जुमा हफ्ते के एक दिन का नाम है इसके स्थान पर हिन्दी में शुक्रवार है, जुमा का शुद्ध उच्चारण जुमुअ़ा है लेकिन उर्दू वाले जुमा बोलते हैं। जुमे की नमाज़ जुमे के दिन जुहृ के वक़्त में पढ़ी जाती है, जुहृ की नमाज़ में पहले चार सुन्नत फिर चार फर्ज़ फिर दो सुन्नत फिर दो नफ्लें पढ़ते हैं लेकिन जुमे की नमाज़ में चार सुन्नतों के बाद जुमे की नीयत से दो ही फर्ज पढ़ते हैं लेकिन उससे पहले इमाम दो खुतबे पढ़ता है, जुहृ की नमाज़ के फर्ज़ इमाम सिर्रन (हल्की आवाज़ से) पढ़ाता है अगर जुहृ की जमाअत छूट जाए तो आदमी अकेले भी अदा कर सकता है, जुमे की नमाज़ इमाम जहरन (तेज आवाज़ से) पढ़़ाता है अगर जुमे की नमाज़ छूट जाए तो अकेले नहीं पढ़़ी जा सकती, जुमे की नमाज़ के लिए जमाअत अनिवार्य है अगर जुमे की नमाज़ छूट जाए तो जुहृ की नमाज़ पढ़ना पडेगी।
जुमे की नमाज़ से पहले दो खुतबे पढ़े जाते हैं, खुतबा भाषण को कहते हैं और दूसरे भाषणों को वअ़ज, तक्रीर या बयान कहते हैं।
दारुल उलूम नदवतुल उलमा की मस्जिद में एक लम्बे समय से दारुल उलूम के सीनियर उस्ताद और मुहतमिम ह़ज़रत मौलाना डाॅ0 सईदुर्रहमान आज़मी नदवी पढ़ाते हैं इनका पहला खुतबा अरबों के खुतबे जैसा होता है, 19 जुलाई जुमा के चार बोलों ने मुझे बहुत प्रभावित किया उन्हीं का वर्णन यहां करना चाहता हूँ।
खुतबा या तकरीर के शुरु में अल्लाह की प्रशन्सा, बड़ाई और अल्लाह के नबी पर दुरूद पढ़ा जाता है इसको खुत-बए-मस्नूना कहते हैं। मौलाना ने बहुत अच्छा खुत-बए-मस्नूना पढ़ा फिर अरबी भाषा में इस प्रकार कहना आरंभ किया जिस का भावार्थ हम हिन्दी में प्रस्तुत कर रहे हैंः-
(1) मैं आप सबको और स्वयं अपने को तक़्वा, ग्रहण करने का निर्देश देता हूँ।
(2) मैं आप सबको और स्वयं अपने को अल्लाह की रस्सी मजबूती से पकड़ने का निर्देश देता हूँ।
(3) मैं आप सबको और स्वयं अपने को अल्लाह की शरीअत को मजबूती से पकड़ने का निर्देश देता हूँ।
(4) मैं आप सबको और स्वयं अपने को हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रकाश तथा स्पष्ट पुस्तक के रूप में जो अल्लाह की ओर से लाये हैं उन के अनुपालन का आदेश देता हूँ।
श्रवण शक्ति निर्बल होने के कारण शेष खुतबे से पूर्णतः लाभान्वित न हो सका इतना ज्ञात है कि मौलाना ने अपने खुतबे में सूरतुल अस्र एक से अधिक बार पढ़ी और उसकी चार महत्वपूर्ण शिक्षाएं ‘‘अल्लाह पर ईमान, भले काम, एक दूसरे को हक़ की ताकीद, एक दूसरे को धैर्य की ताकीद’’ को बार बार दुहराया और उसको अपनाने पर भर पूर जोर दिया।
अब मैं उक्त चारों बोलों अर्थात चारों बातों पर अपने ज्ञान के अनुकूल कुछ प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ।