जिक्रे नबीये पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम

एक जुमे के खुतबे के चार बोल
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नाकामियाँ और कामयाबियाँ
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सारी तारीफें सिर्फ उस अल्लाह के लिए हैं जो सारे जहानों का रब है, रहमान है, रह़ीम है, रोज़े जज़ा का मालिक है, ऐ अल्लाह! हम सब सिर्फ तेरी इबादत करते हैं और सिर्फ तुझ ही से मदद तलब करते हैं, ऐ अल्लाह! हम को सीधा रास्ता दिखा दे और उस पर चला दे, वह रास्ता कि जिस पर लोग चले तो आपने उनको तरह तरह के इनअ़ाम दिये, ऐसे बुरे लोगों का रास्ता नहीं कि जिस पर लोग चले तो उन पर तेरा ग़ज़ब हुआ, न ऐसों का रास्ता जो भटक गये, आमीन या रब्बल आलमीन।
अल्लाह ने कैसी मुफीद कारआमद ज़मीन बनाई जिस पर हम रहते बसते हैं, ऊपर नीले आसमान का साइबान तान दिया, उसके अन्दर सूरज चाँद तारे रोशन कर दिये, दिन काम करने और रोज़ी कमाने के लिए और रात को आराम करने के लिए बनाया, अपनी मख़्लूक़ में इन्सान को सबसे अफज़ल बनाया और इन्सानों में अपने प्यारे और आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ख़ैरुल बशर बनाया, उन पर लाखों दुरूद हों और उन पर लाखों सलाम हों।
अल्लाह तअ़ाला ने अपनी मख़लूक़ को सीधा रास्ता चलाने के लिए बहुत से नबियों और रसूलों को भेजा, हज़रत आदम अलै0, हज़रत नूह, हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माईल, हज़रत मूसा (अ0) और न जाने कितने पैग़म्बर भेजे, जिन की गिन्ती अल्लाह ही को मालूम है। हज़रत ईसा (अ0) आये तो यहूदियों ने उनकी बड़ी मुख़ालफत की यहां तक कि साज़िश करके अपनी समझ से उनको सलीब पर चढ़वा दिया लेकिन जिसे सलीब पर चढ़ाया गया वह ईसा अलैहिस्सलाम की शक्ल का कोई और था, ईसा अलै0 को अल्लाह तअ़ाला ने ज़िन्दा आसमान पर उठा लिया जिसे यहूदी समझ न सके।
उसके बाद दुन्या में बड़ा फसाद फैला, ऐसा फसाद फैला कि इंसानीयत तिलमिला उठी जुआ, शराब, क़त्ल, ज़िना, सारे गुनाह खुल्लम-खुल्ला होने लगे, बच्चियाँ ज़िन्दा दफ्न की जाने लगीं, तो अल्लाह तअ़ाला की रहमत जोश में आई और अल्लाह तअ़ाला ने अपने महबूब और आख़िरी नबी को दुन्या में भेजा, अल्लाह तआला आप पर लाखों रहमतें नाज़िल फरमाये और आप पर लाखों सलाम हों।
हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की वालिदा का नाम बीबी आमिना था, और वालिद साहिब का नाम अब्दुल्लाह था, अल्लाह की मर्ज़ी और अल्लाह की मस्लह़त आप अभी पैदा भी नहीं हुए थे कि वालिद साहिब अब्दुल्लाह का इन्तिक़ाल हो गया, जवान बेटे के इन्तिक़ाल पर आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब को बड़ा दुख हुआ, लेकिन हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैदाइश से दादा अब्दुल मुत्तलिब को बेइन्तिहा ख़ुशी हुई। दादा ने पोते का नाम मुह़म्मद रखा।
बीबी आमिना कितनी ख़ुशक़िस्मत थीं कि अल्लाह के आख़िरी और महबूब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की माँ होने का शरफ हासिल हुआ, जब हमारे ह़ुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आपके बतने मुबारक में थे तो ह़ज़रत आमिना ने ऐसे अनवार व बरकात देखे कि उनको वह सोच भी न सकती थीं। न कोई तकलीफ, न कोई गिरानी, बहुत अच्छे-अच्छे ख़्वाब दिखाई देते, ख्वाब में फिरिश्ते आ कर आपको ख़ुशख़बरी देते, जिससे उनको अन्दाज़ा होता कि उनके शिकमे मुबारक में जो बच्चा पल रहा है वह कोई गैर मामूली बच्चा है। आपकी पैदाइश मशहूर कौल के मुताबिक फील वाले वाक़िअ़ा के पचास रोज़ बाद 12 रबीउल अव्वल पीर के रोज सुब्हे सादिक़ के वक्त हुई। सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।
मक्के का यह दस्तूर था कि यहां जो बच्चा पैदा होता, आस पास के गाँव से दूध पिलाने वाली औरतें आतीं, और बच्चों को ले जा कर अपना दूध पिलातीं, और जब बच्चे का दूध छूटता तो उनके वालिदैन को वापस कर जातीं, कभी दूध छुड़ाने के बाद भी अपने पास रखतीं, यहाँ तक कि बच्चा अपनी ज़रूरियात ख़ुद पूरी करने लगता तो वालिदैन के पास पहुंचा कर इनअ़ाम व इकराम लेतीं, इसी रवाज के मुताबिक़ आप को दाई हलीमा ले गयीं और आपकी बरकत देख कर ह़ैरान रह गयीं, दूध छुड़ाने के बाद भी आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दाई हलीमा के सुपुर्द रहे, फिर अपनी माँ के पास आ गये, छह साल की उम्र में मोहतरम माँ का इन्तिक़ाल हो गया, दादा अब्दुल मुत्तलिब बड़े लाड व प्यार से पालते रहे, दस साल के हुए तो दादा जान भी इस दुन्या में न रहे, चचा अबूतालिब के साथ रहने लगे, आप की सेह़त बहुत अच्छी थी, खूबसूरती में यक्ता थे, पच्चीस साल के हुए तो बीबी ख़दीजा जो एक रईस औरत थीं वह भी सूरत व सीरत में यक्ता थीं, उम्र चालीस साल थी, वह बेवा थीं, उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ईमानदारी और शराफत से मुतअस्सिर हो कर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ख़ुद पैग़ाम दिया, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़बूल कर लिया और निकाह हो गया।
अल्लाह के इल्म में तो हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अज़ल ही से ख़ातिमुल अंबिया थे। लेकिन जब आप चालीस साल के हो गये तो आपको नुबुव्वत का काम सुपुर्द हुआ और आप पर र्कुआन नाज़िल होने का सिलसिला शुरु हुआ, आप ने कुरैश को बुला कर बताया कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही है, इस बात का इक़रार कर लो तो कामयाब हो जाओगे, और बताया कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ, ये ऐलान सुन कर नेक रूहों वाले तो ईमान लाने लगे और मुसलमान होने लगे, लेकिन बदबख़्त लोगों ने आपकी मुख़ालफत शुरु कर दी, यहां तक कि आप के हक़ीक़ी चचा अबू लहब भी आप के दुश्मन हो गये, अबूजहल भी आप का दुश्मन हो गया, लेकिन साथ ही बहुत अच्छे अच्छे लोग ईमान में दाख़िल होने लगे, सबसे पहले औरतों में हज़रत ख़दीजा रज़ि0 ईमान लाईं, मर्दों में हज़रत अबू बक्र, लड़कों में हज़रत अली, गुलामों में ह़जरत ज़ैद ईमान लाये, फिर तो ईमान लाने वालों का एक सिलसिला चल पड़ा, हज़रत उस्मान और हज़रत उमर ईमान लाये, शैतान की तिलमिलाहट से मुख़ालफत भी बढ़ने लगी, यहां तक कि अल्लाह की पनाह हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के क़त्ल के मनसूबे बनाये गये, और एक रात आप का घर घेर लिया गया तो अल्लाह के हुक्म से आप हिज़रत करके मदीना जाने के लिए घर से निकल आये घर घेरने वालों को पता न चल सका यह आप का मुअ़जिज़ा था आप हज़रत अबू बक्र को साथ ले कर मदीने के लिए रवाना हो गये।
मक्के के कुरैश बुत परस्त थे, तौहीद की दावत पर हमारे हुजूर के मुख़ालिफ़ हो गये थे मगर हमारे हुजूर को अमानत दार समझते थे और कई लोगों की अमानतें हमारे हुजूर के पास रख रखी थीं, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने घर से निकलने से पहले हज़रत अली रज़ि0 से फरमाया हम मदीने जा रहे हैं तुम आराम से घर में रहो कुरैश तुम को कोई नुक़सान न पहुंचा सकेंगे, यह अमानतें जिन लोगों की हैं उन को पहुंचा कर तुम भी मदीने आ जाना।
हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज़रत अबू बक्र रज़ि0 के साथ रवाना हो कर रास्ते की मुशकिलात सहते हुए खैरियत के साथ मदीना तय्यिबा पहँुच गये मदीने वालों को हुज़ूर की आमद की खबर हो चुकी थी वह बेचैनी से आपके आने का इन्तिज़ार कर रहे थे, मदीना पहुंचने पर मदीने वालों को बड़ी ख़ुशी हुई, मक्के के जो लोग ईमान ला चुके थे वह सब आगे पीछे मदीना पहुंच गये। दूसरी जगह भी जो लोग ईमान लाए थे मदीना पहुंच गये, मदीने के अक्सर लोग ईमान ला चुके थे उन लोगों ने आने वाले मुहाजिरीन की बड़ी मदद की इसी लिए वह अन्सार कहलाए।
