह तरह की खुशियां उसको हासिल हो रही होती हैं, या सख़्त तकलीफ महसूस कर रहा होता है लेकिन पास बैठा हुआ दूसरा इंसान इसको बिल्कुल महसूस नहीं कर पता, इसी तरह मरने वाले के एहसास का तअल्लुक उसकी रूह से होता है और उसके साथ जो कुछ हो रहा है उसको दूसरा उसके जिस्म पर महसूस नहीं कर सकता, कि वो आलम ही दूसरा है।
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जंग पसंद टोला
अमरीका का नाम यूं तो बहुत बड़ा है, लेकिन उम्र के लिहाज़ से वह कुवैत से भी छोटा है। यहां अलग-अलग मुल्कों, अलग-अलग तहज़ीबों, अलग- अलग अक़ीदों, अलग-अलग तबीयतों, अलग-अलग- ज़बानों और अलग-अलग नजरियों और ख़्यालों के लोग रहते हैं। अमरीका में कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो उनको आपस में जोड़ कर रख सके और उनमें इत्तिहाद पैदा कर सके, सिवाए इसके कि उनको कोई बाहरी ख़तरा दिखाया जाए और उसकी दहशत उनके दिलों में पैदा की जाए और उससे डरा कर उनको अपने आपसी इख़्तिलाफ़ात व झगड़े भुला कर एक रहने पर मजबूर किया जाए। यही वजह है कि अमरीका को हर कुछ दिन में एक नये दुश्मन की तलाश रहती है और वह मीडिया की मदद से नया दुश्मन तलाश करने में कामयाब भी हो जाता है। कुछ ग़लती और नासमझी उसके दुश्मन की तरफ़ से भी होती है जो अपनी नादानी की वजह से अमरीका के लिए राह हमवार कर देता है।
अमरीका अगर ऐसा न करे तो वह खुद खानाजंगी (गृहयुद्ध) का शिकार हो जाए और वहां आबाद अलग अलग क़ौमों के लोग एक दूसरे के खिलाफ़ झगड़ते नज़र आएं और खुद अमरीकी हुकूमत और अमरीकी सदर को ले कर इतने सवालात खड़े किये जाएं जिनका जवाब देना अमरीकी सदर के लिए मुश्किल हो जाए। इन्हीं सवालों से बचने के लिए अमरीकियों को एक दुश्मन दिखा कर और दुश्मन भी ऐसा जो एक साथ पूरे यूरोप, अमरीका और उसके सहयोगी देशों को इस तरह धमकी दे रहा हो कि अब घुसा कि तब घुसा, अमरीकी हुकूमत अपना मकसद पूरा करने में कामयाब हो जाती है।
1950 ई से 1975 ई0 तक वियतनाम को दुश्मन की शक्ल में पेश करता रहा और इस तरह पच्चीस साल तक मुल्क में जंग का माहौल बना कर अमरीकी हुकूमत अपनी अवाम को बेवकूफ बनाती रही, इसके बाद उसने कोरिया का हव्वा खड़ा किया, फिर अरब दुनिया का शिकार करने के लिए उसने ईरान को अपने जाल के तौर पर इस्तेमाल किया। सद्दाम हुसैन और उनके केमिकल हथियारों का ख़ौफ़ अपने अवाम के दिल में पैदा करके उनको बेवकूफ बनाया। अरब मुल्क, दहशत पैदा करके जितना उनको दुह सकता था दुहा। कभीओसामा बिन लादेन का इस्तेमाल किया और कभी अबू बकर बग़दादी का, कभी मुल्ला उमर का नाम अख़बारों की सुर्ख़ियों में आता था तो कभी ऐमन ज़वाहिरी का, कभी तालिबान से डराया तो कभी दाइश से, और उनके बारे में फे़क वीडियोज़ जो दिखाई जा सकती थीं वह दिखाईं। यह सब काम एक मक़सद के तहत बड़ी मंसूबा बन्दी से और मुआफ़िक़ और मुख़ालिफ़ दोनों की नफ़्सियात का गहरा मुताला करके किए गए। दुनिया कुछ समझती रही और होता कुछ रहा।
सच्ची बात यह है कि अमरीका यह सब चालें इसलिए चलता है क्योंकि वह जानता है कि अगर उसने अपना कोई खारिजी दुश्मन न बनाया और अपने लोगों के दिलों में उस दुश्मन का डर न बिठाया तो यक़ीनन वह आंतरिक अराजकता और व्याकुलता और अलग-अलग तबकों व क़बीलों के दरमियान अक़ीदा व ज़बान और तहज़ीब व सक़ाफ़त की बुनियाद पर होने वाली खानाजंगी का न थमने वाला एक ऐसा सिलसिला शुरु हो जाएगा कि उसके बाद चाहे वह अपनी फ़ौजी ताक़त में कितना मज़बूत क्यों न हो मगर उसको अपने खित्ते में होने वाली अन्दरूनी कशमकश पर कन्ट्रोल पाना मुमकिन न होगा।
उसकी कामयाबी इसी में है कि वह अपनी अवाम को हमेशा यह तास्सुर देता रहे कि वह जंग की हालत में है। एक सियासी विश्लेषक ने इस जंग पसंद टोले के बारे में कहा कि एक ख़ास फ़ौजी नज़रिया अमरीका की पाॅलिसी में शामिल है जिसकी वजह से वह हमेशा अपने मुल्क के बाहर किसी न किसी दुश्मन से जंग करने के इन्तिज़ार में रहता है। यही वजह है कि वह हिकमत-ए-अमली के तौर पर जिन मुल्कों को निशाना बनाना चाहता है तो उनके अन्दरूनी मसाएल को हवा देता है और इलाक़ाई कशमकश पैदा करके दखल अंदाज़ी का मौक़ा और साथ-साथ हथियारों की सप्लाई का रास्ता निकाल लेता है।
अमरीकी सरमायादारना निज़ाम की कामयाबी का आधार वैश्विक बाज़ार की मज़बूती और उसकी आयात-निर्यात को अमरीकी अर्थव्यवस्था के नफ़े के लिए कन्ट्रोल करने में निहित है। इसलिए कि अमरीकी मईशत (अर्थव्यवस्था) का दारोमदार तरक़्क़ी पसंद मईशत पर नहीं, बल्कि जंगी मईशत पर आधारित है। यही वजह है कि अमरीका जंगों पर मजबूर है और इसलिए कई बार ऐसा भी हुआ है कि उसने महज़ अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए बग़ैर किसी वजह से जंगें छेड़ीं हैं।
अमरीका की जो कम्पनियां हथियार बनाती हैं और जो पूंजीवादी लोग उन कम्पनियों के मालिक होते हैं वह लोग अमरीकी हुकूमत में सबसे ज़्यादा अहमियत के हामिल होते हैं, या उन लोगों के हुकूमती सतह पर तिजारती ताल्लुक़ात (व्यापारिक संबंध) बेहद मज़बूत होते हैं, जिसकी बुनियाद पर उन कम्पनियों को ग़ैर मामूली मुनाफ़ा हासिल होता है, क्योंकि जब जंगे छिड़ती हैं और वह देर तक चलती हैं तो उनमें ख़र्च होने वाली रक़म यही कम्पनियां इत्तिहादी या शिकस्तखुर्दा ममालिक को अदा करती हैं, यह याद रहे कि अमरीका में हथियार बनाने वाली पन्द्रह कम्पनियों में से तेरह कम्पनियां यहूदियों की हैं, जिस तरह हथियार बन रहे हैं उसी तरह उसकी खपत भी चाहिए और उसके लिए मंडी भी चाहिए और ऐसे ख़रीदार चाहिए जो उन हथियारों की खरीदारी की ताक़त रखते हैं। पेट्रोल की दौलत से मालामाल अरब देशों से बेहतर हथियारों का खरीदार और कौन हो सकता है, जिनका काम सिर्फ़ हथियार खरीदना, स्टाक करना और आपस ही में उसे इस्तेमाल कर लेना है। मजीद यह कि जब जंगबन्दी की जाती है तो उसके बाद तामीर का काम शुरु होता है और उस वक़्त यह अमरीकी कम्पनियां आगे बढ़ कर तामीर के नाम पर खूब मुनाफ़ा हासिल करती हैं और इस तरह तामीर व तरक़्क़ी के नाम पर अरब मुल्कों की तिजोरियों के मुंह खुल जाते हैं और फिर एक बार अमरीकी और यहूदी तामीराती कम्पनियों के एकाउन्ट में रक़में आने लगती हैं, गोया कि अमरीका ढाने के भी पैसे लेता है और बनाने के भी।
यही वह राज़ है जिसकी वजह से हर जंग, हर सियासी कशमकश, हर बग़ावत और हर फ़ौज़ी इन्क़िलाब या हर हुकूमती और नस्ली टकराव के पीछे अमरीका का हाथ नज़र आता है, इसलिए कि इसकी ज़िन्दगी जंगों में ही है और अगर यह ख़ारजी जंगें न हों तो यक़ीनी बात है कि अमरीका थक हार कर अपनी मौत आप मर जाए।
भारत के अतीत में मुस्लिम शासकों की धार्मिक निष्पक्षता
हिन्दुओं के धार्मिक पेशवाओं का सम्मानः-
और जो बातें ज़ियाउद्दीन को लिखना चाहिए था, उनको प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद ने लिख कर अपनी सत्यवादिता का परिचय दिया। वह अपनी किताब हिस्ट्री आॅफ़ कर्दना टकर््स में सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक के शासनकाल पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैंः-
पूरी सल्तनत की व्यवस्था का गहरा अध्ययन किया जाए तो अनुमान होगा कि मुसलमानों का शासन अब अच्छी तरह स्थापित हो गया था। मुसलमानों की सेना से कूच करते समय वह पहले जैसा भेदभावपूर्ण जोश भी समाप्त हो रहा था। उनके व्यवहार में पहले जैसी कठोरता नहीं रह गई थी। जीवन जब शान्तिपूर्ण हो गया तो राजनैतिक कर्तव्यों का रूप भी बदल गया और विकासशील विचार भी पैदा होते गये। हिन्दुओं के साथ अच्छा व्यवहार किया जाने लगा और शासक वर्ग को भी उदारता और सामाजिक सद्भाव का एहसास पैदा होता गया। चाहे यह कितना ही कम क्यों न रहा हो, एक विकसित सल्तनत में तरह-तरह की समस्याएं उठती रहीं जिसके कारण एक शासक को ऐसी नीति अपनानी पड़ी कि वह स्वयं भी रहे और दूसरों को भी रहने दे। इसीलिए सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक ने हिन्दुओं के विरुद्ध कोई अशोभनीय व्यवहार नहीं अपनाया बल्कि उसने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया और उनको पद प्रदान किए उसने सती की प्रथा पर भी प्रतिबन्ध लगाया जो उसकी उदारता का प्रमाण है।
फ़िरोज़शाह तुग़लक (135-88) बड़ा धार्मिक शासक हुआ है। ज़ियाउद्दीन बरनी उससे बहुत प्रसन्न दिखायी देते हैं, उसके बारे में लिखते हैंः-
‘‘दिल्ली के तख्त पर फ़िरोज़शाह जैसा नेक दिल बादशाह बैठा हुआ किसी को नहीं देखा।’’
लेकिन क्या उसने क़ाज़ी मुग़ीसुद्दीन के उपदेशों का पालन किया, कदापि नहीं, उस युग का इतिहासकार शम्स सिराज अफ़ीफ़ भी फ़िरोज़शाह का बड़ा प्रशंसक है, वह पहले तो यह कहता है कि एक बादशाह को देश के लिए कैसा होना चाहिए, इस पर चर्चा करते हुए उसने जो कुछ लिखा है उसके प्रमाण में पवित्र क़ुरआन की आयतें, हदीस की रिवायतें, बुजुर्गों और पिछले शासकों के मत भी प्रस्तुत किये हैं, जिनका निचोड़ यह है कि एक राजा सभी लोगों के साथ दिल से स्नेह रखता है। सामान्य लोगों को अपनी कृपा के मेह से लाभ पहुँचाता है और बरसने वाले बादलों की तरह जीवधारियों पर एहसान के मोती बरसाता है। अनजान लोगों को एकता के सूत्र में बाँधता है, अपनी विनम्रता और दयाशीलता और प्यार से अपनों की संख्या में प्रतिदिन वृद्धि करता रहता है। 72 सम्प्रदाय उसकी छाया में आराम पाते हैं। उसके दिल में जितना स्नेह होगा उतना ही उसकी नेकनामी की ख्याति फैलेगी। उसका मोती स्नेह और दौलत है जिसके मूल्य का अनुमान लगाना कठिन है। वह क्षमाशीलता को अपनी पहचान बनाता है। विनम्रता के गेंद से अपने साहस के मैदान में खेलता रहता है। उसके स्नेह के दरबार में विनम्रता के मोती पाये जाते हैं। वह अपने न्याय से पीड़ित लोगों को तसल्ली देता है, ग़रीबों और वंचितों को उपकृत करता रहता है। वह अपने शासनकाल में त्याग से काम लेता है और जो नक़द राशि या दौलत उसके यहाँ एकत्र होती है वह ज़रूरतमंदों तक पहुँचाता रहता है। स्पष्ट है कि सभी जीवधारी, साधारण जन, पीड़ितों और ज़रूरतमंदों में हिन्दू और मुसलमान दोनों प्रजा सम्मिलित हैं। प्रजा पर उपकार में यही इस्लाम की वास्तविक शिक्षा है। शमस सिराज अफ़ीफ़ के कथानानुसार फ़िरोज़शाह तुग़लक इन सभी गुणों का स्वामी था। इसीलिए उस युग के सद्गुण लिखने में उसका क़लम बहुत तेज़ हो गया है। वह लिखता है कि फ़िरोज़शाह तुग़लक अपने देश के लोगों पर उसी तरह मेहरबान था, जिस तरह माँ अपने बच्चों पर रहती है, इसीलिए उसने अपनी सल्तनत के लोगों से अपने व्यवहार में अपना नियम यह बनाया थाः
अपनी प्रजा पर वैसा ही ध्यान रख जैसा माँ अपने बच्चे पर रखती है।
वह लोगों की बहुत ग़लतियों और अपराधों को क्षमा करता रहता लेकिन चोरी और हत्या के अपराध को क्षमा नहीं करता क्योंकि इससे दूसरों के अधिकारों का हनन होता। उसने राजगद्दी पर बैठते ही सभी भारी कर जो किसानों और काश्तकारों के ज़िम्मे थे, माफ़ कर दिए ताकि लोगों में बेचैनी के बजाए ख़ुशहाली पैदा हो। सभी ग़ैर शरई करों को भी निरस्त कर दिया गया और यदि कोई कर्मचारी निर्धारित कर से अधिक वसूल करता तो उसकी कठोरतापूर्वक क्षक्षिपूर्ति की जाती। आवश्यक वस्तुओं और ग़ल्ले की कीमतें निर्धारित कर दी गयीं। उन्हीं के अनुसार क्रय-विक्रय होता, उसमें कोई असन्तुलन न होता। इस तरह बाज़ार वाले भी खुश थे और सामान्य लोग भी सन्तुष्ट रहे। आबादी बढ़ने लगी और हर चार कोस पर एक गाँव आबाद हो गया। अफ़ीफ़ ने उस ज़माने के बहुत से अन्य विवरण लिखे हैं। स्पष्ट है कि किसान काश्तकार, बाज़ार और गाँव वाले उस ज़माने में अधिकतर हिन्दू ही थे। फ़िरोज़शाह ने अपनी प्रजा की सम्पन्नता की कोशिश में क़ाज़ी मुग़ीसुद्दीन की तरह हिन्दुओं को इस्लाम का दुश्मन घोषित नहीं किया बल्कि सामान्य हिन्दू प्रजा की सम्पन्नता और भलाई के लिए प्रयासरत रहा। इसीलिए अफ़ीफ़ को लिखने में यह खुशी हुई कि सारी ग़ैर मुस्लिम प्रजा सेवा की भावना के साथ जीवन व्यतीत करती थी, सौदागर भी सम्पन्न और खुशहाल थे। वह दूसरे देशों में जा कर तीन-तीन, चार-चार वर्ष रहते और अपार लाभ प्राप्त करके वापस आते। (पृ0-80) अफ़ीफ़ के शब्द यह हैंः-
‘‘फ़िरोज़शाह के ज़माने में ज़िम्मी और शरण पाये लोग अर्थात हिन्दू जनता सम्पन्न जीवन व्यतीत करती थी।’’
उसके प्रशासन पर टिप्पणी करते हुए आधुनिक युग के इतिहासकारों में डाॅ0 ईश्वर टोपा ने लिखा है कि फ़िरोज़शाह तुग़लक ने अपने शासन में अशोक के सिद्धान्तों को अपनाया कि राजनीति के बुरे प्रभाव समाप्त हो कर सामान्य लोगों की भलाई का एक नया सामाजिक और राजनैतिक ढाँचा स्थापित हो जाए। उसके शासनकाल की बुनियादी बातों ने मानवता के अच्छे पहलू थोड़ा अधिक स्पष्ट किए अर्थात उसकी राजनीति में नरमी, दयालुता भरी रही। उसने अपने शासनकाल का सबसे बड़ा कर्तव्य यह घोषित किया था कि लोगों को असाधारण दण्ड न दिए जाएँ और उनको ग़ैर क़ानूनी रूप से न मारा जाए। उसके शासनकाल में मानवता को पाशविक शक्तियों पर प्रभुत्व प्राप्त हुआ, स्वयं उसने लोगों की खातिर राजनीति की सभी अतार्किक बातों और क़ानूनियत के विरुद्ध युद्ध और उनके जन्मसिद्ध अधिकारों के हनन की, इस तरह वह अपनी प्रजा का सच्चा रक्षक बन गया था। जनता की सेवा और जनता की भलाई का जो विचार हज़रत मुहम्मद सल्ल0 का था उसी को उसने अमली जामा पहनाया। उसके दिल की इच्छा एक इस्लामी राज्य स्थापित करने की थी लेकिन उसी के साथ-साथ राजनीति के नैतिक और सांस्कृतिक तत्वों को भी स्पष्ट करने की चिन्ता में लगा रहा। उसका शासन व्यावहारिक और सैद्धान्तिक हैसियत से इस्लामी तर्ज़ का था लेकिन उसका मूल उद्देश्य प्रजा की भलाई था। सभी मामले इस्लामी दृष्टिकोण से तय होते थे लेकिन ऐसे सभी कठोर क़ानून समाप्त कर दिए गये थे जिनसे लोग परेशान और विवश थे और इन्हीं विधानों को ग़ैर इस्लामी घोषित किया गया।
………….जारी…………..
टअअ
इस्लाम आतंक नहीं अनुसरणीय जीवन-आदर्श
सच्चाई क्या है? यह जानने के लिए हम वही तरीक़ा अपनाएंगे जिस तरीके से हमें सच्चाई का ज्ञान हुआ था। मेरे द्वारा शुद्ध मन से किये गये इस पवित्र प्रयास में यदि अनजाने में कोई गलती हो गयी तो उसके लिए पाठक मुझे क्षमा करें।
इस्लाम के बारे में कुछ भी प्रमाणित करने के लिए यहाँ हम तीन कसौटियों को लेंगे।

  1. र्कुआन मजीद में अल्लाह के आदेश।
  2. पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की जीवनी।
  3. हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की कथनी यानी हदीस।
    इन तीनों कसौटियों से अब हम देखते हैं किः-
    ० क्या वास्तव में इस्लाम निर्दोषों से लड़ने और उनकी हत्या करने व हिंसा फैलाने का आदेश देता है?
    ० क्या वास्तव में इस्लाम दूसरों के पूजा घरों को तोड़ने का आदेश देता है?
    ० क्या वास्तव में इस्लाम लोगों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाने का आदेश देता है?
    ० क्या वास्तव में हमला करने, निर्दोषों की हत्या करने व आतंक फैलाने का नाम ही जिहाद है?
    ० क्या वास्तव में इस्लाम एक आतंकवादी धर्म है?
    सर्वप्रथम यह बताना आवश्यक है कि हज़रत मुहम्मद सल्ल0 अल्लाह के महत्वपूर्ण एवं अन्तिम पैगम्बर हैं। अल्लाह ने कुरआन आप पर ही उतारा। अल्लाह का रसूल होने के बाद से जीवन पर्यन्त आप सल्ल0 ने जो किया, वह कुरआन के अनुसार ही किया।
    दूसरे शब्दों में हज़रत मुहम्मद सल्ल0 के जीवन के यह 23 साल कुरआन या इस्लाम का व्यवहारिक रूप है। अतः कुरआन या इस्लाम को जानने का सबसे महत्वपूर्ण और आसान तरीक़ा हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की पवित्र जीवनी है, यह मेरा स्वयं का अनुभव है। आपकी जीवनी और कुरआन मजीद पढ़ कर पाठक स्वयं निर्णय कर सकते हैं कि इस्लाम एक आतंक है? या आदर्श।
    आप सल्ल0 ने ही लोगों को अल्लाह का पैग़ाम दिया कि अल्लाह एक है उसका कोई शरीक़ नहीं। केवल वही पूजा के योग्य है। सब लोग उसी की इबादत करो। अल्लाह ने मुझे नबी बनाया है। मुझ पर अपनी आयतें उतारी हैं ताकि मैं लोगों को सत्य बताऊँ। जो लोग मुहम्मद सल्ल0 के पैगाम पर ईमान लाए वे मुस्लिम अर्थात मुसलमान कहलाए।
    बीवी ख़दीजा रज़ि0 आप पर विश्वास (ईमान) ला कर पहली मुसलमान बनीं। उसके बाद चचा अबू-तालिब के बेटे अली रज़ि0 और मुँह बोले बेटे जैद व आप सल्ल0 के गहरे दोस्त अबू बक्र रज़ि0 ने मुसलमान बनने के लिए ‘‘अश्हदु अल्ला इलाह इल्लल्लाहु’’ यानी ‘‘मैं गवाही देता हूँ, अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और मुहम्मद सल्ल0 अल्लाह के रसूल हैं’’। कहकर इस्लाम कुबूल किया।
    मक्का के अन्य लोग भी ईमान ला कर मुसलमान बनने लगे। कुछ समय बाद ही कुरैश के सरदारों को मालूम हो गया कि आप सल्ल0 अपने बाप-दादा के धर्म बहुदेववाद और मूर्तिपूजा के स्थान पर किसी नये धर्म का प्रचार कर रहे हैं और बाप-दादा के दीन को समाप्त कर रहे हैं। यह जान कर आप सल्ल0 के अपने ही कबीले कुरैश के लोग बहुत क्रोधित हो गये। मक्का के सारे बहुईश्वरवादी काफिर सरदार इकट्ठे होकर मुहम्मद सल्ल0 की शिकायत लेकर आपके चचा अबू तालिब के पास गये। अबू तालिब ने मुहम्मद सल्ल0 को बुलवाया और कहा ‘‘मुहम्मद ये अपने कुरैश कबीले के असरदार सरदार हैं, ये चाहते हैं कि तुम यह प्रचार न करो कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और अपने बाप-दादा के धर्म पर क़ायम रहो।’’
    मुहम्मद सल्ल0 ने ‘ला इला-ह इल्लल्लाह’ (अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं है) इस सत्य का प्रचार छोड़ने से इन्कार कर दिया। कुरैश के सरदार क्रोधित हो कर चले गये।
    इसके बाद इन कुरैश के सरदारों ने तय किया कि अब हम मुहम्मद सल्ल0 का हर प्रकार से विरोध करेंगे। वे मुहम्मद सल्ल0 और उनके साथियों को बेरहमी के साथ तरह-तरह से सताते, अपमानित करते और उन पर पत्थर बरसाते। इसके बाद भी आप सल्ल0 ने उनकी दुष्टता का जवाब सदैव सज्जनता और सद्व्यवहार से ही दिया।
    मुहम्मद सल्ल0 व आपके साथी मुसलमानों के विरोध में कुरैश का साथ देने के लिए अरब के और बहुत से कबीले थे जिन्होंने आपस में यह समझौता कर लिया था कि कोई क़बीला किसी मुसलमान को पनाह नहीं देगा। प्रत्येक कबीले की ज़िम्मेदारी थी, जहाँ कहीं मुसलमान मिल जाएं उनको खूब मारें-पीटें और हर तरह से अपमानित करें, जिससे कि वे अपने बाप-दादा के धर्म की ओर लौट आने को मजबूर हो जाएं।
    दिन-प्रतिदिन उनके अत्याचार बढ़ते गये। उन्होंने निर्दोष असहाय मुसलमानों को कैद किया, मारा-पीटा, भूखा- प्यासा रखा। मक्के की तपती रेत पर नंगा लिटाया, लोहे की गर्म छड़ों से दागा और तरह-तरह के अत्याचार किये।
    उदाहरण के लिए हज़रत यासिर रज़ि0 और उनकी बीवी हज़रत सुमय्या रज़ि0 तथा उनके पुत्र हज़रत अम्मार रज़ि0 मक्के के गरीब लोग थे और इस्लाम कुबूल कर मुसलमान बन गये थे। उनके मुसलमान बनने से नाराज मक्के के काफिर उन्हें सजा देने के लिए जब कड़ी दोपहर हो जाती, तो उनके कपड़े उतार उन्हें तपती रेत पर लिटा देते।’
    हज़रत यासिर रज़ि0 इन जुल्मों को सहते हुए तड़प-तड़प जाते थे। मुहम्मद सल्ल0 व मुसलमानों का सबसे बड़ा विरोधी अबू जहल बड़ी बेदर्दी से हज़रत सुमय्या रज़ि0 के पीछे पड़ा रहता। एक दिन उन्होंने अबू-जहल को बद्दुआ दे दी जिससे नाराज़ होकर अबू जहल ने भाला मार कर हज़रत सुमय्या रज़ि0 का क़त्ल कर दिया। इस तरह इस्लाम में हज़रत सुमय्या रज़ि0 ही सबसे पहले सत्य की रक्षा के लिए शहीद बनीं।
    दुष्ट, कुरैश, हज़रत अम्मार रज़ि0 को लोहे का कवच पहना कर धूप में लिटा देते। तपती हुई रेत पर लिटाने के बाद मारते मारते बेहोश कर देते। इस्लाम कुबूल कर मुसलमान बने हज़रत बिलाल रज़ि0 कुरैश सरदार उमैय्या के गुलाम थे। उमैय्या ने यह जान कर कि बिलाल मुसलमान बन गये हैं, उनका खाना पानी बन्द कर दिया। ठीक दोपहर में भूखे-प्यासे ही वह उन्हें बाहर पत्थर पर लिटा देते और छाती पर बहुत भारी पत्थर रखवा कर कहता- ‘‘लो मुसलमान बनने का मज़ा चखो’’।
    उस समय जितने भी गुलाम, मुसलमान बन गये थे उन सभी पर इसी तरह के अत्याचार हो रहे थे। हज़रत मुहम्मद सल्ल0 के जिगरी दोस्त हज़रत अबू-बक्र रज़ि0 ने उन सब को खरीद खरीद कर गुलामी से आजाद कर दिया।
    जब मक्का में काफिरों के अत्याचारों के कारण मुसलमानों का जीना मुश्किल हो गया तो मुहम्मद सल्ल0 ने उन्हें हब्शा जाने का आदेश दिया।
    हब्शा का बादशाह नज्जाशी ईसाई था। अल्लाह के रसूल सल्ल0 का हुक्म पाते ही बहुत से मुसलमान हब्शा चले गये। जब कुरैश को पता चला, तो उन्होंने अपने दो आदमियों को दूत बना कर हब्शा के बादशाह के पास भेज कर कहलवाया कि ‘‘हमारे यहाँ के कुछ मुजरिमों ने भाग कर आपके यहाँ शरण ली है। इन्होंने हमारे धर्म से बगावत की है और आपका ईसाई धर्म भी नहीं स्वीकारा, फिर भी आपके यहाँ रह रहे हैं। ये अपने बाप दादा के धर्म से बगावत कर एक ऐसा नया धर्म लेकर चल रहे हैं, जिसे न हम जानते हैं और न आप। ये हमारे मुजरिम हैं, इनको लेने के लिए हम आये हैं।’’
    बादशाह नज्जाशी ने मुसलमानों से पूछा ‘‘तुम लोग कौन सा ऐसा नया धर्म लेकर चल रहे हो, जिसे हम नहीं जानते?’’ इस पर मुसलमानों की ओर से हज़रत जाफर रज़ि0 बोलते हैं बादशाह! पहले हम लोग असभ्य और गंवार थे। बुतों की पूजा करते थे, गन्दे काम करते थे, पड़ोसियों से तथा आपस में झगड़ा करते रहते थे। इस बीच अल्लाह ने हममें अपना एक रसूल भेजा। उसने हमें सत्य-धर्म इस्लाम की ओर बुलाया। उसने हमें अल्लाह का पैगाम देते हुए कहाः ‘‘हम केवल एक ईश्वर की पूजा करें, बेजान बुतों की पूजा छोड़ दें, सत्य बोलें और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करें। किसी के साथ अत्याचार और अन्याय न करें। व्यभिचार और गन्दे कार्यों को छोड़ दें, अनाथों और कमज़ोरों का माल न खाएं, पाक दामन औरतों पर तोहमत न लगाएं, नमाज़ पढ़ें और ख़ैरात यानी दान दें।’’
    हमने इस पैगाम को और उसको सच्चा जाना और उस पर ईमान यानी विश्वास लाकर मुसलमान बन गये। हज़रत जाफर रज़ि0 के जवाब से बादशाह नज्जाशी बहुत प्रभावित हुआ। उसने दूतों को यह कह कर वापस कर दिया कि ये लोग अब यहीं रहेंगे।
    मक्का में मुसलमानों के लिए कुरैश के अत्याचार असहनीय हो चुके थे। इससे आप सल्ल0 ने मुसलमानों को मदीना चले जाने के लिए कहा और हिदायत दी कि एक-एक, दो-दो करके निकलो ताकि कुरैश तुम्हारा इरादा भाँप न सकें। मुसलमान चोरी-छिपे मदीने की ओर जाने लगे। अधिकाँश मुसलमान निकल गये लेकिन कुछ कुरैश की पकड़ में आ गये और क़ैद कर लिये गये। उन्हें बड़ी बेरहमी से सताया गया ताकि वे मुहम्मद सल्ल0 के बताए धर्म को छोड़ कर अपने बाप-दादा के धर्म में लौट आएं।
    अब मक्का में इन बन्दी मुसलमानों के अलावा अल्लाह के रसूल सल्ल0 अबू बक्र रज़ि0 और अली रज़ि0 ही बचे थे, जिन पर काफिर कुरैश घात लगाये बैठे थे। मदीना के लिए मुसलमानों की हिज़रत से यह हुआ कि मदीना में इस्लाम का प्रचार-प्रसार शुरु हो गया। लोग तेज़ी से मुसलमान बनने लगे।
    एक तरफ कुरैश लगातार कई सालों से मुसलमानों पर हर तरह के अत्याचार करने के साथ साथ उन्हें नष्ट करने पर उतारू थे, वहीं दूसरी तफर आप सल्ल0 पर विश्वास लाने वालों को अपना वतन छोड़ना पड़ा, अपनी दौलत, जायदाद छोड़नी पड़ी इसके बाद भी मुसलमान सब्र का दामन थामे ही रहे। लेकिन अत्याचारियों ने मदीना में भी उनका पीछा न छोड़ा और एक बड़ी सेना के साथ मुसलमानों पर हमला कर दिया।
    युद्ध की अनुमतिः-
    जब पानी सिर से ऊपर हो गया तब अल्लाह ने भी मुसलमानों को लड़ने की इजाज़त दे दी। अल्लाह का हुक्म आ पहुँचा-
    ‘‘जिन मुसलमानों से (खामखाह) लड़ाई की जाती है, उनको इजाज़त है (कि वे भी लड़ें), क्योंकि उन पर जुल्म हो रहा है और खुदा उनकी मदद करेगा, वह यक़ीनन उनकी मदद पर कुदरत रखता है।’’
    (क़ुरआन-22ः39)
    असत्य के लिए लड़ने वाले अत्याचारियों से युद्ध करने का आदेश अल्लाह की ओर से आ चुका था। मुसलमानों को भी सत्य धर्म इस्लाम की रक्षा के लिए तलवार उठाने की इजाज़त मिल चुकी थी। अब जिहाद (यानी असत्य और आतंकवाद के विरोध के लिए प्रयास अर्थात् धर्मयुद्ध) शुरु हो गया।
    सत्य की स्थापना के लिए और अन्याय, अत्याचार तथा आतंक की समाप्ति के लिए किये गये जिहाद (यानी धर्मरक्षा व आत्मरक्षा के लिए युद्ध) में अल्लाह के रसूल सल्ल0 की विजय होती रही। मक्का व आसपास के काफिर मुश्रिक औंधे मुँह गिरे।
    इसके बाद पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल0 दस हज़ार मुसलमानों की सेना के साथ मक्का में असत्य व आतंकवाद की जड़ को समाप्त करने के लिए चले। अल्लाह के रसूल सल्ल0 की सफलताओं और मुसलमानों की अपार शक्ति को देख मक्का के काफिरों ने हथियार डाल दिये। बिना किसी खून- खराबे के मक्का फतह कर लिया गया। इस तरह सत्य और शान्ति की जीत तथा असत्य और आतंकवाद की हार हुई।
    आतंकवादी की परिभाषा क्या है?
