एक जुमे के खुतबे के चार बोल

मुह़र्रमुल-हराम
September 6, 2019
जिक्रे नबीये पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
November 20, 2019

जुमा हफ्ते के एक दिन का नाम है इसके स्थान पर हिन्दी में शुक्रवार है, जुमा का शुद्ध उच्चारण जुमुअ़ा है लेकिन उर्दू वाले जुमा बोलते हैं। जुमे की नमाज़ जुमे के दिन जुहृ के वक़्त में पढ़ी जाती है, जुहृ की नमाज़ में पहले चार सुन्नत फिर चार फर्ज़ फिर दो सुन्नत फिर दो नफ्लें पढ़ते हैं लेकिन जुमे की नमाज़ में चार सुन्नतों के बाद जुमे की नीयत से दो ही फर्ज पढ़ते हैं लेकिन उससे पहले इमाम दो खुतबे पढ़ता है, जुहृ की नमाज़ के फर्ज़ इमाम सिर्रन (हल्की आवाज़ से) पढ़ाता है अगर जुहृ की जमाअत छूट जाए तो आदमी अकेले भी अदा कर सकता है, जुमे की नमाज़ इमाम जहरन (तेज आवाज़ से) पढ़़ाता है अगर जुमे की नमाज़ छूट जाए तो अकेले नहीं पढ़़ी जा सकती, जुमे की नमाज़ के लिए जमाअत अनिवार्य है अगर जुमे की नमाज़ छूट जाए तो जुहृ की नमाज़ पढ़ना पडेगी।
जुमे की नमाज़ से पहले दो खुतबे पढ़े जाते हैं, खुतबा भाषण को कहते हैं और दूसरे भाषणों को वअ़ज, तक्रीर या बयान कहते हैं।
दारुल उलूम नदवतुल उलमा की मस्जिद में एक लम्बे समय से दारुल उलूम के सीनियर उस्ताद और मुहतमिम ह़ज़रत मौलाना डाॅ0 सईदुर्रहमान आज़मी नदवी पढ़ाते हैं इनका पहला खुतबा अरबों के खुतबे जैसा होता है, 19 जुलाई जुमा के चार बोलों ने मुझे बहुत प्रभावित किया उन्हीं का वर्णन यहां करना चाहता हूँ।
खुतबा या तकरीर के शुरु में अल्लाह की प्रशन्सा, बड़ाई और अल्लाह के नबी पर दुरूद पढ़ा जाता है इसको खुत-बए-मस्नूना कहते हैं। मौलाना ने बहुत अच्छा खुत-बए-मस्नूना पढ़ा फिर अरबी भाषा में इस प्रकार कहना आरंभ किया जिस का भावार्थ हम हिन्दी में प्रस्तुत कर रहे हैंः-
(1) मैं आप सबको और स्वयं अपने को तक़्वा, ग्रहण करने का निर्देश देता हूँ।
(2) मैं आप सबको और स्वयं अपने को अल्लाह की रस्सी मजबूती से पकड़ने का निर्देश देता हूँ।
(3) मैं आप सबको और स्वयं अपने को अल्लाह की शरीअत को मजबूती से पकड़ने का निर्देश देता हूँ।
(4) मैं आप सबको और स्वयं अपने को हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रकाश तथा स्पष्ट पुस्तक के रूप में जो अल्लाह की ओर से लाये हैं उन के अनुपालन का आदेश देता हूँ।
श्रवण शक्ति निर्बल होने के कारण शेष खुतबे से पूर्णतः लाभान्वित न हो सका इतना ज्ञात है कि मौलाना ने अपने खुतबे में सूरतुल अस्र एक से अधिक बार पढ़ी और उसकी चार महत्वपूर्ण शिक्षाएं ‘‘अल्लाह पर ईमान, भले काम, एक दूसरे को हक़ की ताकीद, एक दूसरे को धैर्य की ताकीद’’ को बार बार दुहराया और उसको अपनाने पर भर पूर जोर दिया।
अब मैं उक्त चारों बोलों अर्थात चारों बातों पर अपने ज्ञान के अनुकूल कुछ प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ।