मदीने में हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों की मदद से मस्जिद बनाईं जो नबी की मस्जिद कहलाई, अब मुसलमान ताकत में आ चुके थे। और इस्लाम तेजी से फैल रहा था, मगर मक्के के कुरैश की दुशमनी भी बढ़ रही थी उन्होंने मुसलमानों को नुक्सान पहुंचाने और इस्लाम को मिटाने की गरज़ से मदीने पर कई हमले किये पहले हमले में बद्र के मैदान में मुक़ाबला हुआ जिस में कुरैश के बड़े बड़े सोरमा मारे गये, दूसरे हमले में उहुद की लड़ाई हुई जिस में कुछ मुसलमानों की चूक से सत्तर सहाबा शहीद हो गये। इसी लड़ाई में हमारे हुजूर के प्यारे चचा हमज़ा शहीद हुए हमारे हुजूर ने उनको सय्यिदुश्शुहदा का ख़िताब दिया तीसरा हमला ख़न्दक़ की लड़ाई कहलाता है इस लड़ाई में कुरैश ने बड़ा मजमा इकट्ठा कर रखा था लेकिन अल्लाह ने ऐसा तूफान भेजा कि उनके हवास उड़ गये और उन को नाकाम भागना पड़ा यह अल्लाह की खुली हुई मदद थी, इस्लाम फैलता रहा।
अल्लाह के फ़ज़्ल से एक दिन वह भी आया कि हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दस हज़ार सहाबा के साथ मक्का मुकर्रमा में फातिहाना दाख़िल हुए मक्के वालों को मुक़ाबले की हिम्मत न हुई बल्कि वह सब के सब मुसलमान हो गये, हमारे हुज़ूर तो खुल्क़े अज़ीम पर थे आपने मक्के के उन तमाम लोगों को मुआफ़ कर दिया जिन्होंने हमारे हुजूर को तरह तरह से सताया था, प्यारे चचा हज़रत हमज़ा को क़त्ल कराने वाली हिन्दा और क़त्ल करने वाले वहशी को भी मुअ़ाफ़ कर दिया और उनको सहाबीयत का दर्जा मिल गया। अब हमारे हुजूर ने सहाबा की मदद से काबा जो मुलसमानों का क़िब्ला बन चुका था मगर उसमें 360 बुत रखे हुए थे। उन बुतों से काबे को पाक किया।
अब मक्का भी इस्लाम का मरकज़ था और मदीना भी, मक्के में हुजूर का घर था यहीं पैदा भी हुए थे और अब मक्का फत्ह हो चुका था मगर हुज़ूर ने अन्सार से वादा किया था कि वह मदीना न छोड़ेंगे इसलिए मक्के में रिहाइश न इख़्तियार करके मदीने ही में रिहाईश इख़्तियार की। सन दस हिजरी में हमारे हुजूर ने सहाबा के बहुत बड़े मजमें के साथ हज किया, र्कुआन पाक उतरते हुए 23वाँ साल था। जब र्कुआन पाक पूरा उतर चुका और दीने इस्लाम मुकम्मल हो गया तो 12 रबीउलअव्वल दोशंबे के रोज़ अल्लाह ने हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बुला लिया, इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन सहा-बए- किराम को बड़ा दुख हुआ, ऐसा दुख कि उसकी बराबरी किसी दुख से नहीं की जा सकती, मगर सहाबा ने उस दुख को बरदाश्त किया और इस्लाम पर जमे रहे यही नही कि खुद इस्लाम पर जमे रहे बल्कि इस्लाम फैलाते रहे हमारा फर्ज़ है कि हम भी इस्लाम पर जमे रहें, और जो लोग इस्लाम से नावाक़िफ़ हैं उन को वाक़िफ़ कराते रहें और इस्लाम की दावत देते रहें।
हम नमाज़ में कोताही न करें, मर्द सब कोशिश करके पांचों वक़्त की नमाज़ मस्जिद में जमाअ़त से अदा करें, औरतें अपनी नमाज़ें घरों में अदा करें किसी को नमाज़ में कोताही करते देखें तो हम हिक्मत से समझाएं और उसे नमाज़ी बनाएं।
रमज़ान के रोज़ों में कोताही न करें, अल्लाह ने माल दिया हो तो सालाना उसकी ज़कात निकालें ईदुल फ़ित्र में सद-कए-फ़ित्र अदा करें, ईदुल अज़हा में कुर्बानी करें, अल्लाह ने वुस्अत दी हो तो कम से कम ज़िन्दगी में एक बार हज करें।
झूट, ग़ीबत, रिश्वत खोरी, सूद खोरी, शराब नोशी, ख़यानत, चोरी, डकैती, ज़िना जैसे गुनाहों से दूर रहें, मुसलमान औरतें शरई परदे का एहतिमाम करें, मर्द नामहरम औरतों से दोस्ती न करें, किसी की बहन बेटी पर बुरी नज़र न डालें, नौकरी, मज़दूरी, कारोबार में इस्लामी नमूना पेश करें अपने अच्छे अख़लाक़ से वतनी भाइयों के दिल जीतने की कोशि करें, अल्लाह को हर वक़्त याद रखें। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर खूब दुरूद व सलाम पढ़ा करें और यह हदीस हमेशा सामने रखें ‘‘जिसने मेरी सुन्नत से मँुह मोड़ा मेरे तरीक़े से मुँह मोड़ा वह मुझ से नहीं यानी उसका मुझ से कोई रिश्ता नहीं’’ अल्ला हुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव व अ़ला आलिही व अस्हाबिहि व बारिक व सल्लिम।