    यह एक वास्तविकता है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी संगठन ने आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा नहीं बताई है। हमारे प्रधानमन्त्री ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि आज तक इस शब्द की किसी स्तर पर न तो कोई स्पष्ट व्याख्या सामने आई है और न कोई सहमति बन पाई। इस बात का सबसे अधिक लाभ पाश्चात्य देशों और इस्राईल को हुआ और सबसे ज़्यादा हानि मुसलमानों को हुई। 9/11 की दिल दहला देने वाली घटना के पश्चात तो ऐसा लगा कि पूरे मुस्लिम समप्रदाय को आतंकवादी मान लिया गया है। अमरीका ने पूरे विश्व पर अपनी बपौती स्थापित करने के लिए पाकिस्तान और पश्चिमी एशिया के बेरोज़गार युवाओं को कुछ मदरसों के पाठ्यक्रम तैयार करके आतंकवाद की शिक्षा दिलवाई। ‘जेहाद’ की ग़लत व्याख्या करके उन्हें आतंकवाद की आग में झोंक दिया। ग़लत बहाने से अमरीका ने इराक़़, सीरिया और अफ़गानिस्तान पर आक्रमण किये और कुछ अरब देशों को अपने गुट में शामिल करके व्यवहारिक रूप से तेल की दौलत पर अधिकार कर लिया। दूसरी ओर शिक्षा, विज्ञान और तकनीक से सुसज्जित इसराईल को अरब और फिलिस्तीनियों के विरुद्ध एक चैकीदार के रूप में अरब धरती पर बसाया जिससे फिलिस्तीन की एक जटिल समस्या अस्तित्व में आई।
    9/11 की ज़िम्मेदारी ओसामा बिन लादेन पर डाल दी गई और रहस्यमय अन्दाज़ में उसकी हत्या करके समुद्र में फेंक दिया गया ताकि वल्र्ड ट्रेड सेन्टर की बर्बादी की वास्तविकता का पता न चल सके। अमरीकी मीडिया के प्रतिनिधियों ने ही बाद में इस वास्तविकता को उजागर किया कि 9/11 संकट स्वयं अमरीका का पैदा कर्दा था। यह बात तो पहले ही पता चल गई थी कि जिस दिन यह घटना घटित हुई उस दिन वर्ड ट्रेड सेन्टर के सारे यहूदी छुट्टी पर थे। आधुनिक काल में विश्व में आतंकवाद की घटनाओं का अगर आकलन किया जाये तो पता चलेगा कि उसके सबसे बड़े भुक्तभोगी मुसलमान ही हैं, सबसे ज़्यादा हत्याएं मुसलमानों की ही हुई हैं। वास्तविकता यह है कि एक सच्चा मुसलमान आतंकवादी नहीं हो सकता। इस संदर्भ में अनेक तर्क दिये जा सकते हैं लेकिन यहां मैं दो बातें बताना चाहूँगा। प्रथम, इस्लाम के शाब्दिक अर्थ शान्ति व सुरक्षा के है। द्वितीय, इस्लाम अकेला ऐसा धर्म है जिसमें निर्दोषों की हत्या से स्पष्ट एवं कड़े शब्दों में मना किया गया है। कुरआन की सूरह ‘मायदा’ में साफ साफ कहा गया है कि यदि कोई किसी निर्दोष की हत्या करता है तो वह वास्तव में पूरी मानव जाति की हत्या करता है अगर कोई किसी निर्दोष को बचाता है तो वह पूरी मानव जाति को बचाता है।
    अब हमास़ और इसराईल के वर्तमान झगड़े पर अगर दृष्टि डाली जाये तो पता चलेगा कि जो कुछ हो रहा है वास्तविक तौर पर उसके लिए इसराईल ही ज़िम्मेदार है। काफी दिनों से गज़्ज़ा पट्टी व्यावहारिक रूप से इसराईली घेराबंदी में है जहाँ पर हमास की चुनी हुई सरकार है। इसराईल ग़ज़्ज़ा के फिलिस्तीनियों की मंशा के विरुद्ध वहां पर इसराईली आबादी बसा रहा है। आये दिन इसराईली पुलिस ग़ज़्ज़ा के निर्दोष फिलिस्तीनियों की हत्या करती रहती है। अगर बदले में ग़ज़्ज़ा की ओर से फायरिंग होती है और एक इसराईली भी मारा जाता है तो इसराईली पुलिस कम से कम दस फिलिस्तीनियों को मार देती है। इसराईलियों के अत्याचार के विरुद्ध न तो पाश्चात्य देश बोलते हैं, न अमरीका बोलता है और यहां तक कि मुस्लिम अरब देश भी मुश्किल से ही विरोध करते हैं। पाश्चात्य देश और इसराईल हमास को आतंकवादी बताते हैं जबकि किसी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ने उसको आतंकवादी नहीं कहा है। कितना बड़ा जुल्म है कि वर्षों से फिलिस्तीनी जेल की ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं और उनकी फिक्र करने वाला कोई नहीं है। चूंकि संयुक्त राष्ट्र पर भी अमरीका की बपौती है इसलिए वहां से भी फिलिस्तीनियों के पक्ष में कोई प्रस्ताव नहीं पास हो पाता। इसराईल ने ग़ज़्ज़ा में बिजली, पानी, खाद्य सामग्री और ईंधन इत्यादि सभी की आपूर्ति बन्द कर रखी है। अस्पताल में घायलों का इलाज कठिन है। आवासीय बस्तियों, अस्पताल और स्कूलों पर इसराईल बमों की बारिश लगातार कर रहा है। वास्तव में ये तथ्य ऐसे हैं जिनके आधार पर इसराईल को आतंकवादी देश कहा जाना चाहिए।
    न्यायोचित यह है कि हमास ने जो कुछ किया है या करने वाला है वह उसकी बाध्यता है। ज़्यादा नहीं अगर पिछले 15 वर्षों की घटनाएं जो फिलिसतीन में घटीं उनका आकलन किया जाये तो पता चल जायेगा कि वास्तव में आतंकवादी हमास है या इसराईल? वास्तव में फिलिस्तीनी सशस्त्र और निहत्थे लोगों की कार्यवाइयाँ इसराईली कार्यवाइयों के जवाब में होती हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार इससे पहले मई 2021 में इसराईल ने दमिश्क़ के निकट यूरोशलम गेट पर, जो कि मस्जिदे अक़सा तक जाने का मार्ग है, उस पर लोहे की बैरीकेटिंग कर दी थी। परिणामस्वरूप दोनों पक्षों में जो तकरार हुई उनमें 349 फिलिस्तीनी और 11 इसराईली मारे गये थे। इस प्रकार हमास की मौजूदा कार्यवाई का एक कारण बैतुलमुकद्दस में इसराईलियों की दखलअन्दाज़ी और नेतनयाहू शासन की ओर से उसका उत्साहवर्धन भी है। अब हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिना विदेश मन्त्रायल के सीनियर अधिकारियों से राय लिए हुए इसराईल के समर्थन की घोषणा कर दी। वास्तव में भाजपा नेताओं की कोशिश हमेशा ध्रुवीकरण की रही है चाहे उसके लिए परम्परागत विदेश नीति का बलिदान ही क्यों न देना पड़े। वह भूल गये कि हम लोगों को खाड़ी देशों से भी अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना ज़रूरी है जहां से हमारे देश की ज़रूरत का (पेट्रोल व पेट्रोलियम प्रोडक्ट) का दो तिहाई भाग तेल आता है। प्रधानमंत्री के बयान के ठीक चार दिन बाद विदेश मन्त्रालय के प्रवक्ता अरिन्दम बाग्ची ने एक बाकायदा ब्रीफिंग में स्पष्ट किया कि हम हमास की आतंकवादी कार्यवाई की कड़ी निन्दा करते हैं लेकिन फिलिस्तीन पर हिन्दुस्तान का पूर्व दृष्टिकोण बरक़रार है और इसराईल पर अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय कानून की पैरवी करने की ज़िम्मेदारी है। कितना अच्छा होता यदि हमारे प्रधानमन्त्री ने स्वयं ही इन बातों को दोहराया होता। भारत ने सदा शान्तिपूर्ण और स्वीकारणीय सीमाओं के भीतर रहते हुए एक स्वायत्त और स्वतन्त्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लिए इसराईल के साथ सीधे वार्ता की बहाली की पैरवी की है।
    ऐसे समाचार भी मिल रहे हैं कि इसराईल ने ग़ज़्ज़ा में रासायनिक शस्त्र का भी प्रयोग किया है। ‘ह्युमन राइट्स वाच’ ने लगभग एक सप्ताह पूर्व इसराईल पर ग़ज़्ज़ा और लेबनान में अपने सैन्य अभियान के दौरान सफेद फासफोरस के प्रयोग का आरोप लगाया है। यह फासफोरस लोगों को बुरी तरह से जला सकता है और इसका प्रभाव लम्बी मुद्दत तक रहता है। इन तथ्यों की रोशनी में निर्णय लिया जाना चाहिए कि असल आतंकवादी कौन है हमास या इसराइल? संयुक्त राष्ट्र और विश्व की बड़ी शक्तियों को विशेष कर अमरीका, रूस और चीन को बहुत कड़ाई से इसराईल और हमास दोनों को ताकीद करना चाहिए कि वह युद्ध के क़ानून को मानें। संयुक्त राष्ट्र को, जो पिछले दिनों फिलिस्तीन इसराईल झगडे से सम्बन्धित कोई प्रस्ताव नहीं पास कर सका, सुरक्षा परिषद की एक आपातकालीन बैठक बुलाई जानी चाहिए और एक प्रस्ताव पास करके ग़ज़्ज़ा में तुरन्त ‘पीस कीपिंग फोर्स’ भेजना चाहिए ताकि इसराईल हमास के बीच रक्तरंजित युद्ध रोका जा सके। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें तृतीय विश्वयुद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए जिसमें अशरफुल मखलूक़ात कही जाने वाली मानवीय विरादरी के खून की नदियों का दृश्य वह लोग देखेंगे जो बच जायेंगे। इसके अतिरिक्त इसराईल और फिलिस्तीनियों के प्रतिनिधियों को वार्ता की मेज़ पर लाना चाहिए। हज़ारों हत्याएं हो चुकी हैं, उसके कई गुना घायलों के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है और लाखों लोग बे घर हो चुके हैं।
    मानवाधिकार की आधारशिला पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल0 का विदायी अभिभाषण
    पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर की ओर से, सत्य धर्म को उसके पूर्ण और अन्तिम रूप में स्थापित करने के जिस मिशन पर नियुक्त किये गये थे वह 21 मार्च (23 चांद्र वर्ष) में पूरा हो गया और ईशवाणी अवतरित हुई-
    ‘‘आज मैंने तुम्हारे दीन (इस्लामी जीवन व्यवस्था की पूर्ण रूप रेखा) को तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया है और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और मैंने तुम्हारे लिए इस्लाम को तुम्हारे दीन की हैसियत से क़बूल कर लिया है।’’
    (क़ुरआन-5ः3)
    आप सल्ल0 ने हज के दौरान ‘अरफ़ात’ के मैदान में 9 मार्च 632 ई0 को एक भाषण दिया जो मानव इतिहास के सफ़र में एक ‘मील का पत्थर’ बन गया। इसे निस्संदेह ‘मानवाधिकार की आधारशिला’ का नाम दिया जा सकता है। उस समय इस्लाम के लगभग सवा लाख अनुगामी लोग वहां उपस्थित थे। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ऐसे लोगों को नियुक्त कर दिया गया था जो आपके वचन-वाक्यों को सुन कर ऊँची आवाज़ में शब्दतः दोहरा देते। इस प्रकार सारे श्रोताओं ने आपका पूरा भाषण सुना।
    भाषण
    आपने पहले ईश्वर की प्रशंसा, स्तुति और गुणगान किया, मन-मस्तिष्क की पूरी उकसाहटों और बुरे कामों से अल्लाह की शरण चाहिए। इस्लाम के मूलाधार ‘विशुद्ध एकेश्वरवाद’ की गवाही दी और फ़रमाया-
    ऐ लोगो! अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है, वह एक ही है, कोई उसका साझी नहीं है। अल्लाह ने अपना वचन पूरा किया, उसने अपने बन्दे की सहायता की और अकेला ही अधर्म की सारी शक्ति को पराजित किया।
    लोगो मेरी बात सुनो, मैं नहीं समझता कि अब कभी हम इस तरह एकत्र हो सकेंगे और संभवतः इस वर्ष के बाद मैं हज न कर सकूँगा।
    लोगो, अल्लाह फ़रमाता है कि, इन्सानों, हमने तुम सबको एक ही पुरुष व स्त्री से पैदा किया है और तुम्हें गिरोहों और क़बीलों में बांट दिया गया कि तुम अलग-अलग पहचाने जा सको। अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अच्छा और आदर वाला वह है जो अल्लाह से ज़्यादा डरने वाला है। किसी अरबी को किसी गैर-अरबी पर, किसी गै़र-अरबी को किसी अरबी पर कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं है। न काला गोरे से उत्तम है न गोरा काले से। हां आदर और प्रतिष्ठा का कोई मापदण्ड है तो वह ईशपरायणता है।
    सारे मनुष्य आदम की संतान हैं अैर आदम मिट्टी से बनाए गये। अब प्रतिष्ठा एवं उत्तमता के सारे दावे, खून एवं माल की सारी मांगें और शत्रुता के सारे बदले मेरे पांव तले रौंदे जा चुके हैं। बस, काबा का प्रबंध और हाजियों को पानी पिलाने की सेवा का क्रम जारी रहेगा। कुरैश के लोगो! ऐसा न हो कि अल्लाह के समक्ष तुम इस तरह आओ कि तुम्हारी गर्दनों पर तो दुनिया का बोझ हो और दूसरे लोग परलोक का सामान ले कर आएं, और अगर ऐसा हुआ तो मैं अल्लाह के सामने तुम्हारे कुछ काम न आ सकूंगा।
    कुरैश के लोगो, अल्लाह ने तुम्हारे झूठे घमण्ड को ख़त्म कर डाला और बाप-दादा के कारनामों पर तुम्हारे गर्व की कोई गुुंजाइश नहीं। लोगों, तुम्हारे खून, माल व इज़्ज़त एक दूसरे पर हराम कर दी गयीं हमेशा के लिए। इन चीज़ों का महत्व ऐसा ही है जैसा तुम्हारे इस दिन का और इस मुबारक महीने का, विशेषतः इस शहर में। तुम सब अल्लाह के सामने जाओगे और वह तुमसे तुम्हारे कर्मों के बारे में पूछेगा।
    देखो, कहीं मेरे बाद भटक न जाना कि आपस में एक दूसरे का खून बहाने लगो। अगर किसी के पास धरोहर रखी जाए तो वह इस बात का पाबन्द है कि अमानत रखवाने वाले को अमानत पहुंचा दे। लोगो, हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है और सारे मुसलमान आपस में भाई भाई हैं। अपने गुलामों का ख़याल रखो, हां गुलामों का ख़याल रखो। इन्हें वही खिलाओ जो खुद खाते हो, वैसा ही पहनाओ जैसा तुम पहनते हो।