  1. तक़्वा ग्रहण करने की पवित्र र्कुआन में अनेक आयतें हैं मैं यहां ‘‘आले इमरान’’ की आयत नं0 102 से मदद ले रहा हूं, अनुवादः ‘‘ऐ ईमान लाने वालो! अल्लाह का डर रखो, जैसा कि उस से डर रखने का हक़ है। और तुम्हारी मृत्यू बस इस दशा में आए कि तुम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो’’। तक़्वे का अनुवाद डर या भय से पूरा भावार्थ अदा नहीं होता यह हो सकता है कि अल्लाह की अवज्ञा से अल्लाह की पकड़ से आदमी डरे, किसी सहाबी ने तक़्वे को इस तरह समझाया था कि कांटेदार झाड़ियों के बीच तंग रास्ते से जिस तरह कपड़े समेट कर एक आदमी निकल जाता है उसी तरह एक आदमी अपना जीवन इस संसार की बुराईयों से बचाते हुए बिता ले यही तक़्वा है। हमारे हज़रत मौलाना अली मियाँ रहमतुल्लाहि अलैहि तक़्वे का अनुवादः- ‘‘अल्लाह का लिहाज’’ से करते थे यह बहुत अच्छा अनुवाद है आदमी जहां तक होश व हवाश में रहे हर काम में यह खयाल करे कि अल्लाह उसे देख रहा है जब आदमी की यह दशा होगी तो वह वही काम करेगा जो अल्लाह को प्रिय होगा और अप्रिय कामों को करने का साहस न कर पाएगा जब उसकी यह हालत हो जाएगी तो इनशाअल्लाह उसकी मौत ईमान ही पर होगी।
  2. अल्लाह की रस्सी को मजबूत पकड़ लो, अल्लाह की रस्सी से तात्पर्य पवित्र र्कुआन है उसको मजबूत पकड़ने का अर्थ है कि उसमें जिन बातों पर ईमान लाने का आदेश है उन सब को दिल से मान लें जैसे क़ियामत का आना, कर्मों का लेखा जोखा होना, जन्नत, जहन्नम, फिरिश्ते, जिन, शैतान आदि और जो आदेश आए हैं जैसे नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, हलाल व हराम, निकाह, तलाक़ आदि को मानना और उनको अमल में लाना अनिवार्य समझें।
  3. अल्लाह की शरीअत मजबूती से पकड़ने से तात्पर्य है पवित्र र्कुआन और पवित्र हदीसों में जिन जिन बातों पर ईमान लाने का आदेश है उन सब पर ईमान लाना और जीवन बिताने के लिए जो जो आदेश हैं उन सब को अपने जीवन में ढालना।
  4. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह की ओर से अल्लाह के बन्दों के अमल के लिए नूर की शक़्ल में स्पष्ट पुस्तक अर्थात पवित्र र्कुआन के रूप में लाए हैं उन सब पर अमल करना अनिवार्य जानें इस विषय पर इसी अंक में जनाब खालिद सैफुल्लाह रहमानी का लेख ‘‘जो दिलों को फत्ह कर ले वही फातिहे ज़माना’’ को अवश्य पढ़ें।
    यहां हम उन चारों बोलों की अरबी लिख देना उचित समझते हैंः-
    ‘ऊसीकुम व नफ्सी बि तक़्वल्लाहि वल-एअ़्तिसामि बि हबलिल्लाहि वत्तमस्सुकि बि शरीअतिल्लाहि वल-अमली बिमा जाअबिही मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मिनल्लाहि नूरंव्वकिताबम मुबीना’’।
    इन चारों बोलों में हर बोल पूरे इस्लाम को घेरे हुए है यह चारों बोल एक दूसरे की तफ्सीर (व्याख्या) है।