दीनी मदरसों का तअ़लीमी साल

रोज़ा एक इस्लामी इबादत
March 1, 2023
हज एक अहम इबादत
June 4, 2023

उपमहाद्वीप के छोटे बड़े लाखों मदरसों में रमज़ान शरीफ़ के बाद शव्वाल के महीने में तालिब इल्मों के दाख़िले की कार्यवाई शुरु हो जाती है जिसकी वजह से मदरसों में रौनक और बहार आ जाती है,यह विद्यार्थी, देश के कोने कोने से लम्बा सफ़र करके आते हैं और अपनी इल्मी प्यास बुझाते हैं, जिस इल्म को यह हासिल करते हैं उसको दूसरों तक पहुँचाते हैं, मदरसे के इन पढ़ने वाले तालिब इल्मों को ‘‘तालिबाने उलूमे नबूवत’’ और मेहमाने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहा जाता है, इन मदरसों का इतिहास बहुत पुराना है। अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद सल्ल0 जब मक्का मुअज़्ज़मा से मदीना मुनव्वरा हिज़़रत करके तशरीफ़ ले गये तो सबसे पहले आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मस्जिद के लिए ज़मीन ख़रीदी ताकि अल्लाह की इबादत के लिए नमाज़ क़ाएम की जाए, उसी मस्जिद के कोने में एक चबूतरा बनाया गया और उस पर साएबान डाला गया जिसके नीचे बैठ कर लोग इल्मे दीन हासिल करते थ,े इस्लामी इतिहास में यह सबसे पहला मदरसा है, जो ‘‘सुफ़्फ़ा’’ के नाम से प्रसिद्ध है, इस मदरसे में पढ़ने वाले स्थानीय और दूरदराज़ से सफ़र करके आने वाले दोनों प्रकार के लोग थे, उनका निवास स्थान वही सुफ़्फ़ा था खाने का प्रबंध अल्लाह के नबी सल्ल0 की ओर से था। सहाब-ए- किराम की ओर से सहायता हो जाती थी, आम तौर पर निर्धन्ता और दरिद्रता वाली ज़िन्दगी थी परन्तु इसके बावजूद मदरसा सुफ़्फ़ा के तालिब इल्म, क़ुरआन हदीस का इल्म हासिल करने के लिए साबित क़दम रहे, मदरसा सुफ़्फ़ा के तालिब इल्मों में मशहूर सहाबि-ए-रसूल सल्ल0 हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 अन्हु हैं जो दस हज़ार हदीसों के रावी हैं। तारीख़ की किताबों से मालूम होता है कि सुफ़्फ़ा में इल्म दीन हासिल करने वालों की संख्या कभी कभी सत्तर तक पहुँच जाती थी। यह इस्लाम का पहला मदरसा बना, जो सिर्फ मुसलमानों का नहीं बल्कि अरबों में क़ाएम होने वाला पहला मदरसा साबित हुआ जिसके बाद पूरे इस्लामी जगत में जामिआत और मदरसे क़ाएम होते चले गये, आपने तारीख़ में जामे अज़हर मिस्र का नाम पढ़़ा होगा जिसकी स्थापना फ़तिमी शासन काल में 970 ई0 में हुई थी। आरम्भ काल में यह छोटा मदरसा था बाद में वह विश्वविद्यालय बन गया। हमारे देश भारत वर्ष में बड़े मदरसों में दारुल उलूम देवबन्द, दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ, मज़ाहिर उलूम सहारनपुर प्रसिद्ध है।
मदरसा, इस्लामी सोसाइटी और इस्लामी समाज की मौलिक आवश्यकता है अल्लाह के अन्तिम नबी हज़रत मुहम्मद सल्ल0 ने अपने अमल से बता दिया कि मुसलमान कहीं भी हों उनके लिए मस्जिद और मदरसा ज़रूरी चीज़ है, इन मदरसों की अर्थव्यवस्था स्वयं मुसलमान ही करते हैं। और उनकी सहायता ज़कात, सदक़ात और हदाया के रूप में होती है, रमज़ान शरीफ़ के महीने में मदरसों के प्रतिनिधि गाँव-गाँव, शहर-शहर जा कर अपने अपने मदरसों के लिए चन्दा करते हैं, और बहुत ही परिश्रम करते और कष्ट उठाते हैं। इन मदरसों की स्थापना का लक्ष्य और उद्देश्य यह है कि इन्सान अपने वास्तविक स्वामी अल्लाह तआला की इबादत करे और उसका आज्ञापालन करे, उसके अन्तिम नबी हज़रत मुहम्मद सल्ल0 का पूर्ण रूप से अनुसरण करे ताकि इस लोक और प्रलोक दोनों जहान में कामयाबी प्राप्त हो, यह मदरसे ऐसे स्थान होते हैं जहाँ एक ही समय में वहां शिक्षा और दीक्षा दोनों काम होते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप वहां के पढ़े हुए लोग देश और समाज के लिए लाभदायक और उपयोगी होते हैं, वह अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शिक्षा से प्रभावित होते हैं जिन्हांेने फ़रमाया था ‘‘तुम ज़मीन वालों पर रहम करो, आसमान वाला तुम पर रहम करेगा’’, उसने फरमाया था ‘‘तुममें सबसे अच्छा आदमी वह है जो लोगों को नफ़ा पहुँचाये’’ उसने फ़रमाया ‘‘ख़ुदा की क़सम वह शख़्स मोमिन नहीं जिसकी शरारतों से उसका पड़ोसी महफ़ूज़ नहीं’’ उदाहरण के तौर पर क़ुरआन हदीस की कुछ बातें प्रस्तुत की गईं जिनकी शिक्षा मदरसों में दी जाती है। जिनको सुन कर और पढ़ कर अनुभव कीजिए कि इन मदरसों में क्या पढ़ाया जाता है।
प्रत्येक मुसलमान के लिए इस्लामी शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है इसके बिना वह सही ग़लत, जाएज़ नाजाएज़ और हलाल, हराम में अन्तर नहीं कर सकता, इसीलिए मदरसों का होना ज़रूरी है, नबी करीम सल्ल0 ने फ़रमाया ‘‘इल्म दीन हासिल करने की कोशिश और तलब हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है’’ यह बात हमेशा याद रखने की है कि दीन में जो चीज़ फ़र्ज़ है उसका करना इबादत है, इसलिए दीन सीखना और दीनी बातें जानने की कोशिश करना भी इबादत है, अल्लाह के यहां इसका बहुत बड़़ा सवाब है और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसकी बड़ी फ़जीलतें बयान फ़रमाई हैं- एक हदीस में है कि ‘‘जो शख़्स दीन सीखने के लिए घर से निकले वह जब तक अपने घर वापस न आए वह अल्लाह के रास्ते में है’’ (तिर्मिज़ी)। एक और हदीस में हैं कि- जो शख़्स दीन की तलब में और दीनी बातें सीखने के लिए किसी रास्ते पर चलेगा तो अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत का रास्ता आसान कर देगा’’ (मुस्लिम)। हदीस शरीफ़ में है कि- ‘‘जो शख़्स दीन को सीखने और जानने की इसलिए कोशिश करे कि उसके ज़रिये वह इस्लाम को ज़िन्दा करे यानी दूसरों में उसको फैलाए और लोगों को उसके मुताबिक़ चलाए और इसी बीच में उसको मौत आ जाए तो आख़िरत में वह पैग़म्बरों के इस क़दर क़रीब होगा कि उसके और पैग़म्बरों के दरमियान सिर्फ़ एक दर्जे का फ़र्क़ होगा’’ (दारमी)।
अल्लाह तआला हम सब को तौफ़ीक़ दे कि ख़ुद दीन सीखें और दूसरों को सिखाएं, ख़ुद दीन पर चलें और अल्लाह के दूसरे बन्दों को उस पर चलाने की कोशिश करें।