    जाहिलियत का सब कुछ मैंने अपने पैरों से कुचल दिया। जाहिलियत के समय के ख़ून के सारे बदले ख़त्म कर दिये गये। पहला बदला जिसे मैं क्षमा करता हूं मेरे अपने परिवार का है। रबीअ-बिन-हारिस के दूध पीते बेटे का ख़ून जिसे बनू- हजील ने मार डाला था, मैं क्षमा करता हूं। जाहिलियत के समय के ब्याज अब कोई महत्व नहीं रखते, पहला सूद, जिसे मैं निरस्त कराता हूं, अब्बास-बिन -अब्दुल मुत्तलिब के परिवार का सूद है।
    लोगो, अल्लाह ने हर हक़दार को उसका हक़ दे दिया, अब कोई किसी उत्तराधिकारी के हक़ में वसीयत न करे।
    बच्चा उसी के तरफ़ मंसूब किया जाएगा जिसके बिस्तर पर पैदा हुआ। जिस पर हरामकारी साबित हो उसकी सज़ा पत्थर है, सारे कर्मों का हिसाब-किताब अल्लाह के यहां होगा।
    जो कोई अपना वंश परिवर्तन करे या कोई ग़ुलाम अपने मालिक के बदले किसी और को मालिक ज़ाहिर करे उस पर ख़ुदा की फिटकार।
    क़र्ज़ अदा कर दिया जाए, मांगी हुई वस्तु वापस करनी चाहिए, उपहार का बदला देना चाहिए और जो कोई किसी की ज़मानत ले वह दण्ड अदा करे।
    किसी के लिए यह जायज़ नहीं कि वह अपने भाई से कुछ ले, सिवा उसके जिस पर उसका भाई राज़ी हो और ख़ुशी खुशी दे। स्वयं पर एवं दूसरों पर अत्याचार न करो।
    औरत के लिए यह जायज़ नहीं है कि वह अपने पति का माल उसकी अनुमति के बिना किसी को दे।
    देखो, तुम्हारे ऊपर तुम्हारी पत्नियों के कुछ अधिकार हैं। इसी तरह, उन पर तुम्हारे कुछ अधिकार हैं। औरतों पर तुम्हारा यह अधिकार है कि वे अपने पास किसी ऐसे व्यक्ति को न बुलाएं, जिसे तुम पसन्द नहीं करते और कोई ख़यानत न करे, और अगर वह ऐसा करे तो अल्लाह की ओर से तुम्हें इसकी अनुमति है कि उन्हें हल्का शारीरिक दण्ड दो, और वह बाज़ आ जाएं तो उन्हें अच्छी तरह ख़िलाओ, पहनाओ।
    औरतों से सद्व्यवहार करो क्योंकि वह तुम्हारी पाबन्द हैं और स्वयं वह अपने लिए कुछ नहीं कर सकतीं। अतः इनके बारे में अल्लाह से डरो कि तुमने इन्हें अल्लाह के नाम पर हासिल किया है और उसी के नाम पर वह तुम्हारे लिए हलाल हुईं। लोगो, मेरी बात समझ लो, मैंने तुम्हें अल्लाह का संदेश पहुंचा दिया।
    मैं तुम्हारे बीच एक ऐसी चीज़ छोड़ जाता हूं कि तुम कभी नहीं भटकोगे, यदि उस पर क़ायम रहे, और वह अल्लाह की किताब क़ुरआन है और हां देखो, धर्म के मामलात में सीमा के आगे न बढ़ना कि तुमसे पहले के लोग इन्हीं कारणों से नष्ट कर दिये गये।
    शैतान को अब इस बात की कोई उम्मीद नहीं रह गयी है कि अब उसकी इस शहर में इबादत की जाएगी किन्तु यह संभव है कि ऐसे मामलात में जिन्हें तुम कम महत्व देते हो, उसकी बात मान ली जाए और वह इस पर राज़ी है, इसलिए तुम उससे अपने धर्म व विश्वास की रक्षा करना।
    लोगो, अपने रब की इबादत करो, पांच वक्त की नमाज़ आदा करो, पूरे महीने के रोज़े रखो, अपने धन की ज़कात खुशदिली के साथ देते रहो। अल्लाह के घर का हज करो और अपने सरदार का आज्ञापालन करो तो अपने रब की जन्नत में दाख़िल हो जाओगे।
    अब अपराधी स्वयं अपने अपराध का ज़िम्मेदार होगा और अब न बाप के बदले बेटा पकड़ा जाएगा न बेटे का बदला बाप से लिया जाएगा।
    सुनो, जो लोग यहां मौजूद हैं, उन्हें चाहिए कि ये आदेश और ये बातें उन लोगों को बताएं जो यहां नहीं हैं, हो सकता है कि कोई अनुपस्थित व्यक्ति तुमसे ज़्यादा इन बातों को समझने और सुरक्षित रखने वाला हो। और लोगो, तुम से मेरे बारे में अल्लाह के यहां पूछा जाएगा, बताओ तुम क्या जवाब दोगे? लोगों ने जवाब दिया कि हम इस बात की गवाही देंगे कि आप सल्ल0 ने अमानत पहुंचा दिया और रिसालत का हक़ अदा कर दिया, और हमें सत्य और भलाई का रास्ता दिखा दिया।
    यह सुन कर मुहम्मद सल्ल0 ने अपनी शहादत की उंगुली आसमान की ओर उठाई और लोगों की ओर इशारा करते हुए तीन बार फ़रमाया, ऐ अल्लाह, गवाह रहना! ऐ अल्लाह, गवाह रहना! ऐ अल्लाह, गवाह रहना।
    इस्लाम में मानव-अधिकारों की अस्ल हैसियतः-
    जब हम इस्लाम में मानवाधिकार की बात करते हैं तो इसके मायने अस्ल में यह होते हैं कि ये अधिकार खुदा के दिये हुए हैं। बादशाहों और क़ानून बनाने वाले संस्थानों के दिये हुए अधिकार जिस तरह दिये जाते हैं, उसी तरह जब वे चाहें वापस भी लिए जा सकते हैं। डिक्टेटरों के तस्लीम किये हुए अधिकारों का भी हाल यह है कि जब वे चाहें प्रदान करें, जब चाहें वापस ले लें, और जब चाहें खुल्लम खुल्ला उनके ख़िलाफ अमल करें। लेकिन इस्लाम में इन्सान के जो अधिकार हैं, वे खुदा के दिये हुए हैं। दुनिया की कोई विधानसभा और दुनिया की कोई हुकूमत उनके अन्दर तब्दीली करने का अधिकार ही नहीं रखती है। उनको वापस लेने या ख़त्म कर देने का कोई हक़ किसी को हालिस नहीं है। ये दिखावे के बुनियादी हुक़ूक़ भी नहीं हैं, जो काग़ज़ पर दिये जाएं और ज़मीन पर छीन लिए जाएं। इनकी हैसियत दार्शनिक विचारों की भी नहीं है, जिनके पीछे कोई लागू करने वाली ताक़त नहीं होती। संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर, ऐलानात और क़रारदादों को भी उनके मुक़ाबले में नहीं लाया जा सकता। क्योंकि उन पर अमल करना किसी के लिए भी ज़रूरी नहीं है। इस्लाम के दिये हुए अधिकार इस्लाम धर्म का एक हिस्सा हैं। हर मुसलमान इन्हें हक़ तस्लीम करेगा और हर उस हुक़ूमत को इन्हें तस्लीम करना और लागू करना पड़ेगा जो इस्लाम की नामलेवा हो और जिसके चलाने वालों का यह दावा हो कि ‘‘हम मुसलमान’’ हैं। अगर वह ऐसा नहीं करते और उन अधिकारों को जो ख़ुदा ने दिये हैं, छीनते हैं, या उनमें तब्दीली करते हैं या अमलन उन्हें रौंदते हैं तो उनके बारे में कुरआन का फ़ैसला यह है कि ‘‘जो लोग अल्लाह के हुक्म के ख़िलाफ़ फै़सला करें वही काफ़िर हैं’’ (5ः44)। इसके बाद दूसरी जगह फ़रमाया गया, ‘‘वही ज़ालिम है’’ (5ः45)। और तीसरी जगह फ़रमाया, ‘‘वही फ़ासिक है’’ (5ः47)। दूसरे शब्दों में इन आयतों का मतलब यह है कि अगर वे खुद अपने विचारों और अपने फ़ैसलों को सही सच्चा समझते हों और खुदा के दिये हुए हुक्मों को झूठा क़रार देते हों तो वे काफ़िर हैं। और अगर वह सच तो खुदाई हुक्मों ही को समझते हों, मगर अपने खुदा की दी हुई चीज़ को जान बूझ कर रद्द करते और अपने फ़ैसले उसके ख़िलाफ़ लागू करते हों तो वे फ़ासिक और ज़ालिम हैं। फ़ासिक उसको कहते हैं जो फ़रमाबरदारी से निकल जाए। और ज़ालिम वह है जो सत्य व न्याय के ख़िलाफ़ काम करे। अतः इनका मामला दो सूरतों से ख़ाली नहीं है, या वे कुफ्ऱ में फंसे हैं, या फिर वे फिस्क और जुल्म में फंसे हैं। बहरहाल जो हुक़ूक़ अल्लाह ने इन्सान को दिये हैं, वे हमेशा रहने वाले हैं, अटल हैं। उनके अन्दर किसी तब्दीली या कमीबेशी की गुंजाइश नहीं है।
    ये दो बातें अच्छी तरह दिमाग़ में रख कर अब देखिए कि इस्लाम मानव अधिकारों की क्या परिकल्पना पेश करता है।
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    पारस्परिक संबंध के लिए शांतिपूर्ण समझौता नबी करीम सल्ल0 की शिक्षा की रोशनी में
    इस्लाम अम्न का दाई और प्रेरक है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़रिए दुनिया को जो सबसे बड़ा तोहफ़ा मिला वह मानवता के मूल्यों का वास्तविक ब्यान है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मिसाली किरदार ने आपसी ज़िन्दगी को नफ़़रत हसद जलन, दुश्मनी और लड़ाई झगड़ों के दलदल से निकाल कर उलफ़त, मुहब्बत, रवादारी, मुरव्वत और नैतिकता के उच्च स्थान पर पहुँचा दिया, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शान्ति और प्रेम का पाठ पढ़ाया, वह क़ौम जिसकी ज़िन्दगी द्वोष और शत्रुता से भरी हुई थी, जिसकी विशेषता हर समय अभिमान और अहंकार, को बढ़ावा देना था, दूसरों का अपमान करना उनका स्वभाव था, ऐसी क़ौम के दृष्टिकोंण और विचारधारा को हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी कुशलता और कूटिनीति से बिलकुल बदल दिया जिसके परिणाम स्वरूप उनकी अख़लाक़ी ज़िन्दगी में बदले की भावना के बजाए क्षमा और दया, गर्व और घमण्ड की जगह नम्रता, क़त्ल और लूट मार की जगह अमनो आमान और इंसानों की ख़िदमत को अहमियत दी गई, वह अपने गुरूर व घमण्ड के ‘सनम कदह’ को तोड़ने में कामयाब हो गये। उन्होंने यह महसूस किया कि वह आहिस्ता आहिस्ता अंधेरे से उजाले की ओर आ रहे हैं।
    वह क़ौम आपसी रंजिशों को दूर करके मुहब्बत आशना हो गई, हमदर्दी, सहानुभूति उनका स्वभाव बन गया, इस बड़े बदलाव के बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शांतिपूर्ण माहौल को बनाने के लिए बड़े जंगजू क़बीलों से समझौते किये, ताकि आपसी भाईचारगी और शांति का उद्देश्य पूरा हो सके, अमनो अमान संबंधित आप सल्ल0 की ज्ञानात्मक राजनीति का अन्दाज़ा उस मामले से लगाइये कि जब 8 हिज्री में आप सल्ल0 ने मक्का में विजेता की हैसियत से दाख़िल हुए तो आपके सामने वह लोग आये जिन्होंने आप और आपके जांनिसार साथियों को तेरह साल तक सताया था लेकिन जब वह आपके सामने लाए गये तो आप सल्ल0 ने फ़रमाया कि मैं तुमसे वही सुलूक़ करने वाला हूँ जो मेरे भाई यूसुफ़ ने अपने भाईयों से फ़रमाया था।
    आज के दिन मेरी ओर से तुम पर कोई ताड़ना नहीं, है, अल्लाह तुम्हारा क़ुसूर माफ़ फ़रमाए वह तमाम रहम करने वालों से बढ़ कर रहम करने वाला है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया जाओ तुम सब लोग आज़ाद हो।
    समझौते की शरतेंः-
    नज़रान, यमन की सब्ज़ पहाड़ियों से घिरा हुआ हराभरा इलाक़ा जहाँ ईसाइसों की प्रभुत्वशाली जनसंख्या थी, मदीना मुनव्वरा में उनका डिपोटेशन आया आप सल्ल0 ने उनका स्वागत किया और इस्लाम के समझने का मौक़ा दिया, न उन पर कोई दबाव डाला और न ही कोई धमकी दी, बल्कि उनकी इच्छानुसार वह मुआहिदा किया जिसमें निम्नलिखित अनुच्छेद थेः-
  4. हरगिज़ हरगिज़ उन ईसाइयों को अपमानित नहीं किया जाएगा।
  5. उन्हें फ़ौजी ख़िदमात अन्जाम देने के लिए मजबूर नहीं किया जायेगा।
  6. उन पर केवल इन्साफ़ और न्याय की हुक्मरानी होगी।
  7. उनके माल व दौलत, उनके मज़हब, उनकी इबादत गाहों की हिफ़ाजत की जाएगी।
    क़ुरआन मजीद की तालीमात और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उत्तम आदर्श ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि जंग और रक्तपात से बचने के लिए मुसलमान दूसरी क़ौम से अम्न का मुआहदा कर सकते हैं, हक़ीक़त यह है कि पूरी इन्सानियत को अम्न व सुकून के साथ एक साथ रहने सहने का पहला क़ानून और प्रभावशाली सबक रसूले करीम सल्ल0 ने ही दिया है यहाँ इस बात का ज़िक्र बेजा न होगा कि मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम के पारस्परिक संबंध बुन्यादी तौर पर जंग पर नहीं अम्न पर आधारित हैं, जंग केवल एक अस्थाई सूरत है, जंग का उद्देश्य फ़ितना व फ़साद और अत्याचार को रोकना है।
    नबवी समझौतों की सफलता का रहस्यः-
    चुनांचि उन नबवी समझौतों की सफलता का रहस्य यह था, कि उनमें नैतिकता की रूह काम कर रही थी, और जीवन के विषय में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन्सान के दृष्टिकोण को बदल दिया था लेकिन उन समझौतों के विपरीत जब कभी इतिहास में विजेता क़ौमों ने ख़ुदा के ख़ौफ़ और नैतिक वैलूज़ से बेपरवाह हो कर पराजित क़ौमों को अत्याचारी समझौतों का पाबन्द बनाया तो वह एक दूसरी जंग का कारण बने।
    हुदैबिया संधि में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सबसे बड़े दुशमन से वह ऐतिहासिक समझौता किया जिसे क़ुरआन ने ‘‘फ़तहे मुबीन’’ क़रार दिया है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पैग़म्बराना किरदार को अक़ीदत पेश करते हुए सुइडन के प्रसिद्ध व्तपमदजंसपेज ‘‘टूरअन्दरे’’ लिखते हैं-
    ‘‘आत्म संयम’’ जिसका प्रदर्शन हज़रत मुहम्मद सल्ल0 ने हुदैबिया में एक उच्च उद्देश्य को हासिल करने के लिए आवश्यक बातों पर निजी अपमान को बरदाश्त किया, यह हौसला और हिम्मत साधारण इन्सानों में नहीं हो सकती, यह केवल मुहम्मद सल्ल0 की विशेषता थी।
    मुसलमानों में मुहब्बत और भाईचारे के रिश्तों को मज़बूत करने और अशान्ति और रक्तपात को रोकने के लिए रसूलुल्लाह सल्ल0 ने जो समझौते किये वह इतिहास के ऐसे अनोखे समझौते हैं जिनमें सियासत और अख़लाक़ दोनों साथ चलते हैं इनसे अम्न व शांति के लिए काम करने वालों को हमेशा नया अज्म व हौसला मिलता रहेगा।
    
    आपके प्रश्नों के उत्तर

प्रश्नः सेंट लगे कपड़ों में नमाज़ दुरुस्त होगी या नहीं? कुछ लोगों का ख्याल है कि उसमें अलकोहल का प्रयोग होता है और वह नापाक है इसलिए नमाज़ नहीं होती है, सही क्या है?
