दीने इस्लाम कबूल करने में कोई जोर व जबरदस्ती नहीं है

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दीने इस्लाम कबूल करने में कोई जोर व जबरदस्ती नहीं है
हाँ पवित्र र्क़ुआन में आया है कि दीने इस्लाम क़बूल करने में कोई ज़ोर व ज़बरदस्ती नहीं है परन्तु साथ ही ये भी बताया गया कि अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम द्वारा भ्रष्टता से सत्यमार्ग (हिदायत) स्पष्ट हो चुका है अतः जो शैतानों तथा मिथ्या उपास्यों को नकार कर एक अल्लाह पर ईमान ले आया उसने मदद के लिए एक बड़ा मज़बूत हल्क़ा (कड़ा) पकड़ लिया जो कभी टूटेगा नहीं अर्थात वह (अल्लाह) के संरक्षण में आ गया ईश्वर ईमान वालों का संरक्षक है मित्र है वह ईमान वालों को असत्य की अन्धेरियों से निकाल कर सत्य के प्रकाश में लाता है तथा जिन लोगों ने सत्य को नकार दिया उनके संरक्षक उनके मित्र शयातीन और मिथ्या उपास्य है वह उनको सत्य के प्रकाश से निकाल कर असत्य की अन्धेरियों में लाते हैं ऐसे ही लोग आग यानि जहन्नम वाले हैं वह उसमें सदैव रहेंगे। (अल बक़रः 256.257)
अल्लाह तअ़ाला ने प्यारे नबी को आदेश दिया कि आप लोगों से कह दीजिए ये जो इस्लाम मैं लाया हूँ यह अल्लाह की ओर से है जिसका मन चाहे इसको माने जिसका मन न चाहे नकार दे।
निः सन्देह हमने अत्या- चारियों के लिए आग तैयार कर रखी है जो आग की क़नातों से घिरी है अत्याचारी उसी में डाले जाएंगे वह पानी माँगेंगे तो ऐसा गर्म पानी दिया जायेगा जो मुँह को झुलसा दे क्या ही बुरा पानी है और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है सबसे बड़ा अत्याचारी वह है जो अल्लाह का साझी ठहराये।
शिर्क अल्लाह का साझी ठहराना कितना बुरा है इसको बड़ी सरलता से यूं समझ सकते हैं, आजकल देश में भाजपा सरकार है मोदी महोदय प्रधान मंत्री हैं ऐसे में अगर कोई कहे कि राहुल जी जिस को चाहें सरकारी नौकरी दे सकते हैं जिसको चाहें जहां का राज्यपाल बना सकते हैं वह अगर आदेश दें तो सेना पाकिस्तान पर या चीन पर आक्रमण कर सकती है ऐसे व्यक्ति के विषय में भाजपा सरकार क्या निर्णय लेगी बस इससे ईशवर (अल्लाह) के साथ साझी ठहराने के पाप को समझा जा सकता है। अल्लाह तअ़ाला फरमाता है कि जो लोग ईमान लाए और भले काम किये हम उनके भले कामों का बदला व्यर्थ नहीं करते, उनके लिए जन्नत में ऊँचा स्थान है जिसके नीचे नहरें बह रही होंगी उन्हें वहाँ सोने के कंगन पहनाए जाएंगे और हरे सुनदुस और इसतबरक के रेशमी वस्त्र पहनाए जाएंगे वह मसेहरियों पर बैठे होंगे कितना अच्छा बदला है भले काम का और कितना अच्छा ठिकाना है ईमान वालों का।
पवित्र र्कुआन ने ईमान लाने वालों और ईमान न लाने वालों का परिणाम स्पष्ट कर दिया और कह दिया कि इस्लाम अल्लाह की ओर से आया हुआ सत्य धर्म है मनुष्य को अधिकार है चाहे इसको माने चाहे नकार दे, इस्लाम स्वीकार करने के लिए ज़ोर व ज़बरदस्ती नहीं है।
मक्के के वह सरदार जो अभी तक अपने बाप दादा के दीन पर थे मूर्ति पूजक थे वह दूसरे मुनकिरों और मुनाफिक़ों और मुश्रिकों की भाँति क़ियामत हश्र हिसाब व किताब सदैव की जन्नत या सदैव की जहन्नम पर विश्वास नहीं रखते थे वह मूर्ति पूजा पर जमे हुए थे उन्होंने देखा कि इस्लाम बढ़ता जा रहा है उनको खतरा हुआ कि ऐसा न हो हमारा भी दीन-धर्म ख़त्म हो जाए और इस्लाम छा जाए तो क्यों न हम मुहम्मद से समझौता कर लें उन्होंने प्यारे नबी से कहा ऐ मुहम्मद हम तुम दीन के विषय में समझौता कर लें हम लोग एक साल तुम्हारे माबूद की उपासना करें दूसरे साल तुम हमारे माबूदों की उपासना करो। अल्लाह ने प्यारे नबी को आदेश दिया कि आप इन लोगों से कह दीजिए कि ऐ सत्यधर्म इस्लाम के मुनकिरों तुम जिनको पूजते हो मैं उनको नहीं पूज सकता, और जिसकी इबादत मैं करता हूँ तुम उसकी इबादत करने वाले नहीं हो सकते और तुम जिसकी इबादत करते हो मैं उसकी इबादत करने वाला नहीं हो सकता और मैं जिसकी इबादत करता हूं तुम उसकी इबादत करने वाले नहीं हो सकते अर्थात तुम मुझको बुतों की इबादत के लिए दावत देते हो और एक साल तक उनकी इबादत की दावत देते हो मैं तो एक साल क्या एक पल के लिए भी अल्लाह के अतिरिक्त किसी गै़रुल्लाह की उपासना सोच भी नहीं सकता मेरे लिए गै़रुल्लाह की इबादत मुहाल ही नहीं असम्भव है रही तुम्हारी बात जो तुम एक ईश्वर (अल्लाह) की इबादत के लिए तैयार हो मगर तुम्हारे मन में कि इसके पश्चात मैं फिर बुतों की इबादत करूँगा ऐसे में तुम्हारे एकेश्वर (अल्लाह) की उपासना शुद्ध ही न होगी इसीलिए कहा कि जिस की इबादत मैं करता हूँ उस की इबादत करने वाले तुम हो ही नहीं सकते जब परिस्थिति यह है तो तुम्हारा शिर्क वाला दीन तुम्हारे लिए है दीने इस्लाम मेरे लिए। यह बयान सूरे काफिरून के अध्ययन के पश्चात लिखा गया इसमें जो समझौता का कारण लिखा गया है वह मेरा कियासी है हो सकता है वह न हो।
अब कुछ कोरोना के विषय मेंः-
कोरोना ने इस्लामी आमाल को बहुत प्रभावित किया इस्लाम के दो भाग हैं अक़ीदा और अ़मल, अक़ीदे में तो किसी हाल में कोई कमी बेशी हो नहीं सकती अलबत्ता आमाल में आवश्यकतानुसार सम्भव छूट को अपनाया जा सकता है, रुख़्सत पर अमल किया जा सकता है हज, ईदैन की नमाज़ें, जुमे की नमाज़ में मौजूदा सूरत जो इख़्तियार की गयी है वह इसी नियम के अन्तर्गत है अल्लाह तअ़ाला कोरोना को दुन्या से जल्द से जल्द उठा ले और दुन्या वालों को राहत मिले। आमीन!