उत्तरः सेंट के बारे में केमिकल विशेषज्ञों की राय यह है कि उसमें जो अलकोहल प्रयोग होता है वह नशीला नहीं होता है इसलिए यह नापाक व नज़िस नहीं है इसलिए सेंट लगाने से कपड़ा नापाक न होगा, और नमाज़ दुरुस्त होगी।
प्रश्नः नमाज़े जनाजा के वक्त पाँव से चप्पल जूते उतारना क्या ज़रूरी है या पहने हुए भी नमाज़ पढ़ी जा सकती है?
उत्तरः कभी कभी जूते चप्पल के सोल में गंदगी लगी होती है, इसलिए एहतियात इसी में है कि जूते चप्पल उतार कर नमाज़ पढ़ी जाय, लेकिन अगर कोई गंदगी न लगी हो और पाक हों तो पहन कर भी नमाज़ पढ़ सकते हैं, सही बुखारी की रिवायत में आप सल्ल0 से जूते चप्पल पहन कर नमाज़ पढ़ना साबित है।
(बुखारीः 1/56)
प्रश्नः एक शख्स ने अपने घर के जे़वरात रेहन (गिरवी) रख दिये हैं, दो साल गुजर चुके हैं, क्या इन जे़वरात पर ज़कात वाजिब होगी या नहीं ?
उत्तरः रेहन (गिरवी) रखी हुई चीज़ों पर ज़कात नहीं है क्योंकि ज़कात वाजिब होने के लिये जरूरी है कि माले ज़कात मुकम्मल तौर पर साहिबे निसाब की मिल्कियत में हो, रेहन पर रखी हुई चीजें मुकम्मल तौर पर मिल्कियत में नही होती हैं इस लिये उन पर ज़कात नहीं है।
(फत्हुल कदीर 221/2)
प्रश्नः जो रक़म बैंक में फिक्स डिपाॅजिट के तौर पर जमा हो क्या उस पर ज़कात वाजिब होगी?
उत्तरः पहली बात तो यह है कि फिक्स डिपाॅजिट शरअन जाइज़ नहीं है फिर भी अगर किसी ने रकम बैंक में फिक्स डिपाॅजिट कर दिया है तो उस पर ज़कात वाजिब होगी क्योंकि उस की हैसियत अमानत की होती है और अमानत वाली रकम पर ज़कात वाजिब होती है। (फत्हुल कदीर 221/2)
प्रश्नः मालिक मकान व दुकान के पास बतौरे जमानत जो रक़म पेशगी जमा रहती है क्या उस पर ज़कात वाजिब है या नही? अगर ज़कात है तो मालिक मकान पर या किराये दार पर ?
उत्तरः मालिक मकान या मालिक दुकान के पास जो पेशगी रकम किरायेदार की रहती है उस की हैसियत रेहन की है और रेहन पर ज़कात वाजिब नहीं इसलिये उसकी ज़कात न मालिक मकान पर है और न किराये दार पर।
(फत्हुल कदीर 164/1)
प्रश्नः जो लोग अपने घरों में कम्प्यूटर और इन्टरनेट या टी0वी0 वगैरह रखते हैं क्या उन पर ज़कात वाजिब है ?
उत्तरः कम्प्यूटर और दूसरे आलात अगर अपनी जरूरियात और इस्तेमाल के लिये हैं, तिजारत के लिये नहीं तो उन पर ज़कात वाजिब नहीं होती है।
प्रश्नः अक़ीके की जिम्मेदारी किस पर है? कुछ लोग नाना की जिम्मेदारी समझते हैं, इस बारे में शरई हुक्म क्या है ?
उत्तरः बच्चे की तालीम व तरबियत और कफालत की जिम्मेदारी बाप पर होती है। कु़रआने मजीद में बच्चे की निस्बत बाप की तरफ की गई है, अल्लाह तआला का फरमान है, इस फरमान में बाप ही पर तमाम इखराजात की जिम्मेदारी डाली गई है। लिहाजा अक़ीक़ा करना भी बाप के ज़िम्मे है न कि नाना के जिम्मे, हाँ अगर नाना अपनी तरफ से खुशदिली के साथ अकीका कर दे तो अकीका हो जाएगा। आप सल्ल0 ने अपने नवासों हज़रत हसन रज़ि0 और हुसैन रज़ि0 का अक़ीक़ा खुद ही किया था। लिहाजा नाना भी अक़ीक़ा कर सकता है लेकिन नाना के जिम्मे नहीं है।
(तिर्मिजी 183/1)
प्रश्नः अगर बड़े होने के बाद किसी बच्चे का अक़ीक़ा किया जाए तो क्या बाल मुंडवाना जरूरी है?
उत्तरः पैदाइश के वक़्त जो बाल हों अगर सातवें दिन अक़ीका हो तो उस बाल का मुंडवाना और उसके बराबर चाँदी सदक़ा करना मुस्तहब है, बड़े होने के बाद अगर अक़ीका हो तो बाल मुंडवाने की ज़रूरत नहीं है।
(फत्हुल बारी-15/9)
प्रश्नः खेती में ग़ल्ला पैदा होता है उस पर उश्र का क्या हुक्म है?
उत्तरः खेती में जो गल्ला पैदा होता है अगर वह बारिश के पानी से हासिल हुआ है, सिंचाई नहीं करनी पड़ी है तो खेत से ग़ल्ला हासिल होते ही उश्र (दस्वां भाग) निकाल कर ज़कात के मुस्तह़कीन पर खर्च किया जाएगा और अगर सिंचाई के बाद गल्ला पैदा हुआ है तो निस्फ उश्र (बीसवां भाग) निकाल कर ज़कात के मुस्तहकीन को देना होगा।
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हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मोजिज़े
मोजिज़ा क्या है और मोजिज़े व चमत्कार में क्या अंतर है। आगे बढ़ने से पहले इस अंतर को समझ लेना जरूरी है। वे कार्य जो आमतौर से असम्भव समझे जाते हैं, किसी साधारण व्यक्ति के वश में नहीं होते, परंतु ऐसे असम्भव कार्यों को जब कोई ईशदूत अपनी साधना शक्ति और ईश्वर की कृपा से कर दिखाता है तो उसे मोजिज़ा कहते हैं।जब कोई महापुरुष अपनी साधना शक्ति और ईश्वर की कृपा से कर दिखाता है तो उसे करामत कहते हैं। कभी कभी कुछ जादूगर अपने जादू के जोर से असम्भव को सम्भव कर दिखाते हैं मगर उनके द्वारा किए गए कार्य का हकीकत से कोई सम्बंध नहीं होता, वे केवल नजरबंदी होती है। जादूगर अपने निकट उपस्थित लोगों की आंखों पर पर्दा डाल देता है तब उन्हें वही नजर आता है जो वह दिखाना चाहता है, परन्तु दूर के लोगों पर इसका कोई असर नहीं होता। जादूगर स्वयं भी जानता है कि हकीकत से इस का कोई ताअलुक नहीं है। मगर नबियों, रसूलों के द्वारा खुदा के हुक्म से दिखाए गए मोजिज़े हकीकत होते हैं, उनका प्रभाव दूर और पास सब जगह महसूस किया जाता है और सब को उसका लाभ पहुंचता है।
रसूलल्लाह सल्ल0 के मोजिज़े तो अनेक हैं, यहां पर उन सब का उल्लेख करना संभव नहीं है। इस समय केवल चांद का दो टुकड़े हो जाने वाला मोजिज़ा ही थोड़ा विस्तार से बयान करना उचित मालूम पड़ता है।
एक रात हज़रत मुहम्मद सल्ल0 मक्का नगर के बाहर मिना के मैदान में लोगों को खुदा का पैगाम सुना कर सत्य धर्म की ओर बुलाने का प्रयास कर रहे थे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद, हज़रत जुबैर बिन मुतइम नौफली, हज़रत हुजैफा आप के सहाबा साथ थे। चैदहवीं रात का चांद मिना की पहाड़ियों के ऊपर चमक रहा था। उसी समय रसूलल्लाह सल्ल0 का कट्टर विरोधी अबू जहल अपने कुछ साथियों के साथ उधर आ निकला। हज़रत मुहम्मद सल्ल0 से व्यंग्यात्मक स्वर में बोला, अच्छा तो अब तुम छुप छुप कर लोगों को अपने धर्म की बातें बताते हो, कुछ हमें भी तो बताया करो। हज़रत मुहम्मद सल्ल0 ने उस के व्यंग को नजरंदाज़ करते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी बातें सुनते ही कब हो’’। अबू जहल का एक साथी बोला, तुम पहले अपने नबी होने का कोई प्रमाण दो, तब हम तुम्हारी बात सुनेंगे। अबू जहल तुरंत बोला, मुहम्मद तुम कहते हो कि जब हम मर जाएंगे तो तुम्हारा खुदा हमें दोबारा उठाएगा। यदि तुम सच्चे हो तो अपने अल्लाह से कहो आकाश में इस चमकते हुए चांद को दो टुकड़े कर दे। यदि ऐसा हो गया तो हम तुम्हें सच्चा नबी मान लेंगे और तुम्हारे दीन पर ईमान ले आयेंगे।
यह सुन कर हज़रत मुहम्मद सल्ल0 ने अल्लाह तआला से दुआ की और चांद की ओर गौर से देखा। तुरंत ही चांद दो भागों में बंट गया। एक भाग पहाड़ी के एक ओर तथा दूसरा दूसरी ओर तैरता हुआ चला गया, फिर दोनों भाग उसी तरह तैरते हुए आ कर मिल गए। कुरआन पाक में सूरः क़मर की पहली तीन आयतों में इस घटना का उल्लेख है। यह देख कर अबू जहल बोला मुहम्मद बेशक तुम बड़े जादूगर हो, तुम ने हम पर ऐसा जादू किया कि हमारी आंखें धोखा खा गई। अबू जहल के साथियों ने कहा, मुहम्मद हम पर तो जादू कर सकते हैं मगर मक्का नगर के बाहर गए हुए लोगों पर नहीं कर सकते, उन्हें लौट कर आने दो, हम उनसे पूछेंगे। अतः जब बाहर गए हुए लोग मक्का वापस आए तो उन्होंने आश्चर्य चकित कर देने वाली इस घटना का जिक्र किया, जिसे उन्होंने सफर के दौरान स्वयं अपनी आंखों से देखा था। मगर मक्का नगर के कट्टर विरोधी जो काफिर बने रहने की मानो कसम खाए बैठे थे, फिर भी न माने और इस मोजिज़े को जादू ही कहते रहे।
चाँद के दो भागों में बंट जाने की यह घटना हज़रत मुहम्मद सल्ल0 को नुबूवत मिलने के लगभग नौ वर्ष बाद की है। जिस समय यह घटना घटी, मक्का नगर में रात के लगभग नौ बजे का समय था और भारत में लगभग बारह बजे का समय था। भारत के वर्तमान प्रदेश केरल में कोदन गल्लूर का राजा चैरामन पैरूमल अपने महल की छत पर टहल रहा था। उस की नज़र चांद के दो भागों पर पड़ी जो दायें बायें को जा रहे थे, राजा भोंचक्का हो कर यह दृश्य देखने लगा, तभी उसने देखा कि कुछ दूर जाकर दोनों भाग पुनः पलटे और आकर मिल गए। दूसरे दिन राजा पैरूमल ने दरबार किया जिस में राज्य के विद्वानों को विशेषकर बुलाया। उन सब के सामने राजा ने रात वाली घटना विस्तार से सुनाई और इस विषय पर प्रकाश डालने को कहा। कुछ विद्वानों ने भारतीय धर्म ग्रंथों में बयान हुई भविष्य वाणी के आधार पर बताया कि अरब देश में प्रभु का एक सन्देशी और समाज सुधारक होगा जो संसार को ईश्वर का संदेश सुनाएगा, उसी के द्वारा यह चमत्कार दिखाया जाएगा। यह सुन कर राजा की उत्सुकता बढ़ी और उसने अपने समुद्री तट पर आने वाले अरब व्यापारियों से पूछ ताछ की। उन लोगों ने हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की पुष्टि की। राजा के मन में आप सल्ल0 से मिलने की इच्छा हुई। उसने अपना राज पाट अपने भाई को सौंप कर मदीना जाने की योजना बनाई। अरब व्यापारियों के साथ वह मदीना गया और हज़रत मुहम्मद सल्ल0 से मुलाकात की, इस्लाम कुबूल किया और आप सल्ल0 की सेवा में 17 दिन रहा। एक अरब विद्वान ताबूर ने अपनी पुस्तक ‘‘फिरदौसुल हिकमरू’’ में लिखा है कि राजा पैरुमल का इस्लामी नाम ताजुद्दीन रखा गया था। भारतीय मूल के आर्य समाजी विद्वान पंडित राजेन्द्र श्री ने अपनी पुस्तक ‘‘भारत में मूर्ति पूजा’’ में इस घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि यह राजा इस घटना के बाद मुसलमान हो गया था।
अफ़सोस है कि वापसी के सफर में राजा का देहांत हो गया। मरने से पहले उसने अपने भाई को वसीयत लिखी थी कि अरब देश से आने वाले व्यापारियों को अपने देश में आदर सम्मान के साथ रहने की अनुमति दी जाये। केरल के कोदन गल्लूर नगर में भारत की सब से पहली मस्जिद उसी समय की है।
इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि ईमान अल्लाह की तौफीक़ से उसी को मिलता है जिस में सत्य को स्वीकार करने की प्रबल इच्छा होती है। अबू जहल मक्का नगर का रहने वाला, हज़रत मुहम्मद सल्ल0 को बचपन से जानने पहचानने वाला अपने सामने यह दृश्य देख कर भी हठधर्मी के कारण ईमान नहीं ला सका और आप सल्ल0 को जादूगर ही कहता रहा।
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नेकी का फ़ायदा

हज़रत इमाम शाफअ़ी इस्लामी जगत के बड़े विद्वान गुज़रे हैं। इस्लामी फ़िक्ह में उनका बड़ा काम और नाम है। इस्लामी फिक्ह के चार बड़े इमामों में से ये एक हैं।  
उनका एक किस्सा मशहूर है कि एक बार सवारी पर सवार हो रहे थे कि एक आदमी ने श्रद्धापूर्वक उनके घोड़े की लगाम पकड़ ली ताकि वह आराम से चढ़ जाएं। उन्होंने उस आदमी को ये नेकी करते देखा तो अपने दोस्त रबीअ़ बिन सुलैमान से कहा जो इस सफ़र में उनके साथ थे। कि मेरी ओर से इस व्यक्ति को चार अशरफ़ियाँ ये खेद व्यक्त करते हुए दे दो कि इस समय मेरे पास इतना ही है, यदि और होतो तो ज़रूर देता।
हमारे बूढ़े पुरनियाँ कहते हैं कि पहले लोग एहसान मानने और एहसान को चुकाने वाले होते थे, उनका दावा होता कि उनके दौर में बहुत कम लोग एहसान फरामोश होते थे जबकि आज एहसान मानने वाले कम और एहसान को भूलने वाले ज़्यादा हैं। ये भी एक तथ्य है कि हर अगला दौर पिछले दौर से खराब रहा है।
ख़ैर! इमाम शाफअ़ी का एक और क़िस्सा भी पढ़ते चलिए कि जब उनका अन्तिम समय आया तो उन्होंने अपने लोगों को वसीयत की कि मेरी मय्यत को मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह नहलाएंगे। जब इमाम शाफअ़ी का देहांत हो गया तो मुहम्मद को इसकी सूचना दी गई वह आये तो घर वालों ने सारा किस्सा कह सुनाया, उन्होंने कहा, अच्छा मैं समझ गया, इनके हिसाब किताब का रजिस्टर दिखाओ। रजिस्टर सामने लाया गया और जोड़ घटा कर देखा गया तो इमाम साहब के ज़िम्मे सत्तरह हज़ार दिरहम का कर्ज था। मुहम्मद ने इतनी बड़ी रक़म कर्जे में देख कर भी झट से कहा कि इन सब कर्ज़ों के चुकाने की ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ। उन्होंने बताया कि नहलाने का तात्पर्य भी यही कर्ज़ था।
आज के समय में ये रकम लाखों रूपये में होगी मगर इमाम साहब के व्यक्तित्व का ये खिंचाव था कि बड़ी रक़म की परवाह न की और बिला झिझक उसे चुकाने को तैयार हो गये।
सीधी सी बात है कि अच्छे कर्म करेंगे तो मरने के बाद भी वह काम आएंगे, जो अभी के किस्से में गुज़रा भी। दरअसल दुनियादार को लोग डराते हैं, आजकल तो बीमा पाॅलिसी वाले भी हद किये हुए हैं, वह मरने और घायल होने के फायदे बताते हैं। एक पत्नी को बीमा वाले बताते हैं कि हर महीने इतना जमा करियेगा तो इस दौरान यदि आपके पति बीमार पड़ जाएं या मर जाएं तो आपको इतने लाख मिलेंगे। मेरा मानना है कि इतना उल्टा सीधा सोचने की ज़रूरत क्या है, बल्कि अच्छी नियत रखो, कभी बुरा समय आया भी तो हम आसानी से उबर जाएंगे, हमारे यहां तो कहावत भी मशहूर है कि ‘‘जैसी नियत वैसी बरकत’’ हम अच्छा सोचें, अच्छा करें, सच, बोलें, हक़ पर रहें, जुल्म न करें, न्याय करें, रब की इबादत करें, लोगों के साथ नर्मी करें, अत्याचार को पनपने न दें, व्यभिचार से दूर रहें तो ज़िन्दगी अच्छी होगी और आपको हम सबको अच्छे साथी मिलेंगे जो हमें भलाई की तरफ़ ले कर जाएंगे और ज़िन्दगी को आसान बना देंगे।

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अभिभावकों की बेजा अपेक्षायें और लड़कों की आत्म-हत्या

देश की सर्वाेच्च न्यायालय के निर्णय और टिप्पणियाॅं बड़े चैकाने वाले होते हैं. इसी तरह की एक टिप्पणी 23 नवम्बर 2023 को समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक था ‘बच्चों की आत्म-हत्या के लिये कोचिंग सेन्टर नहीं अभिभावक की अपेक्षायें जिम्मेदार होती हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चांे के मध्य कठिन स्पर्धा और उनके अभिभावकों का दबाव, आत्म-हत्या की बढ़ती हुई घटनाओं का कारण हैं. सर्वाेच्च न्यायालय जनहित की एक याचिका की सुनवाई कर रही थी।
    समाचार कुछ इस प्रकार था कि ‘‘सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान के कोटा के कोचिंग सेन्टरों में आत्म-हत्या की बढ़ती हुई घटनाओं के लिये अभिभावकों को जिम्मेदार ठहराया है क्योंकि अभिभावकों की अपेक्षाओं का बोझ बच्चों को अपनी जान लेने पर मजबूर कर रहा है। सर्वाेच्च न्यायालय का कहना है कि कोचिंग सेन्टरों की गलती नहीं है बल्कि अभिभावक की अनावश्यक अपेक्षायें बच्चों को आत्म-हत्या करने पर मजबूर करती है।
    आज के अभिभावक जो कल के बच्चे थे उन्होंने अपने अभिभावकों की अपेक्षाओं को पूरा करके नहीं दिया आज वही अभिभावक अपने बच्चों से यह अपेक्षा करते हैं कि वह अपने पिता की नाकामी को पूरा करके दिखायें। और जब बच्चे अपने अभिभावक की इक्षा को पूरा करने में नाकाम होते हैं तो अभिभावक के सामने ज़िन्दा आने के बजाये अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेते हैं. उस समय सम्भवतः अभिभावक को अब अपनी ग़लती समझ में आती हो लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता उन की उम्मीदों ने तो बच्चे की जान ले ली।
    बच्चों की बहुत अच्छी तरबियत होनी चाहिये अभिभावकों को चाहिये कि वह अपनी इक्षाओं को अपने बच्चों पर थोपें नहीं, जिस प्रकार के विषयों में बेटे की रुचि हो वही विषय उसको दिलाना चाहिये. यह आवश्यक नहीं है कि विज्ञान पढ़ने वाला बच्चा ही कामयाबी की राह तय कर सकता है और कला विषय वाले बच्चे कुछ अच्छा नही कर सकते. इस प्रकार की सोच बहुत गलत है. एम.एस.सी. या एम.सी.ए. पास लड़का जब ‘यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन’ का फ़ार्म भरता है तो इतिहास विषय के साथ परीक्षा देना पसन्द करता है क्योंकि विज्ञान की कोई सीमा नहीं लेकिन इतिहास में ऐसा नहीं है। 
भारत ने बहुत तरक्की कर ली है, हमने चाँद पर कमन्द डाल ली है परन्तु अभिभावक अभी तक यही कहते सुने जाते हैं कि जब बच्चा पैदा हुआ था तभी हम ने सोच लिया था कि इसको श्रम्म् या प्प्ज् कराऊँगा और इसकी तैयारी शुरू से करानी होगी। प्रायः अभिभावक प्राइमरी शिक्षा के बाद ही इन परीक्षाओं की तैयारी कराने लगते हैं और अपनी पसन्द के कोचिंग सेन्टर तलाश कर लेते हैं और छटे-सातवीं कक्षा से, अपनी सोच को सार्थक करने के लिये श्रम्म् या प्प्ज्  की तैयारी कराने लगते हैं।
    नाकाम लड़के अपने अभिभावकों का सामना करने से कतराते हैं इसी लिये वे आत्म हत्या जैसे ग़लत निर्णय ले लेते हैं। यह रुझान बहुत बढ़ गया है, इस से सम्बन्धित कुछ आँकड़े मिले हैं जो आप के ज्ञानवर्धन के लिय प्रस्तुत हंै. ध्यान रहे कि बच्चों की आत्म हत्यायें केवल श्रम्म् या प्प्ज् की कोचिंग के सम्बन्ध में हुई हैं। जवान और पला हुआ बच्चा हाथ से तो गया, और कोई कोचिंग केन्द्रों को आरोपित करता रहे कि उनके दबाव में लड़के ने आत्म- हत्या की है।
    राजस्थान पुलिस के आंकड़ों के अनुसार 2020 में 15, 2019 में 18, 2018 में 20, 2017 में 7, 2016 में 17 और 2015 में 6 विद्यार्थियों ने आत्म हत्यायें की, 2020 और 2021 में कोटा में किसी भी विद्यार्थी के आत्म हत्या की कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई क्योंकि कोरोना के कारण प्रशिक्षण केन्द्र बन्द मिले थे।
    छब्त्ठ (नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्योरो) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार 2021 में 13089 विद्यार्थियों ने आत्म हत्या की जोकि 2017 में होने वाले 9905 मृत्यु की अपेक्षा 32.5 प्रतिशत अधिक है। यह भारत में 2021 के प्रतिदिन लगभग 36 विद्यार्थियों की आत्म हत्या के बराबर है।
    छब्त्ठ  (नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्योरो) के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछली दहाई के दौरान भारत में आत्म हत्या करने वाले विद्यार्थियों का हिस्सा 70 प्रतिशत बढ़ गया है। भारत में आत्म हत्या से बचाव का विश्व दिवस 10 सितम्बर को मनाया जाता है इसके चन्द ही दिनों बाद कोटा में 2023 में पहले ही 23 विद्यार्थियों की आत्म-हत्यायें रिकार्ड की गई जो कि 2015 के बाद से सब से अधिक है, 17 विद्यार्थियों की मृत्यु आत्म हत्या से हुई थी।
    बच्चे मानसिक तनाव में भी पिसते हैं, इसका सब से मुख्य कारण होता है अपने घर से अपने परिवार से बिछड़ना, माता पिता, भाई बहन से बिछड़ कर जीवन नीरस और बोझल हो जाता है, हो सकता है यह बोझल जीवन कुछ समय के पश्चात महसूस न हो, हो सकता है आदत पड़ जाय, यह भी हो सकता है ग़म हलका करने के लिये गलत लोगों का साथ हो जाये, ख़राब आदतों की लत लग जाये इन कारणों के साथ अभिभावक द्वारा थोपे गये सबजेक्ट की तैयारी करना क्या सम्भव हो सकता है?
आप का बेटा या बेटी अगर इन्जीनियर या डाक्टर बनना चाहता है तो उसके लिये तमाम सुहूलतें उपलब्ध करायें अगर रुझान किसी और तरफ़ है तो बराय मेहरबानी अपनी मर्जी न थोपें. अगर उसका रुझान कुछ और करने का है तो कृपया अपनी इक्षाओं का बोझ उस पर मत डालें इस तरह के बच्चे अभिभावकों की इक्षाओं की पूर्ति नहीं कर पाते।
    आप अपने बच्चे से श्रम्म् या प्प्ज् में भाग्य आज़माने की बात करते हैं तो यहाॅँ फ़ीस के नाम पर मोटी-मोटी रक़में भरनी पड़ती है और जान तोड़ मेहनत करनी पड़ती है वह अलग से और विफल होने पर (खुदा न करे) एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों में बढ़ोतरी का खतरा भी रहता है तो क्यों न अपने बच्चे को जिगर के टुकड़े को ‘यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन’ की परीक्षाओं की तैयारी करायें जिसमें बच्चों को केवल मेहनत करनी रहती है वह भी अपने घर पर रह कर। कोई अतिरिक्त व्यय नहीं केवल परीक्षा शुल्क ही जमा होगी।
    ‘यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन’ की परीक्षायें बहुत कठिन होती हैं, लाखों अभ्यर्थी फ़ार्म भरते हैं और लगभग 1000 उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की सूची तैयार होती है. यदि किसी उम्मीदवार का नाम इस सूची में आ गया तो 24 प्रकार की मुलाज़मत में से कोई न कोई मुलाज़मत का वह अधिकारी हो जायेगा. अगर वह डिप्टी कलेक्टर या पुलिस कप्तान हो गया तो क्या कहने! इसके लिये न्यूनतम शिक्षा स्नातक है

टअअ
घरेलू मसायल

औरतों को विरासत में हिस्सा मिलने की सूरतेंः-
इसके बावजूद कि औरत के ज़िम्मे आम हालतों में, किसी का खर्चा और कोई जरूरी खर्च नहीं होता लेकिन शरीयत ने उसे अलग अलग हैसियतों से विरासत में साझी करार दिया है, इसकी कुछ तफ्सील नीचे पेश की जाती है।

  1. औरत को माँ की हैसियत से कुछ हालतों में, कुल सम्पत्ति का 1/3 मिलता है और कुछ में 1/6
  2. औरत दादी होने की हैसियत से कुछ हालतों में कुल सम्पत्ति का 1/3 मिलता है और कुछ में 1/6 या इससे भी कम।
  3. औरत को नानी होने की हैसियत से कुछ हालतों में कुल सम्पत्ति का 1/3 मिलता है और कुछ में 1/6 या इससे भी कम।
  4. औरत को बेटी की हैसियत से (मय्यत की सिर्फ एक ही बेटी है, बेटा नहीं है) तो कुल सम्पत्ति का आधा मिलता है, और अगर दो या इससे ज़्यादा बेटियाँ हैं तो दोनों को (या ज़्यादा को) कुल सम्पत्ति का 2/3 मिलता है, इन लड़कियों या लड़की के साथ उनका भाई (मय्यत का बेटा) भी हो तो हर लड़की को अपने हर भाई के हिस्से से आधा मिलेगा।
  5. औरत पोती की हैसियत से कुछ हालतों में अपने दादा के छोड़े हुए माल से 1/2, पाती है और कुछ में 1/6 और कुछ हालात में अपने भाई के हिस्से से आधा, और अगर एक से ज़्यादा सिर्फ पोतियां हों तो सब सामूहिक रूप से कुल माल का 2/3, हिस्सा पाती हैं, (इस शर्त के साथ कि मय्यत के प्रत्यक्ष रूप से औलाद मौजूद न हों)।
  6. औरत को सगी बहन की हैसियत से कभी कभी 1/2, कभी 1/3, और कभी अपने भाई के हिस्से का आधा, और अगर दो या ज़्यादा हों तो सामूहिक रूप से सब को 2/3, मिलता है।
  7. औरत को सौतेली बहन की हैसियत से कभी 1/6, और कभी सगी बहन के हिस्सों के बराबर।
  8. औरत का माँ जाई बहन होने के ऐतेबार से कुछ हालतों में 1/6 और कुछ हालतों में कुल माल में से सारे बहन भाईयों का सामूहिक हिस्सा 1/3 होता है। (सब का बराबर)
  9. औरत को बीवी होने की हैसियत से कुछ हालतों में 1/4 मिलता है, और कुछ में 1/8 इन हैसियतों के अलावा कुछ दूसरी हैसियतों से भी औरतों को विरासत में से हिस्सा मिल सकता है,मगर यहां उन सब को लिखना मकसद नहीं है,इसलिए इन चंद मशहूर और सर्वमान्य सूरतों को जिक्र करने पर बस किया गया। यहां ये स्पष्ट करना शायद बेजा न हो कि ऊपर जिक्र की गई हैसियतों में से हर एक में हमेशा हिस्सा मिलना जरूरी नहीं होता, क्योंकि जब करीबी रिश्तेदार दूर के रिश्तेदारों के लिए हाजिब (रुकावट) बन जाते हैं, तो दूर के रिश्तेदार वंचित और महरूम हो जाते हैं, इस बारे में मर्द व औरत के दरम्यान कोई फर्क नहीं है इन सब बातों की तफ्सील की इस जगह न गुंजाइश है और न इसकी यहां जरूरत! विरासत की उपरोक्त तफ़्सील आ जाने के बाद ये भी मालूम हो जाता है कि अक्सर सूरतों में औरत को अपने बराबर के रिश्तेदार मर्द से आधा हिस्सा मिलता है, मगर कुछ सूरतों (माँ जाए भाई बहन के दरम्यान) में औरत व मर्द का हिस्सा बराबर है। उपरोक्त सभी तथ्यों पर गौर करने के बाद औरत का हिस्सा मर्द से कम होने पर एतेराज की गुंजाइश नहीं रहती, बल्कि हो सकता है कि दिमाग के किसी कोने में ये खयाल आने लगे कि औरत को विरासत का जो हिस्सा भी मिल रहा है गनीमत ही है। यहां शैख अली साबूनी की किताब ‘‘अल-मवारीस फिश- शरीअतिल इस्लामियह’’ में बयान की हुई मिसाल का जिक्र भी बड़ा रोचक होगा। जनाब लिखते हैं- ‘‘जैसे एक शख्स ने मरने के बाद, एक लड़का, और एक लड़की, वारिस छोड़े, और तीन हजार तर्का (मय्यत का छोड़ा हुआ माल) शरीयत के ऐतेबार से लड़के को दो हजार और लड़की को एक हज़ार उस माल में से मिले। लड़के ने शादी की और बीवी का महर दो हज़ार तय किया जो उसे देना पड़ा, दूसरी तरफ़ लड़की ने शादी की, उसका भी महर दो हज़ार ही तय हुआ, और वो उसे मिला, इस तरह लड़की के पास तीन हज़ार हो गए, और लड़के पास जो कुछ था वो महर में चला गया, और ये खाली हाथ रह गया। ‘‘अब सोचिये नतीजे में किसके पास रक़म ज़्यादा रही? एक सवाल का जवाबः- यहां ये सवाल करना बड़ी बेवकूफी होगी कि इस मिसाल से तो लड़के पर जुल्म साबित होता है (और जुल्म चाहे किसी पर हो उसे खत्म करना चाहिए) क्योंकि मर्द को अल्लाह ताला ने माल कमाने की भरपूर योग्यता दी है। बल्कि वास्तव में कमाने की क्षमत्ता उसी में रखी है, इसलिए ये सलाहियत व योग्यता ही हकीकत में सभी खर्चों और आर्थिक जिम्मेदारियों का बदल, बल्कि बहुत अच्छा बदल है कि इसको सामने रखते हुए बड़ी से बड़ी राशि और खर्च हो जाने वाले की मात्रा भी हकीर है। इसके विपरीत, औरत को अल्लाह तआला ने घर के इंतजाम करने वाली और श्रृंगार बनाया है, जो बाज़ारों और कारखानों मेहनत करने और कमाने की मशक़्कत के मैदानों में दौड़ लगाने की योज्ञता से पैदाइशी तौर पर मानो खाली रखी गई है। मगर ‘‘आधुनिक सभ्यता’’ ने उस पर ये जुल्म ढाया कि उसे ‘‘बराबरी’’ का भ्रामक कल्पना दे कर, और उसकी कुदरती बनावट, प्राकृतिक योग्यता, और पैदाइशी कमजोरियों का सही अंदाजा किये बिना उसे मैदाने अमल में मुसीबतें झेलने के लिए ला खड़ा किया, फिर और अत्याचार देखो कि इसे जुल्म नहीं ‘‘तरक़्की’’ कहा और समझाया जा रहा है। खिरद का नाम जुनूँ रख लिया, जुनूँ का खिरदः- और इसका नतीजा क्या निकला? (ये किसी मुल्ला की जबान से नहीं बल्कि) एक यूरोपियन फलसफी अर्थशास्त्री ‘‘जॉल सिमोन’’ के अलफाज़ में सुनिए! ‘‘औरत अब घर की मलिका नहीं बल्कि कारखानों की छपाई, बनाई और इसी तरह दूसरे कठिन कामों का यंत्र बन कर रह गई है, और सरकारी दफ़्तरों की सेविका। इस मेहनत के बदले में उसे मिलता क्या है? सिर्फ चंद टके! लेकिन इन हकीर पैसों के लिए उसने नुकसान ये किया कि परिवार की नीव हिला कर रख दी, अगरचे औरत की कमाई से मर्द को भी थोड़ा सा हिस्सा मिल जाता है मगर ये भी तो सोचो, कि ये पैसे औरत ने मर्द ही को धकेल कर हासिल किया है’’ मनो मर्द ही का हक था जो औरत ने मार लिया। ‘‘इन मामूली काम करने वाली औरतों के अलावा कुछ औरतें बड़े काम भी करती हैं, मसलन व्यवसायिक मॉल में, शिक्षा विभाग में, टेलीग्राफ में, रेलवे में, बैंकों में। मगर ये आला पद तो औरत को बिलकुल ही परिवार से अलग थलग कर देते हैं।’’ (अल-मरअतु बैनल फिक़्ह- पृष्ठ 176) इससे आगे बढ़ कर ये कि औरत बराबरी के घमंड में लिप्त हो कर अपराध में मर्दों की बराबरी करने लगी बल्कि उन से बाजी ले जाने लगी जैसा कि ब्रिटेन की एक लेडी पुलिस ऑफिसर ने ब्रिटेन के बारे में खुलासा किया ‘‘औरतों में अपराध खासतौर से हिंसक अपराध करने का औसत ज़्यादा बढ़ रहा है।’’ (सिद्क-ए-जदीद, लखनऊ 7/मई 1976) इसके अलावा, नारी मुक्ति और मर्द औरत के मेल जोल से जो और भयानक असरात जाहिर हुए, उन्हें बयान करते हुए कलम भी थर्राता है। इस बारे में भी एक अंग्रेज महिला ‘‘लेडी कोक’’ के शब्द पढ़िएः- ‘‘मर्द औरत के मेल जोल में मर्दों की रूचि का साधन है। बहुत ज़्यादा मेल जोल के नतीजे में अवैध औलाद की भरमार है, जो औरत के लिए बड़ी मुसीबत है। ‘‘(पृष्ठ 190 ) और ये बहुतायत कितनी है, इसका अंदाजा मशहूर ब्रॉडकास्टिंग एजेंसी ‘‘राइटर’’ के जरिये (14 जनवरी 1963) संयुक्त राष्ट्र की प्राप्त रिपोर्ट से कीजिये। ‘‘ कुछ शहरों में अवैध बच्चों की संख्या तीस फीसद के करीब है।’’ (पृष्ठ-243) इसके अलावा खुदकुशी, और तलाक का औसत भी बहुत बढ़ गया है, अमेरिका के अन्दर 1890 में छः फीसदी था ‘‘मगर 1948 में चालीस फीसदी हो गया (पृष्ठ -287)। इन बुरे अंजाम से यूरोप के गंभीर और दूरदर्शी लोग चीख उठे, बल्कि अब औरतें भी घरेलू जिन्दगी की तरफ लौटना पसंद करने लगीं, अतः गत दिनों अमेरिका में जनमतसंग्रह किया गया (पृष्ट-259) तो 65 फीसदी औरतों ने घरेलू ज़िन्दगी अपनाने को तरजीह दी। हाय इस जूदे पशेमाँ का पशेमाँ होना। अअअ वृद्ध माँ-बापः बोझ या हमारी ज़िम्मेदारी? ‘‘माली’’ जो अपनी बगिया सजाता है अपने हाथों से एक नन्हा-सा बीज बोता है, दिन रात उसकी देखभाल करता है, पानी देता है, खाद देता है ताकि वह एक नन्हा सा बीज सूख न जाए। देखते ही देखते एक दिन वह नन्हा सा बीज पौधे में तब्दील हो जाता है। माली फिर उस एक बीज से जन्मे पौधे का पूरा ख़याल रख कर उसे एक फलदायी व उपयोगी वृक्ष में तब्दील कर देता है। ऐसा करने में माली को कई वर्ष लग जाते हैं, मगर माली जी जान से उसकी हिफ़ाज़त और देखभाल में जुटा रहता है ये सोचकर कि एक दिन वह वृक्ष बड़ा होगा जिसकी छांव में माली सुकून से अपने बुढ़ापे को व्यतीत करेगा। क्या आप जानते हैं वह माली और वृक्ष कौन है? हमारे घर के बुजुर्ग माता-पिता जो हमें पाल पोस कर वृक्ष जैसा मज़बूत और फलदायी बनाते हैं यह सेाच कर कि एक दिन वह हमारी छांव में सुकून से अपनी वृद्धावस्था को गुज़ारेंगे। वृद्धावस्था ज़िन्दगी का एक ऐसा अंतिम पड़ाव है जिसमें मनुष्य को सिर्फ़ प्यार चाहिए होता है। बुजुर्गों को केवल अपने बच्चों का साथ चाहिए होता है कि वो हमेशा उनके पास रहें ताकि वो अपनी बूढ़ी आँखों से उन्हें फलते फूलते देखते रहें जिसके सहारे वे अपने बुढ़ापे कि नैया को पार लगा सकें। पर क्या अस्ल में ऐसा हो पाता है? क्या माली समान हमारे माता पिता जिन्होंने हमें एक फलते-फूलते वृक्ष में तब्दील किया क्या वो हमारी छांव में बैठ पा रहे हैं? यह सवाल कोई व्यक्तिगत सवाल नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक प्रश्न है जिसका जवाब हमारी 21वीं सदी की पीढ़ी को देना होगा। आज नन्हे बीज समान बच्चे बड़े हो जाते हैं, पौधे से वृक्ष बन जाते हैं या कहा जाए कि समझदार हो जाते हैं तब वह माली समान अपने माता- पिता को ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि बोझ मान बैठते हैं। वे भूल जाते हैं कि माँ-बाप जो एक माली की तरह दिन रात एक करके उनको खाद और पानी देता रहा तो क्या वो अपने बुढ़ापे में अपने ही हाथों बोये हुए उस वृक्ष की छांव तले बैठ भी नहीं सकता। जिसकी सहायता से हम शिशु से एक वयस्क इन्सान के रूप में बड़े हुए, जिनकी दया से हम क़ाबिल बने हैं, क्या हम उनके साथ अन्याय नहीं कर रहे। आख़िर क्यों हमें अपने ही माता-पिता एक समय के बाद बोझ लगने लगते हैं? क्या सिर्फ़ इसलिए कि वो हमारी आधुनिकता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते या फिर उनकी और हमारी सोच मेल नहीं खाती। ऐसे तमाम प्रश्न अनायास ही मन में आने लगते हैं जब मैं देखती हूँ कि एक असहाय बुजुर्ग कैसे अपने ही पुत्र व पुत्रिओं द्वारा घरेलु हिंसा का शिकार हो रहा है। समाज में तेज़ी से बढ़ते हुए वृद्धाश्रम ;व्सक ंहम भ्वउमेद्ध इस बात का प्रमाण है कि बुजुर्ग हमारी ज़िम्मेदारी नहीं बल्कि एक बोझ हैं। आज कल की भागती दौड़ती ज़िन्दगी में बुजुर्ग हेय की दृष्टि से देखा जाने लगा है। वो माली जिसने हमें सींचा और खड़े होने लायक़ बनाया उसे हम यह कहने से भी नहीं कतराते कि तुमने हमारे लिए किया ही क्या है। कुछ तो ऐसे भी ताने मारते हैं कि बच्चे पैदा करना और उनको पालना तो माता-पिता का कर्तव्य है इसमें नया क्या है, ये तो उन्हें करना ही था परन्तु दुख इस बात का है कि माता-पिता का कर्तव्य देखने वाले बच्चे क्या वो अपना कर्तव्य भूल चुके हैं। आजकल बुजुर्गों की ऐसी दयनीय स्थिति है कि आज बुजुर्ग घर के एक कोने में पड़ा रहता है या वो वृद्धाश्रम भेज दिया जाता है। क्या हम अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकते? उनका भरण पोषण नहीं कर सकते? जिन्होंने हमें सक्षम बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया। बेटा, बहू, नाती पोते उनसे बात तक नहीं करना पसंद करते हैं क्योंकि वे उनको व्सक डंद व्सक ॅवउमद लगते हैं। बुजुर्ग अपने बच्चों को सलाह तक नहीं दे सकते क्योंकि उनका कुछ कहना दख़ल अंदाज़ी हो जाता है और वो दख़ल न बेटा बर्दाश्त करता है न ही घर की बहू जिसकी वजह से घरेलू तनाव उत्पन्न होते हैं जो हिंसा का भी रूप ले लेते हैं। भारत में बुजुर्गों पर अत्याचार के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं चाहे एक छोटा शहर हो या दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर हर जगह बुजुर्गों से जुड़े आपराधिक मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। घरेलू हिंसा, वैचारिक मतभेद और फिर संपत्ति विवाद को ध्यान में रख कर देश की सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे कई अहम फैसले लिए जो बुजुर्गों के हित में हैं। सर्वोच्य न्यायालय द्वारा लिए गए फ़ैसलों ने सच में बुजुर्गों को राहत पहुंचाई है, मगर फिर भी अपराध में कुछ ख़ास कमी नहीं आयी। यहां मैं उन अधिकारों को दिखाना चाहूंगी जिसे देश की सर्वोच्य न्यायालय ने बुजुर्गों को प्रदान किये हैं। भारतीय संविधान में बुजुर्गों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए क़ानून भी बनाए गये हैं आइये ग़ौर करते हैं। डंपदजमदंदबम ंदक ॅमसंितम व िच्ंतमदजे ंदक ैमदपवत ब्पजप्रमदे ।बजए 2007 संतान अपने माता-पिता की संपत्ति पर ग़ैर-क़ानूनी रूप से क़ब्ज़ा नहीं कर सकता है ऐसा करना दण्डनीय होगा और उनकी देखभाल न करने पर उन्हें तीन माह की क़ैद तथा 5000 रूपये जुरमाना देना होगा।
    1. माता-पिता या एक वरिष्ठ नागरिक जो स्वयं की अपनी कमाई या उसकी स्वामित्व वाली संपत्ति से खुद के रख- रखाव में असमर्थ हैं, वह अपने बच्चों पर अपने रख रखाव का दावा कर सकता है।
    2. इस अधिनियम में आगे यह कहा गया है कि यदि रख रखाव का दावा करने वाला दादा दादी व माता पिता हैं और उनके बच्चे या पोता-पोती अभी नाबालिग़ है तो वह ये दावा अपने रिलेटिव पर भी कर सकते हैं जो उसकी मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी होगा।
    3. दायित्व की सीमा, यह अधिनियम एक वरिष्ठ नागरिक के रिश्तेदारों पर इसे पूर्ण दायित्व बनाने की कोशिश नहीं करता है। अधिनियम में कहा गया है कि जिन रिश्तेदारों से इस तरह के रख रखाव का दावा किया जा रहा है उनमें ऐसे दावेदार के देखभाल के लिए पर्याप्त साधन होने चाहिए। इसके अलावा, इस अधिनियम में यह भी एक प्रावधान शामिल है, जिसमें कहा गया है कि इस तरह के व्यक्ति को वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति अधिकार होना चाहिए, या वरिष्ठ नागरिकों की संपत्ति का उत्तराधिकारी होगा। केवल उपरोक्त शर्तों को पूरा करने पर रिश्तेदार को वरिष्ठ नागरकि की देखभाल करने के लिए कहा जा सकता है। अधिनियम में एक और प्रावधान है, जिसमें सभी रिश्तेदारों द्वारा आनुपातिक भुगतान के बारे में बताया गया है, यदि रिश्तेदार एक से अधिक हों और सभी वरिष्ठ नागरिक के संपत्ति का वारिस होने के हक़दार हैं तो रख-रखाव इस तरह के रिश्तेदारों द्वारा अनुपात में देय होगा।
    4. ऐसी परिस्थिति में जब वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति अपने उत्तराधिकारी के नाम कर चुका है पर इस शर्त पर कि वह उसकी आर्थिक एवं शारीरिक ज़रूरतों का भरण पोषण करें। यदि संपत्ति का अधिकारी ऐसा नहीं करता है तो देयकर्ता (माता पिता या वरिष्ठ नागरिक) अपनी संपत्ति वापस ले सकता है।
    5. सरकार ने यह आदेश दिया है कि प्रत्येक राज्य के हर जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम हो ताकि वह वरिष्ठ नागरिक जिनका कोई नहीं है उनका रख रखाव बेहतर तरीक़े से वृद्धाश्रम में हो सके।
    6. सरकारी अस्पतालों में बुजुर्गों के उपचार का अलग से प्रावधान हैं उनके लिए अलग से पंक्तियां व्यवस्थित की गयी हैं ताकि उन्हें अधिक समय तक क़तार में इन्तिज़ार न करना पड़े़, उनके उपचार के लिए सुविधाओं का विस्तार किया गया है। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि जो संतान अपने माता-पिता के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी दुव्यर्वहार करते हैं तो उस माता-पिता को यह पूरा अधिकार है कि वह अपने संतान को अपनी संपत्ति से बेदख़ल कर सकता है।
      क़ानून तो है पर अब सवाल उठता है कि फिर भी बुजुर्गों के साथ ऐसा क्यों होता है? जानकारी के अभाव में, सामान्यतः हमें अपने क़ानूनी अधिकारों का ज्ञान नहीं होता है और छोटे, छोटे शहरों और गाँवों में लोगों की क़ानून तक पहुंच नहीं होती है, और होती भी है तो कई बार माँ-बाप अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं कि उनके द्वारा किये गये दुव्र्यवहार को भी सह लेते हैं ताकि उन्हें कोई दिक़्क़त न हो। बुजुर्ग माता-पिता अपने बच्चों के अत्याचारों के ख़िलाफ़ कड़े क़दम नहीं उठाते हैं और बच्चे भी निश्चिंत होते हैं कि माँ-बाप कभी भी उनके ख़िलाफ़ कोई क़दम नहीं लेंगे।
      पर ज़रा सोचिये ऐसी स्थिति ही क्यों आती है कि बच्चे ऐसा करें और माता-पिता को ऐसी दयनीय स्थिति से गुज़रना पड़े। माता-पिता ही अपने संपत्ति के अधिकारी हैं वह अपनी मर्ज़ी से इसका उपयोग खुद के लिए करें अपने बच्चों को पूरी तरह न सौंपें उन पर निर्भर न बनें। यदि अपनी संपत्ति बच्चों के नाम करते भी हैं तो अब उनको पूर्ण अधिकार हैं कि वह दी हुई अपनी संपत्ति को पुनः वापस ले सकते हैं। हर भारतीय नागरिक को आवश्यकता है अपने क़ानूनी अधिकारों को जानने की और बुजुर्गों के ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचारों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने की।
      एक और बात हमें याद रखने की ज़रूरत है कि भारत भूमि जहां माता-पिता को ऊँचा दर्जा दिया जाता है उन्हें सम्मानीय माना जाता है, ज़रूरत है इन संस्कारों को अपने बच्चों को सिखाने की, सिर्फ़ सिखाने की ही नहीं, बल्कि हम सब अपने बच्चों के सामने खुद एक उदाहरण बनें। आप और मैं जैसा व्यवहार अपने माता-पिता से करेंगे वैसा ही व्यवहार आपके और मेरे बच्चे भी सीखेंगे।
      माता-पिता बोझ नहीं हैं वह हमारी प्राथमिक ज़िम्मेदारी हैं। ज़रा सोचिये अगर उन्होंने भी हमें बोझ समझ कर हमारा ख़याल नहीं रखा होता तो आज हम वह न होते जो आज हम हैं, उन्हें समझिये, उनका ख़्याल रखिये, उन्हें प्यार दीजिए, उन्हें सिर्फ़ आपका साथ चाहिए और कुछ नहीं। माता पिता और बेटा-बेटी के बीच माली और पौधे का रिश्ता है। मैं यह चाहूंगी कि माली यूं ही अपने हाथों से पौधे को सींचता रहे ताकि एक दिन वह पौधा वृक्ष का रूप लेकर अपने माली समान माँ-बाप को अपनी छांव में बिठा सके जिससे कि उनकी लंबी थकान दूर हो सके।
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      डायबिटीज़ एवं हृदय रोग ‘‘एन्जाइना ;।दहपदंद्ध
      डायबिटीज़ के रोगियों में हृदय रोग ‘‘एन्जाइना’’ हृदय की रक्त धमनियों में एकत्र होने के कारण होती है जो कोलेस्ट्राल के कारण ही होती है। कोलेस्ट्राल के कारण ही ‘‘एन्जाइना’’ होता है जो हार्ट अटैक का कारण होता है। जिन कारणों की वजह से किसी व्यक्ति को कोरोनरी हृदय रोग होता है उनमें डायबिटीज़ का महत्वपूर्ण स्थान है। सबसे बड़ी बात यह है कि हृदय रोगियों के इलाज में उतनी जटिलताएं नहीं हैं जितनी कि डायबिटीज़ और हृदय रोगियों में है।
      डायबिटीज़ के मरीज़ों में हृदय रोग ‘‘एन्जाइना’’ के होने पर यदि समय से इलाज हो गया तो पूरी तरह रोग मुक्त हुआ जा सकता है। हार्ट अटैक से पीड़ित 25 प्रतिशत लोगों में डायबिटीज़ की समस्या होती है।
      डायबिटीज़ के मरीज़ों में हृदय रोग ‘‘एन्जाइना’’ की शिकायत अधिक होती है। डायबिटीज़ से पीड़ित पुरुषों में इस बीमारी का ख़तरा दो से तीन गुना ज़्यादा होता है जबकि डायबिटीज़ महिलाओं में इसका ख़तरा तीन से पाँच गुना अधिक होता है।
      डायबिटीज़ के मरीज़ों में कोलेस्ट्राल जमने की गंभीरता अधिक पायी जाती है तथा एक से अधिक धमनियों में बीमारी पाई जाने की संभावना होती है। डायबिटीज़ से पीड़ित हृदय रोग ‘‘एन्जाइना’’ के मरीज़ों में हृदय से संबंधित खतरा अधिक होता है। इसके अतिरिक्त यदि डायबिटीज का रोगी ‘‘एन्जाइना’’ के मरीज़ों में हृदय से संबंधित खतरा, हार्ट अटैक का खतरा तथा पक्षाघात का खतरा अधिक होता है। इसके अतिरिक्त यदि डायबिटीज़ का रोगी ‘‘एन्जाइना’’ का रोगी है तोे दोबारा हार्ट- अटैक का खतरा 1.4 से 3.1 गुना ज़्यादा होता है। इसी प्रकार महिलाओं में इसका खतरा पुरुषों की अपेक्षा दो गुना अधिक होता है।
      डायबिटीज़ से पीड़ित हृदय रोग ‘‘एन्जाइना’’ के रोगियों के सीने में दर्द नहीं होता है जिसके कारण ऐसे रोगियों में साइसेंट इशकीमियां की संभावनाएं ज़्यादा होती है। ऐसे रोगियों में सांस फूलने की बीमारी होती है। ऐसे रोगियों की बाईपास सर्जरी सम्भव नहीं है क्योंकि एन्ज्योप्लास्टी तथा सैपेनस गेन ग्राफ़्ट के परिणाम निराशाजनक रहे हैं।
      डायबिटीज़ और हृदय रोग ‘‘एन्जाइना’’ के रोगियों में एन्ज्योप्लास्टी के बाद पुनः दुबारा सिकुड़न होने का ख़तरा 100 प्रतिशत होता है।
      डायबिटीज़ एवं हृदय रोग ‘‘एन्जाइना’’ के रोगियों में यदि कई रक्त धमनियों में कोलेस्ट्राल के कारण सिकुड़न है तो बाई- पास सर्जरी पहली बात तो सफल नहीं होती है यदि किसी प्रकार बाई-पास सर्जरी हुई तो पुनः सिकुड़न हो जाती है और मरीज़ गंभीर स्थिति से गुज़रता है। इसलिए जब भी मरीज़ को डायबिटीज़ हो तो उसे ई.सी.जी. ;म्ण्ब्ण्ळण्द्ध या टी.एम.टी. ;ज्ण्डण्ज्ण्द्ध अवश्य ही करा लेना चाहिए कि ‘‘एन्जाइना’’ की शिकायत है या नहीं।

अंतर्राष्ट्रीय समाचार
सीसी तीसरी बार राष्ट्रपति चुने गयेः-
अब्दुल फत्ताह अल-सीसी 89.6ः वोट पाने के बाद फिर 6 साल के लिए मिस्र के राष्ट्रपति चुने गए। सीसी का यह तीसरा और मिस्र के संविधान के मुताबिक आखिरी कार्यकाल होगा। चुनाव में उपविजेता हाजिम मु0 सुलैमान उमर को 4.5ः वोट मिले ज्ञात हो कि पूर्व आर्मी चीफ़ नवनिर्वाचित मिस्री सदर अब्दुल फत्ताह अल- सीसी पहली बार जून 2014 में राष्ट्रपति चुने गये थे, साल 2018 में दूसरे कार्यकाल के लिए 97.8ः वोट हासिल कर राष्ट्रपति चुने गये थे, मिस्री फौज के पूर्व आर्मी चीफ़ अब्दुल फत्ताह ने साल 2013 में मिस्र के प्रथम निर्वाचित राष्ट्रपति मो0 मुर्सी को अपदस्त करके सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था।
फ़ातिमा वसीम सियाचिन में पहली महिला मेडिकल अफ़सरः-
सियाचिन वाॅरियर कैप्टन फातिमा वसीम ने इतिहास रच दिया है। वह सियाचिन ग्लेशियर के आॅपरेशनल पोस्ट पर तैनात होने वाली पहली महिला मेडिकल अफसर बन गई हैं। यह जानकरी भारतीय सेना की फायर एण्ड फ्यूरी कोर ने ग् पर एक पोस्ट के जरिए दी। इसके अनुसार कैप्टन फातिमा वसीम को सियाचिन बैटल स्कूल में सख़्त प्रशिक्षण के बाद 15,200 फुट की ऊँचाई पर एक पोस्ट पर तैनात किया गया। सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया में सबसे अधिक ऊँचाई वाले युद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है जो स्व्ब् के पास है।
गज़्ज़ा संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नैतिक विफलता हैः रेड क्राॅसः-
रेड क्रॉस ने गज़्ज़ा संघर्ष को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नैतिक विफलता क़रार दिया है, एक बयान में रेड क्रॉस का कहना था कि गज़्ज़ा में अत्याधिक पीड़ा को रोकने में विफलता का असर न केवल गज़्ज़ा बल्कि अन्य पीढ़ियों पर भी पड़ेगा, संस्था के मुताबिक गज़्ज़ा की 90 फीसद से ज़्यादा आबादी बे घर हो चुकी है, 60 फीसद से ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह हो गया है, गज़्ज़ा के लोगों की जबरन बेदखली सबके सामने हो रही है, गज़्ज़ा की तबाही इतनी हैरान करने वाली है जिसकी कोई मिसाल नहीं मिलती।
इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी सालः-
नये साल में 76 देशों में आम चुनाव- 2024 में 76 देशों में आम चुनाव होंगे, जो आने वाले वर्ष को इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी वर्ष बनाने जा रहे हैं। इन देशों में 43 लोकतांत्रिक देश हैं, जिनमें 27 यूरोपीय संघ से जुड़े हुए हैं। खास बात यह है कि दुनिया के 10 सबसे ज़्यादा आबादी वाले देशों में से 8 में भी वोट डाले जाएंगे। ये देश है भारत, बंग्लादेश, ब्राजील, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, रूस और अमेरिका।
किस महीने कहाँ चुनावः-
जनवरी- बांग्लादेश, कोमोरोस, ताइवान। फरवरी- बेलारूस, कंबोडिया, अलसल्वाडोर, इंडोनेशिया, माली, पाकिस्तान।
अप्रैल- भारत, मई- रिपब्लिक, पनामा, बाॅमिनिकन।
जून- आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस, चेक रिपब्लिक, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्राॅन्स, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आइसलैंड, आयरलैंड, इटली, लातविया, लिथुआनिया, लग्जमबर्ग, माल्टा, मेक्सिको, नीदरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल।
अक्टूतर- ब्राजील, मोजाम्बिक
नवंबर- पलाऊ, दिसंबर- घाना।